नई दिल्ली,(ईएमएस)। संसद के शीतकालीन सत्र में बुधवार को विपक्षी दल मोदी सरकार पर हमलावर हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, वामदल सहित तमाम विपक्षी दलों ने नई चार श्रम संहिताओं को “मजदूर-विरोधी, श्रमिक-विरोधी और पूंजीपति मित्रों की पक्षधर बताया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पोस्ट में लिखा कि, ये नई संहिताएं नौकरी की सुरक्षा छीन रही हैं, काम के घंटे बढ़ा रही हैं, ट्रेड यूनियनों को कमजोर कर रही हैं और असंगठित व प्रवासी मजदूरों को पूरी तरह असुरक्षित छोड़ रही हैं। नौकरी की सुरक्षा पर खतरा : पहले 100 कर्मचारियों तक की फैक्ट्री को छंटनी के लिए सरकारी अनुमति लेनी पड़ती थी, अब यह सीमा बढ़ाकर 300 की गई है। इससे देश के 80 प्रतिशत से ज्यादा कारखाने और इकाइयाँ बिना अनुमति के कर्मचारियों को निकल सकते है। फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट (निश्चित अवधि का रोजगार) का अंधाधुंध विस्तार होने से स्थायी नौकरियाँ खत्म होगी। ग्रेच्युटी, पेंशन जैसे लंबे लाभों से मजदूर वंचित हो जाएंगे। काम के घंटे बढ़कर 12 तक : कागज पर 8 घंटे का दिन कायम है, लेकिन राज्य सरकारों को 12 घंटे की शिफ्ट की छूट दे दी गई है। ओवरटाइम की सीमा भी राज्य तय करे। विपक्ष का कहना है कि इससे मजदूरों की थकान, दुर्घटना और स्वास्थ्य जोखिम कई गुना बढ़ जाएगा। ट्रेड यूनियन पर कुठाराघात: हड़ताल करने से पहले 60 दिन का नोटिस और फिर 14 दिन का कूलिंग पीरियड अनिवार्य होगा। 51 प्रतिशत सदस्यता वाली एक ही यूनियन को बातचीत का अधिकार, छोटी यूनियनों को हाशिए पर किया गया। 50 प्रतिशत मजदूर एक साथ छुट्टी लें, तब उस हड़ताल माना जाएगा। 300 से कम कर्मचारियों वाली इकाइयों में स्टैंडिंग ऑर्डर लागू नहीं होगा। काम के घंटे, छुट्टी, बर्खास्तगी के नियम भी बाध्यकारी नहीं रहने वाले है। फैक्ट्री की परिभाषा बदलकर छोटे कारखानों (20-40 कर्मचारी) को सुरक्षा कानूनों के दायरे से बाहर किया गया। बीड़ी मजदूर, पत्रकार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की विशेष सुरक्षा खत्म कर दी गई। विस्थापन भत्ता पूरी तरह खत्म, 18,000 मासिक आय की पुरानी सीमा बरकरार रखी गई। आधार आधारित पंजीकरण से लाखों प्रवासी मजदूर सोशल सिक्योरिटी से बाहर हो जाएंगे। आशीष दुबे/ 03 दिसंबर 2025