लेख
10-Dec-2025
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गोवा की विदेशी कल्चर की पर्याय नाइटलाइफ के बीच अर्पोरा स्थित बर्ष वाय रोमियो लेन नाइटक्लब में लगी आग ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। गोवा के अरपोरा में रविवार तड़के बीच वे रोमियो लेन नाइटक्लब में लगी भीषण आग में मारे गए सभी 25 पीड़ितों की पहचान कर ली गई है. अधिकारियों ने रविवार देर रात मृतकों की सूची जारी की. मृतकों में 20 नाइटक्लब के स्टाफ थे जबकि 5 पर्यटकों ने भी इस हादसे में जान गंवाई है. रिपोर्ट के मुताबिक जो पांच पर्यटक हादसे में मारे गए, उनमें चार दिल्ली के रहने वाले है जिनमें एक ही परिवार के तीन सदस्य शामिल है. पांचवां पर्यटक कर्नाटक का निवासी है आपको पता रहे इस दुःखद हादसे में 25 लोगों की जान चली गयी है। इस हादसे से सभी लोग काफी ममर्माहत है, वहीं दूसरी तरफ इस घटना को लेकर लोगों में काफी नाराजगी भी है, क्योंकि यह सिर्फ एक हादसा नहीं था, बल्कि हमारे सिस्टम में छिपे भ्रष्टाचार और लापरवाही का एक जीता जागता सबूत है । जिन निर्दोष लोगों की जान चली गई उनमें पर्यटक भी थे, कर्मचारी भी। कई परिवार उजड़ गए, कई सपने चंद मिनटों में राख हो गए। सवाल यह नहीं है कि आग कैसे लगी, बल्कि यह है कि आग लगने की नौबत आई ही क्यों? इस हादसे ने एक बार फिर साबित कर दिया कि हमारे देश में सुरक्षा नियमों की चिंता तब होती है, जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है। सरकार और प्रशासन की आंख तब खुलती है, जब कई जानें जा चुकी होती हैं। गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने घटना पर दुख जताया, मौके का दौरा किया, जांच के आदेश दिए और दोषियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया। लेकिन यह सारा कुछ बहुत देर होने के बाद हुआ। आप जानते हैं कि गोवा एक पर्यटन राज्य है, जहां हर दिन हजारों लोग आते हैं। ऐसे में वहां चल रहे क्लबों, पब्स और बार्स की सख्त सुरक्षा जांच होना ही चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि कई जगह बिना अनुमति चल रही हैं, कई संरचनाएं अवैध तरीके से बनाई गई हैं और कई जगह अग्नि सुरक्षा नियमों का पालन तक नहीं होता। अर्पोरा-नागोआ पंचायत ने खुद चताया कि यह क्लब बिना निर्माण अनुमति के खड़ा किया गया था। अगर यह तथ्य पहले से ज्ञात था, तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई? प्रशासन की यह ढिलाई ही इस हादसे की सबसे बड़ी जिम्मेदार है। यह लापरवाही सिर्फ क्लब मालिकों की नहीं, बल्कि उन अधिकारियों की भी है, जो नियमों को लागू करने में नाकाम रहे। जब सरकार खुद स्वीकार करती है कि क्लब सुरक्षा नियमों का पालन नहीं कर रहा था, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि कार्रवाई पहले क्यों नहीं की गई? प्रारंभिक जांच बताती है कि क्लब ने फायर सेफ्टी के बुनियादी नियमों तक का पालन नहीं किया गया था। नाइटक्लब में उपस्थित लोगों का कहना है कि कोई स्पष्ट आपातकालीन निकास मार्ग दिखाई नहीं देता था, आग लगते ही बिजली काट दी गई, जिससे अंधेरे में भगदड़ मच गई। सबसे बड़ी बात कि फायर अलार्म व स्प्रिंकलर जैसे उपकरण या तो मौजूद ही नहीं थे या काम नहीं कर रहे थे। चश्मदीदों के अनुसार आधी रात के बाद अचानक आग लगी और उस समय क्लब में भीड़ बहुत अधिक थी और करीब 100 लोग डांस कर रहे थे। बाहर जाने के रास्ते बहुत संकरा और कम था। अंदर की सजावट में ताड़ के पत्तों और हल्की चीजों का इस्तेमाल किया गया था, जिससे आग ने और विकराल रूप ले लिया। आग लगते ही लोग भागने लगे और स्थिति और बिगड़ गई और कुछ लोग घबराहट में गलत दिशा में भागते हुए सीधे रसोईघर में फंस गए। दमकल विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि क्लब की ओर जाने का रास्ता बहुत संकरा था और इस कारण दमकल की गाड़ियों को करीब 400 मीटर दूर रुकना पड़ा, जिससे बचाव कार्य देर से शुरू हुआ। अधिकतर लोगों की मौत धुआं भरने और सांस न ले पाने के कारण हुई। अर्पोरा नागोआ पंचायत के सरपंच रोशन रेडकर के अनुसार यह क्लब बिना निर्माण अनुमति के बनाया गया था। जांच में पाया गया कि क्लब के पास निर्माण की अनुमति नहीं थी। पंचायत ने तोड़फोड़ का आदेश दिया था, लेकिन बाद में उसे रोक दिया गया। क्लब का संचालन सौरभ लूथरा द्वारा किया जा रहा था और उनके भूमि मालिकों और साझेदारों से विवाद भी चल रहा था। गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने स्वयं स्वीकार किया कि क्लब सुरक्षा नियमों का उल्लंघन कर रहा था। जब सरकार का मुखिया भी यह स्वीकार करता है, तब सवाल खड़ा होता है, अगर बलब गलत थे, तो उन्हें इतने लंबे समय तक चलने दिया किसने ? क्या स्थानीय प्रशासन, नगर निगम, पर्यटन विभाग और फायर विभाग ने अपनी जिम्मेदारी निभाई ? क्या नियमों की जांच सिर्फ कागजों पर पूरी कर ली जाती है? यह त्रासदी केवल मालिकों की लापरवाही नहीं, बल्कि एक व्यापक सिस्टम फेलियर का है। गोवा पर्यटन को भारत का फेस माना जाता है। साल भर लाखों भारतीय और विदेशी पर्यटक वहां आते हैं, और नाइटलाइफ पर्यटन का प्रमुख आकर्षण है। होटल, बार, शैक्स और क्लब करोड़ों रुपये कमाते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या सुरक्षा और नियमों का पालन पर्यटन की कीमत पर तिलांजलि दी जा सकती है? गोवा में कई बार यह आरोप लगता रहा है कि नाइटलाइफ प्रतिष्ठानों को लाइसेंस देने में उदारता और निगरानी में लापरवाही बरती जाती है। यह मॉडल तभी तक चलता है जब तक कोई बड़ा हादसा सामने न आ जाए और अब वह हादसा हो चुका है। अगर देखा जाए तो यह सिर्फ गोवा की घटना नहीं, भारत के हर बड़े शहर में मौजूद खतरों का संकेत है। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु या कोलकाता हर जगह अवैध क्लब, खराब वेंटिलेशन, खराब निकासी रास्ते और ज्वलनशील सजावट आम होती जा रही है। हम हर बार हादसे के बाद जागते हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर सब भूल जाते हैं। इस घटना से सीख लेने की जरूरत है। 25 लोग इस लापरवाही की कीमत अपनी जान देकर चुका चुके हैं। यह समय है, जब सरकार को सिर्फ जांच और कार्रवाई की बात नहीं, बल्कि असली बदलाव लाना होगा, ऐसे बदलाव जो भविष्य में किसी भी क्लब, होटल या मॉल में इस तरह की त्रासदी होने से रोक सकें। नाइटलाइफ पर्यटन का हिस्सा है, लेकिन पर्यटन की सुरक्षा उससे भी बड़ा मुद्दा है। यदि पर्यटक और स्थानीय लोग खुद को सुरक्षित न महसूस करें, तो किसी भी पर्यटन राज्य की चमक फीकी पड़ जाएगी। गोवा का नाइटक्लब हादसा हमें याद दिलाता है कि चमक-दमक से भरी जगहों के पीछे कितनी लापरवाहियां छिपी रहती हैं। यह घटना सिर्फ एक क्लब या एक शहर की समस्या नहीं है, यह हमारी व्यवस्था, हमारे प्रशास और हमारी सुरक्षा सोच की गहरी खामियों का आईना है। सरकार को अब नींद से जागना ही होगा। नियमों को कड़ाई से लागू करना होगा और अवैध कारोबार को बंद करना होगा। सबसे जरूरी बात है कि लोगों की जान को प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि जिंदगी की कीमत किसी भी क्लब, किसी भी व्यवसाय या किसी भी चमक-दमक से कहीं ज्यादा होती है। इस हादसे ने हमें यह याद दिलाया है कि चमकती रोशनी, तेज संगीत और ग्लैमर के पीछे अक्सर एक खतरनाक लापरवाही छिपी होती है। यह त्रासदी एक चेतावनी की तरह है। सुरक्षा सिर्फ कागहों पर नहीं, जमीन पर भी उतनी ही मजबूत होनी चाहिए। हमारी सरकार, प्रशासन और व्यापारियों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में कोई क्लब, रेस्टोरेंट या पब्लिक स्पेस इस तरह की लापरवाही का शिकार न हो। इस घटना से सबक लेना जरूरी है। जिम्मेदारी तय होनी चाहिए, नियमों को कड़े रूप में लागू किया जाना चाहिए और किसी भी क्लब को सुरक्षा मानकों की अनदेखी की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। हर कीमत पर यह सुनिश्चित करना होगा कि गोवा का हर पर्यटक,हर देसी विदेशी नागरिकों का जीवन सुरक्षित रहे। हर हादसे के बाद जांच की लकीर खींची जाती है जांच कमेटी गठित की जाती हैं लेकिन इन जांच कमेटी की रिपोर्ट्स को रद्दी की टोकरी या फाइलों में दबा दी जाती है और हर बार जांच का नाटक कर नए हादसों का इंतजार किया जाता है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 10 ‎दिसम्बर /2025