-मछलियों को साक्षात भगवान विष्णु का अवतार मानकर उनका करते हैं संरक्षण मुजफ्फरपुर,(ईएमएस)। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का छपरा मेघ गांव भले ही देखने में साधारण हो, लेकिन यह अपने अंदर एक ऐसी अद्भुत और रहस्यमय परंपरा को संजोए है, जो विज्ञान और तर्क की सीमाओं को चुनौती देती है। यह वह गांव है, जहां के ग्रामीण बाहर से मछली खरीदते और खाते हैं, लेकिन अपने गांव के तालाबों की मछलियों को छूना भी पाप समझते हैं। इस अनोखी परंपरा की जड़ें गांव के इतिहास और आस्था से जुड़ी हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय निवासी ने बताया कि यह कहानी रामजानकी मठ की स्थापना से शुरू हुई। सदियों पहले मठ की स्थापना के बाद गांव ने तालाब की मछलियों को साक्षात भगवान विष्णु का अवतार मानकर उन्हें संरक्षण दिया गया। तब से यह परंपरा बनी हुई है। ग्रामीण इन मछलियों को कभी नहीं पकड़ते। इसके बजाय वे हर दिन उन्हें श्रद्धापूर्वक आटे की गोलियां और मूढ़ी खिलाते हैं। छपरा मेघ गांव के तालाब के आसपास का माहौल सांझ होते ही बदल जाता है। दिन भर का सन्नाटा अपनी कहानी कहने लगता है। ग्रामीण बताते हैं कि जैसे ही शाम होती है, पानी की सतह पर हल्की सी हलचल होती है और मछलियों की एक रहस्यमय चमक उभरने लगती है। ऐसा लगता है, जैसे कोई अनदेखी दैवीय शक्ति उनकी पहरेदारी कर रही हो। ग्रामीणों का अटूट विश्वास है कि इन मछलियों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त है। गांव में यह किंवदंती सदियों से चली आ रही है कि जिस किसी ने भी इन मछलियों का शिकार करने की हिम्मत की है, उसकी जिंदगी में कोई न कोई अशुभ घटना घटित हुई है। यह बात कुछ लोग मानते हैं और कुछ नहीं। गांव के एक युवा ने हिचकते हुए बताया कि उन्होंने बचपन से यही सुना है कि इन मछलियों को मारना नहीं चाहिए। इनकी रक्षा करना ही गांव का धर्म है। यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि गांव की पहचान और अटूट सामाजिक बंधन का प्रतीक बन गई है। सिराज/ईएमएस 08 दिसंबर 2025