नई दिल्ली,(ईएमएस)। बाबरी मस्जिद विध्वंस की 6 दिसंबर को बरसी पर एआईएमआईएम प्रमुख एवं सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे भारत के इतिहास का काला दिन बताते हुए केंद्र सरकार और न्यायपालिका के कुछ पहलुओं पर तीखे सवाल खड़े कर दिए हैं। ओवैसी ने आरोप लगाया कि 1992 में बाबरी मस्जिद पुलिस की मौजूदगी में ढहाई गई, जबकि सुप्रीम कोर्ट से यह वादा किया गया था कि ढांचे को छुआ भी नहीं जाएगा। सांसद ओवैसी ने अपने संबोधन में कहा, कि संघ परिवार से जुड़े वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती ने अदालत को भरोसा दिया था, कि मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा, लेकिन दुनिया की आंखों के सामने मस्जिद को शहीद कर दिया गया। उन्होंने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 1949 की घटना को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने की कार्रवाई बताया था। यहां ओवैसी यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना था कि 6 दिसंबर 1992 की घटना कानून के शासन का उल्लंघन थी, फिर भी ट्रायल कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया और केंद्र सरकार ने इस फैसले को चुनौती नहीं दी। उन्होंने सवाल उठाया, कि अगर कोई दोषी नहीं, तो फिर मस्जिद किसने गिराई? जख्म भरने वाले बयान पर उठाया सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान पर भी उन्होंने निशाना साधा, जिसमें कहा गया था कि 500 साल पुराने ज़ख्म भरे जा रहे हैं। ओवैसी ने सवाल किया, जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई, तो प्रधानमंत्री किस ज़ख्म की बात कर रहे हैं? ज़ख्म तो संविधान और कानून के शासन को दिया गया। इसी के साथ ही उन्होंने एक सेवानिवृत्त जज के बयान पर भी सवाल उठाया, जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद कहा कि मस्जिद मंदिर तोड़कर बनाई गई थी। ओवैसी ने पूछा कि ऐसा विचार निर्णय में क्यों नहीं लिखा गया। ओवैसी ने दावा किया कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आस्था के आधार पर दिया गया। साथ ही उन्होंने प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की अनदेखी और मस्जिदों पर बढ़ते मुकदमों पर चिंता जताई। अंतत: उन्होंने देश को सभी धर्मों का बराबर बताया और मुस्लिम समाज विशेषकर महिलाओं में शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए कहा, जब हमारी बेटियां शिक्षित होंगी, तभी भारत मजबूत होगा। हिदायत/ईएमएस 06दिसंबर25