लेख
09-Dec-2025
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10 दिसम्बर मानवाधिकार दिवस) शांति केवल वहीं कायम रह सकती है जहां मानवाधिकारों का सम्मान किया जाता है, जहां लोगों को भोजन मिलता है, और जहां व्यक्ति और राष्ट्र स्वतंत्र हैं - दलाई लामा दुनिया में मानवाधिकारों की स्थिति चिंताजनक है, जहाँ आधुनिक दासता, संघर्षों में उल्लंघन, अभिव्यक्ति पर रोक और भेदभाव जैसे मुद्दे बढ़ रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद ताइवान में यौन उत्पीड़न कानून और बुयुकाडा मानवाधिकार रक्षकों की रिहाई जैसी कुछ सकारात्मक बदलाव भी देखने को मिले हैं, जिससे पता चलता है कि मानवाधिकारों के लिए वैश्विक स्तर पर जागरूकता और संघर्ष जारी है l दुनिया के कई हिस्सों में सरकारों द्वारा असहमति की आवाजों को दबाने और नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के मामले बढ़े हैं। नस्ल, रंग, लिंग, जातीयता, धर्म, या अन्य स्थिति के आधार पर भेदभाव अभी भी व्यापक रूप से मौजूद है, जिससे कमजोर आबादी प्रभावित हो रही है। मानव अधिकारों को लेकर आज का दिन काफ़ी अहम हो जाता है क्योंकि 10 दिसम्बर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर प्रथम बार मानवाधिकार व मानव की बुनियादी मुक्ति पर घोषणा की थी। साल 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने हर वर्ष की 10 दिसम्बर की को विश्व मानवाधिकार दिवस तय किया। 65 वर्ष से पहले हुआ पारित विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र एक मील का पत्थर है, जिसने समृद्धि, प्रतिष्ठा व शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के प्रति मानव की आकांक्षा प्रतिबिंबित की है। आज यही घोषणा पत्र संयुक्त राष्ट्र संघ का एक बुनियादी भाग है। मानवाधिकार का मतलब किसी भी इंसान की ज़िंदगी, आज़ादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है l भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ़ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को कानून सजा भी देता है l मानव अधिकारों के बारे में जानना ज़रूरी हो जाता है जैसे -हर इंसान को जीवन, स्वतंत्रता, समानता और सम्मान का अधिकार है। भारत में 28 सितंबर 1993 को मानव अधिकार अधिनियम लागू हुआ। 12 अक्टूबर 1993 को सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग बनाया। इस आयोग का काम नागरिक‑राजनीतिक अधिकारों के साथ‑साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की देख‑रेख करना है। इसमें बाल‑मज़दूरी, एचआईवी/एड्स, स्वास्थ्य, भोजन, बाल‑विवाह, महिला अधिकार, हिरासत में मौत, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार आदि शामिल हैं। इन सभी अधिकारों को बचाना और उनका सम्मान सुनिश्चित करना आयोग का मुख्य लक्ष्य है। हर इंसान को शिक्षा, स्वास्थ्य, काम, घर, संस्कृति, खाना और मनोरंजन जैसी बुनियादी चीज़ों का अधिकार है—इन्हें ही विश्व मानवाधिकार घोषणा में बताया गया है। लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में बहुत गरीबी है, और यही गरीबी बहुत सारे लोगों को उनके बुनियादी अधिकारों से दूर रखती है। इन जगहों पर बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं की ज़रूरतें अक्सर पूरी नहीं हो पातीं। साथ ही, नस्लवाद और जाति‑भेद भी मानवाधिकारों की रक्षा में बड़ी रुकावट बनते हैं। सरल शब्दों में: गरीबी और भेदभाव लोगों को उनका हक नहीं मिलने देते। मानव के जन्म लेने के साथ ही उसके अस्तित्व को बनाये रखने के लिए कुछ अधिकार उसको स्वतः मिल जाते हैं और वह उनका जन्मसिद्ध अधिकार होता है। इस दुनिया में प्रत्येक मनुष्य के लिए अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अधिकार एक मनुष्य होने के नाते प्राप्त हो जाता है। चाहे वह अपने हक के लिए बोलना भी जानता हो या नहीं। एक नवजात शिशु को दूध पाने का अधिकार होता है और तब वह बोलना भी नहीं जानता। लेकिन माँ उसको स्वयं देती है और अगर नहीं देती है तो उसके घरवाले, डॉक्टर सभी उसको इसके लिए कहते हैं, क्योंकि ये उस बच्चे का हक है और ये उसे मिलना ही चाहिए। एक बच्चे के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए ये ज़रूरत सबसे अहम होती है। लेकिन उसके बड़े होने के साथ-साथ उसके अधिकार भी बढ़ने लगते हैं। बच्चे के पढ़ने-लिखने और अपनी परवरिश आदि के लिए उसको समुचित सुविधाएँ और वातावरण देना भी ज़रूरी अधिकारों में आता है। उन्हें आत्म-सम्मान के साथ जीने के लिए, अपने विकास के लिए और आगे बढ़ने के लिए कुछ हालात ऐसे चाहिए, जिससे की उनके रास्ते में कोई व्यवधान न आये। पूरे विश्व में इस बात को अनुभव किया गया है और इसीलिए मानवीय मूल्यों की अवहेलना होने पर वे सक्रिय हो जाते हैं। इसके लिए हमारे संविधान में भी उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14,15,16,17,19,20,21,23,24, 39,43,45 देश में मानवाधिकारों की रक्षा करने के सुनिश्चित हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, इस दिशा में आयोग के अतिरिक्त कई एनजीओ भी काम कर रहे हैं और साथ ही कुछ समाजसेवी लोग भी इस दिशा में अकेले ही अपनी मुहिम चला रहे हैं। मानवाधिकार दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि यह मानवता के लिए एक प्रेरणा है। यह हमें याद दिलाता है कि हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार मिलना चाहिए। मानवाधिकारों की रक्षा करना और इसे बढ़ावा देना सभी का कर्तव्य है, ताकि हम एक न्यायपूर्ण और समान समाज का निर्माण कर सकें। (लेखक पत्रकार हैं ) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 09 ‎दिसम्बर /2025