इन्दौर (ईएमएस) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय खंडपीठ इन्दौर में जस्टिस विजयकुमार शुक्ला व जस्टिस बिनोदकुमार द्विवेदी की युगल पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई उपरांत जय युवा आदिवासी शक्ति (जयस) को फटकार लगा तल्ख टिप्पणी करते कि... अदालत को क्या तमाशा समझ रखा है जो एक ही मामले में बार बार याचिका लगाई गई। यही नहीं इस तल्ख टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता आदिवासी संगठन जयस के खरगौन जिला अध्यक्ष सचिन सिसोदिया पर एक लाख रुपए की कॉस्ट लगाते याचिका को निजी उद्देश्य पर आधारित और जनहित से परे माना। बता दें कि इसी मामले में जयस द्वारा ही लगाई गई पूर्व में दो बार याचिका खारिज होने के बावजूद उसी मामले में जयस ने तीसरी बार यह याचिका लगाई थी। जिसे कोर्ट ने जनहित याचिका प्रणाली के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण मान याचिकाकर्ता को दंडित किया। याचिका सुनवाई दौरान शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी ने पैरवी करते तर्क रखे। याचिका विषय संक्षेप में इस प्रकार है कि 23 सितंबर 2025 की रात खरगोन रक्षित निरीक्षक (पुलिस लाइन के आर आई) सौरभ सिंह कुशवाह व आरक्षक राहुल चौहान के मध्य हुए विवाद, जो कि पुलिस विभाग में अधिकारी- कर्मचारी का सामान्य विवाद था, को जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) द्वारा कई दिनों बाद तूल देकर सरकार के खिलाफ खरगोन में धरना प्रदर्शन, हाईवे जाम कर रक्षित निरीक्षक व उनकी पत्नी पर एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई की मांग की गई। और हाई कोर्ट में याचिका। जिस पर कोर्ट ने खारिज करते कहा था कि पीडित व्यक्ति पढा लिखा व सरकारी कर्मचारी है। वह खुद अपने अधिकारों के लिए लडने में सक्षम है। इस पर जयस के अधिवक्ता राकेश कुमार अहिरवार ने याचिका विड्रॉ कर ली थी। इसके बाद उन्ही वकीलों ने आरक्षक राहुल चौहान से इसी को लेकर फिर याचिका लगवा दी। जिसके आरक्षक राहुल चौहान ने ही स्वयं हाई कोर्ट में ही जस्टिस प्रणय वर्मा एवं रजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थित होकर यह कहते हुए वापस ली कि वह याचिका चलाना ही नही चाहता है। इसके बाद फिर से इन ही वकीलों ने फिर से इसी विषय पर खरगोन जयस जिला अध्यक्ष सचिन सिसौदिया की ओर से जनहित याचिका लगाई जिस पर सुनवाई दौरान शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराते कोर्ट को विषय पर पूर्व जनहित याचिकाओं का बता याचिकाकर्ता पर हैवी कॉस्ट लगा याचिका खारीज करने की मांग की। जिस पर कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए इसे निजी उद्देश्यों पर आधारित एवं जनहित से परे बताया। और जनहित याचिका प्रणाली के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण मानते हुए याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का दंड (कॉस्ट) भी लगा एक माह में राशि हाई कोर्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी, इंदौर में जमा कराने के आदेश दिए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उपलब्ध अभिलेखों, परिस्थितियों के आधार पर न्यायालय ने माना कि वर्तमान जनहित याचिका में व्यक्तिगत रंजिश एवं उद्देश्य की संभावना अधिक है, न कि सार्वजनिक हित। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जनहित याचिका तभी स्वीकार्य है जब उसमें वास्तविक सार्वजनिक हित, तात्कालिकता एवं व्यापक जन-प्रभाव हो, अन्यथा न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जनहित याचिका दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आनन्द पुरोहित/ 05 दिसंबर 2025