ज़रा हटके
04-Dec-2025
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लंदन (ईएमएस)। इंसान का दिमाग बचपन में विकसित होकर स्थिर नहीं हो जाता, बल्कि पूरे जीवन में कई बार खुद को नया रूप देता है। यह ताला खुलासा किया है यूनाइटेड किंगडम की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने। शोध में वैज्ञानिकों ने दिमाग में होने वाले चार बड़े टर्निंग पॉइंट की पहचान की है 9 साल, 32 साल, 66 साल और 83 साल जब दिमाग की वायरिंग में भारी परिवर्तन होता है और सोचने की क्षमता एक नई दिशा लेती है। यह अध्ययन 0 से 90 वर्ष की उम्र के 3,802 लोगों के एमआरआई डिफ्यूजन स्कैन पर आधारित है, जिससे साबित हुआ कि दिमाग समय-समय पर अपनी संरचना और कनेक्टिविटी को रीवायर करता रहता है। पहला बड़ा परिवर्तन 9 वर्ष की उम्र में आता है, जिसे बचपन से आगे की यात्रा का आरंभ माना गया है। इस समय दिमाग अतिरिक्त सिनैप्स को हटाकर केवल आवश्यक कनेक्शन्स को मजबूत करता है। इसी प्रक्रिया के चलते बच्चे की सीखने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता तेजी से विकसित होती है। हालांकि, यही अवधि मानसिक स्वास्थ्य विकारों के उभरने के लिए सबसे संवेदनशील भी मानी गई है। दूसरा और सबसे शक्तिशाली परिवर्तन 32 वर्ष की उम्र में होता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसी समय दिमाग अपनी सबसे मजबूत संरचनात्मक स्थिति में पहुंचता है और ‘एडल्ट मोड’ में बदल जाता है। यह वह उम्र है जब सोचने की क्षमता, तर्क शक्ति, कल्पना और संज्ञानात्मक प्रदर्शन अपने चरम पर होते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि 32 की उम्र के बाद लगभग 30 वर्षों तक दिमाग अधिक स्थिर रहता है, और यह समय बुद्धिमत्ता व व्यक्तित्व के विकास का स्वर्णिम चरण माना जाता है। तीसरा बड़ा मोड़ 66 वर्ष की उम्र में आता है, जब दिमाग में उम्र बढ़ने के शुरुआती संकेत दिखने लगते हैं। व्हाइट मैटर का क्षरण शुरु होने से दिमागी कनेक्टिविटी कमजोर पड़ती है और याददाश्त व मानसिक प्रक्रिया की गति धीमी होने लगती है। यही वह दौर है जब ब्लड प्रेशर और न्यूरोलॉजिकल रोगों का प्रभाव बढ़ता है। आखिरी टर्निंग पॉइंट 83 वर्ष की उम्र में आता है, जिसे ‘लेट एजिंग’ फेज कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि इस उम्र में दिमाग ग्लोबल कनेक्टिविटी खोकर लोकल कनेक्टिविटी पर निर्भर होने लगता है, जिसके कारण सोचने की क्षमता और स्मरण शक्ति तेजी से गिरने लगती है और डिमेंशिया का पीएनसीके बढ़ जाता है। सुदामा/ईएमएस 04 दिसंबर 2025