* छह वर्षों में 95 मौतों से देश में शीर्ष पर गुजरात; कांग्रेस की स्वतंत्र न्यायिक जाँच व पुलिस सुधारों की माँग अहमदाबाद (ईएमएस)| गुजरात में बड़े पैमाने पर हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन और सत्ता के दुरुपयोग को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए गुजरात प्रदेश कांग्रेस समिति के मीडिया कन्वीनर और प्रवक्ता डॉ. मनीष दोशी ने कहा कि गांधी-सरदार की धरती पर लगातार बढ़ रहे कस्टोडियल डेथ के मामले अत्यंत चिंताजनक हैं। समाज कानून के शासन से चलता है, परंतु भाजपा सरकार में हो रही ये मौतें सत्ता के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण हैं। डॉ. दोशी ने कहा कि हाल ही में सुरेंद्रनगर में हुई कस्टोडियल डेथ की घटना स्वतः ही निष्पक्ष जाँच की माँग करती है। पिछले छह वर्षों में गुजरात में पुलिस कस्टडी में 95 आरोपियों की मौत हुई है, जिससे राज्य देश में सबसे ऊपर है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की रिपोर्ट ने भाजपा सरकार के गृह विभाग के “सब सुरक्षित” दावों की पोल खोल दी है। वर्षवार आँकड़े 2017–18 : 14 2018–19 : 13 2019–20 : 12 2021–22 : 24 2022–23 : 15 कोरोना काल 2019–20 की तुलना में 2021–22 में कस्टोडियल डेथ के मामलों में दोगुना उछाल दर्ज किया गया। साल 2017 से 2023 तक पूरे देश में पुलिस कस्टडी में 700 से अधिक मौतें हुई हैं। पुलिस यातना, समय पर चिकित्सा न मिलना जैसी वजहों से आरोपियों की जान गई है। डॉ. दोशी ने कहा कि गुजरात में लगातार मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हो रहा है, जिससे पुलिस कस्टडी में बंद लोगों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। यदि पुलिस और जांच एजेंसियाँ अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभा रही होतीं, तो हर दिन ऐसे मामलों का सामने आना संभव नहीं होता। जाँच प्रक्रिया में पारदर्शिता का बेहद अभाव है। उन्होंने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 और 2020 में आदेश दिया था कि पुलिस थानों, सीबीआई, ईडी और अन्य जाँच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण लगाए जाएँ, परंतु आज भी कई थानों में कैमरे नहीं हैं या बंद पड़े हैं। डॉ. दोशी ने कहा कि संविधान देश के हर नागरिक को जीवन और न्याय का अधिकार देता है, लेकिन कस्टोडियल डेथ की बढ़ती घटनाएँ तंत्र पर बड़ा प्रश्नचिह्न हैं। सबसे ज्यादा अत्याचार, अमानवीयता और यातना गरीब, पिछड़े, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और बक्षीपंच समुदाय के लोगों पर होती है। पुलिस की वर्दी के पीछे हो रहा यह अत्याचार केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का क्रूर दमन है। सरकार कितनी भी बातें करे, पर सच्चाई यह है कि कस्टोडियल टॉर्चर एक संस्थागत बीमारी बन चुका है। जिम्मेदारी तय करने के बजाय सरकार दोषियों को बचाती है। मरने वालों में एक समानता दिखती है-ग़रीबी और सामाजिक पिछड़ापन। ऐसी घटनाएँ कानून-व्यवस्था की नहीं, बल्कि सरकार की नैतिक दिवालियापन दर्शाती हैं। यदि नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदार पुलिस ही जीवन समाप्त करने का माध्यम बन जाए, तो यह सिस्टम नहीं, सरकार की नाकामी है। कानून वर्दी का नहीं, हर नागरिक का है - और जहाँ न्याय मरे, वहाँ लोकतंत्र शर्मसार होता है। कांग्रेस की प्रमुख माँगें * हर कस्टोडियल डेथ की स्वतंत्र न्यायिक जाँच हो। * गरीब, पिछड़े, एससी-एसटी एवं बक्षीपंच समुदाय के संदिग्ध मौतों के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतें बनाई जाएँ। * पुलिस सुधार (Police Reforms) लागू किए जाएँ—20 वर्षों से सरकार इन्हें क्यों रोक रही है? * जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी आपराधिक कार्रवाई की जाए। सतीश/05 दिसंबर