लेख
02-Dec-2025
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- भोपाल गैस त्रासदी से निकलते जहरीले सवाल (भोपाल गैस त्रासदी की 41वीं बरसी (3 दिसम्बर) पर विशेष) 1984 में 2-3 दिसम्बर की रात भोपाल में मौत ने ऐसा तांडव मचाया था, जिसके जख्म आज तक नहीं भरे हैं। भयानक गैस त्रासदी की उस घटना को पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी और हृदयविदारक औद्योगिक दुर्घटना माना जाता है। 2-3 दिसम्बर 1984 को आधी रात के बाद यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) से निकली जहरीली गैस ‘मिथाइल आइसोसाइनाइट’ ने हजारों लोगों की जान ली थी। उस जानलेवा त्रासदी से लाखों की संख्या में लोग प्रभावित हुए थे। दुर्घटना के चंद घंटों के भीतर ही कई हजार लोग मारे गए थे और मौतों का यह दिल दहलाने वाला सिलसिला उस रात से शुरू होकर कई वर्षों तक अनवरत चलता रहा। हालांकि इसी साल भोपाल के जहरीले कचरे का निपटान किया जा चुका है किन्तु भोपाल गैस कांड को 41 साल बीत जाने के बाद भी इसका असर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है और इस त्रासदी से पीड़ित होने वालों के जख्म आज भी हरे हैं। भोपाल गैस त्रासदी पत्थर दिल इंसान को भी इस कदर विचलित कर देने वाली थी कि हादसे में मारे गए लोगों को सामूहिक रूप से दफनाया गया था जबकि करीब दो हजार जानवरों के शवों को विसर्जित करना पड़ा था, आसपास के सभी पेड़ बंजर हो गए थे। एक शोध में यह तथ्य सामने आया है कि भोपाल गैस पीड़ितों की बस्ती में रहने वालों को दूसरे क्षेत्रों में रहने वालों की तुलना में किडनी, गले तथा फेफड़ों का कैंसर 10 गुना ज्यादा है। इसके अलावा इस बस्ती में टीबी तथा पक्षाघात के मरीजों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। इस गैस त्रासदी में पांच लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे, जिनमें से हजारों लोगों की मौत तो मौके पर ही हो गई थी और जो जिंदा बचे, वे विभिन्न गंभीर बीमारियों के शिकार होकर जीवित रहते हुए भी पल-पल मरने को विवश हैं। इनमें से बहुत से लोग कैंसर सहित बहुत सी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं और घटना के 40 साल बाद भी इस गैस त्रासदी के दुष्प्रभाव खत्म नहीं हुए हैं। विषैली गैस के सम्पर्क में आने वाले लोगों के परिवारों में इतने वर्षों बाद भी शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चे जन्म ले रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गैस त्रासदी से 3787 की मौत हुई और गैस से करीब 558125 लोग प्रभावित हुए थे। हालांकि कई एनजीओ का दावा रहा है कि मौत का यह आंकड़ा 10 से 15 हजार के बीच था तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। विभिन्न अनुमानों के मुताबिक करीब 8 हजार लोगों की मौत तो दो सप्ताह के भीतर ही हो गई थी जबकि करीब 8 हजार अन्य लोग रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों के चलते मारे गए थे। हजारों लोगों के लिए काल बने और लाखों लोगों की जिंदगी बर्बाद कर देने वाले भोपाल में यूसीआईएल के कारखाने का निर्माण वर्ष 1969 में हुआ था, जहां ‘मिथाइल आइसोसाइनाइट’ (मिक) नामक पदार्थ से कीटनाशक बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। वर्ष 1979 में मिथाइल आइसोसाइनाइट के उत्पादन के लिए एक नया कारखाना खोला गया लेकिन भोपाल गैस त्रासदी की घटना के समय तक उस कारखाने में सुरक्षा उपकरण ठीक हालात में नहीं थे और वहां सुरक्षा के अन्य मानकों का पालन भी नहीं किया जा रहा था। उस कारखाने के टैंक संख्या 610 में निर्धारित मात्रा से ज्यादा एमआईसी गैस भरी हुई थी और गैस का तापमान निर्धारित 4.5 डिग्री के स्थान पर 20 डिग्री था। पाइप की सफाई करने वाले हवा के वेंट ने काम करना बंद कर दिया था। इसके अलावा बिजली का बिल बचाने के लिए मिक को कूलिंग स्तर पर रखने के लिए बनाया गया फ्रीजिंग प्लांट भी बंद कर दिया गया था। 3 दिसम्बर 1984 को इस कार्बाइड फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का जो रिसाव हुआ, उसका एक बड़ा कारण माना गया कि टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के साथ पानी मिल जाने से रासायनिक प्रक्रिया होने के परिणामस्वरूप टैंक में दबाव बना और टैंक का अंदरूनी तापमान 200 डिग्री के पार पहुंच गया, जिससे धमाके के साथ टैंक का सेफ्टी वाल्व उड़ गया था और यह जहरीली गैस देखते ही देखते पूरे वायुमंडल में फैल गई। अचानक हुए जहरीली गैस के इस रिसाव से बने गैस के बादल हवा के झोंके के साथ वातावरण में फैल गए और इसकी चपेट में आने वाले लोग मौत की नींद सोते गए। जिन लोगों के फेफड़ों में सांस के जरिये गैस की ज्यादा मात्रा पहुंच गई, वे सुबह देखने के लिए जीवित ही नहीं बचे। बहुत सारे लोग ऐसे थे, जिन्होंने नींद में ही अपनी आखिरी सांस ली। लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब हो क्या रहा है? दुर्घटना के चार दिनों बाद 7 दिसम्बर 1984 को यूसीआईएल अध्य्क्ष एवं सीईओ वारेन एंडर्सन की गिरफ्तारी हुई थी किन्तु विड़म्बना देखिये कि इतने भयानक हादसे के मुख्य आरोपी को गिरफ्तारी के महज छह घंटे बाद मात्र 2100 डॉलर के मामूली जुर्माने पर रिहा कर दिया गया था। उसके बाद वह अवसर का लाभ उठाते हुए भारत छोड़कर अपने देश अमेरिका भाग गया, जिसे भारत लाकर सजा देने की मांग निरन्तर उठती रही लेकिन भारत सरकार अमेरिका से उसका प्रत्यर्पण कराने में विफल रही। 29 सितम्बर 2014 को वारेन एंडर्सन की मौत हो गई। इस हादसे से पर्यावरण को ऐसी क्षति पहुंची, जिसकी भरपाई सरकारें आज तक नहीं कर पाई हैं। सरकारों का रूख इस पूरे मामले में संवेदनहीन ही रहा। कई रिपोर्टों में इस क्षेत्र में भूजल प्रदूषण की पुष्टि होने के बाद भी सरकार द्वारा जमीन में दफन जहरीले कचरे के निष्पादन की कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई। दरअसल इस भयावह गैस त्रासदी के बाद हजारों टन खतरनाक अपशिष्ट भूमिगत दफनाया गया था और सरकारों ने भी स्वीकार किया है कि यह क्षेत्र दूषित है। गैस रिसाव के करीब आठ घंटे बाद भोपाल को भले ही जहरीली गैस के असर से मुक्त मान लिया गया था किन्तु हकीकत यही है कि इस गैस त्रासदी के 41 वर्षों बाद भी भोपाल उस हादसे से उबर नहीं पाया है। (लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं) ईएमएस / 02 दिसम्बर 25