01-Dec-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। देशभर में टीनएजर्स ऑनलाइन ठगी और ब्लैकमेलिंग के नए जाल में फंसते जा रहे हैं। सोशल मीडिया और चैटिंग प्लेटफॉर्म पर युवाओं की बढ़ती सक्रियता अपराधियों के लिए आसानी पैदा करती है। विशेषज्ञों के मुताबिक 13 से 19 वर्ष की उम्र के अधिकांश बच्चे रोजाना 6 से 8 घंटे इंटरनेट पर बिताते हैं, जहां वे अनजाने लोगों से दोस्ती करते हैं और धीरे-धीरे इसका दुरुपयोग शुरू हो जाता है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो ब्लैकमेलिंग का तरीका लगभग हर मामले में समान है, अपराधी लड़कियों के फर्जी प्रोफाइल से लड़कों और लड़कों के प्रोफाइल से लड़कियों से दोस्ती करते हैं। बातचीत रोमांस तक पहुंचती है, फिर वीडियो कॉल या निजी चैट के जरिए बच्चों को जाल में फंसाया जाता है। जब वे मानसिक दबाव में तस्वीरें या वीडियो साझा कर बैठते हैं, तो ब्लैकमेलिंग शुरू हो जाती है। कई पीड़ित युवा अपनी व माता-पिता की गाढ़ी कमाई गंवा देते हैं। ऐसे मामलों कोई लाख-दो लाख रुपये देकर अपनी जान छुड़ाता है, तो कई परिवार के बच्चे खुद को बचाने के लिए कीमती गहने तक बेच देते हैं। इस मामले में साइबर क्राइम पोर्टल के आंकड़े स्थिति की गंभीरता बताते हैं। जानकारी अनुसार 2023 में सेक्सटॉर्शन, साइबर बुलिंग और स्टॉकिंग के 1070 केस दर्ज हुए थे। 2024 में यह संख्या बढ़कर 1159 हो गई। सिर्फ पिछले 10 महीनों में ही 940 शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि असल संख्या इससे कई गुना अधिक है, क्योंकि बदनामी के डर से कई बच्चे और परिवार मामले को पुलिस तक पहुंचाते ही नहीं। स्टेट साइबर क्राइम एसपी दमनवीर सिंह ने मीडिया को बताया, कि पोर्टल पर दर्ज शिकायतें सीधे संबंधित थानों को भेज दी जाती हैं, जहां से विस्तृत जांच शुरू होती है। स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि बच्चे समय रहते सतर्क हो सकें। स्मार्टफोन के साथ दें डिजिटल संस्कार विशेषज्ञों का कहना है कि टीनएजर्स को सबसे पहले परिवार से ‘डिजिटल संस्कार’ मिलने चाहिए। पैरेंट्स की थोड़ी-सी सजगता बच्चों को बड़े खतरे से बचा सकती है। इसके लिए जरुरी हो जाता है कि टीनएजर्स को स्मार्टफोन देने के साथ ही साथ उन्हें डिजिटल संस्कार भी दिए जाएं ताकि वो ऐसे किसी जाल में न फंसने पाएं। अकाउंट ‘प्राइवेट’ करें: बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट पब्लिक न रहें। फ्रेंड लिस्ट में सिर्फ वही लोग रहें जिन्हें वे असल जिंदगी में जानते हों। ‘अनफ्रेंड’ की हिम्मत दें: अगर कोई ऑनलाइन दोस्त संदिग्ध बातें करे या निजी जानकारी मांगे तो तुरंत अनफ्रेंड करें। पैरेंट्स बच्चों को भरोसा दिलाएं कि गलती होने पर भी वे डांटेंगे नहीं। वीडियो की धमकी से न डरें: ब्लैकमेलर अक्सर कहते हैं, वीडियो वायरल कर दूंगा, लेकिन यूट्यूब और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म न्यूडिटी को तुरंत ब्लॉक कर देते हैं। संवाद सबसे बड़ा सुरक्षा कवच: घर में इन खतरों पर खुलकर बात होनी चाहिए। बच्चे को पता होना चाहिए कि किसी भी मुसीबत में सबसे पहले माता-पिता को बताना है। सबूत न मिटाएं: चैट, स्क्रीनशॉट और ट्रांजेक्शन डिटेल पुलिस के लिए सबसे अहम सबूत हैं। ऐसे किसी भी मामले में शिकायत साईबरक्राइम डॉट जीओवी डॉट इन पर घर बैठे की जा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता और समय पर संवाद ही बच्चों को डिजिटल अपराधियों से सुरक्षित रख सकता है। हिदायत/ईएमएस 01 दिसंबर 2025