लेख
10-Dec-2025
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लोकतंत्र की विश्वसनीयता को बनाये रखने का एक अवसर संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान हाल ही में हुई बहस में ‘वोट चोरी’ और व्यापक चुनाव सुधारों का मुद्दा जिस गंभीरता से सभी पक्षों के सांसदों द्वारा उठाया गया, वह भारत की लोकतांत्रिक यात्रा के लिए इसे एक निर्णायक अवसर माना जा सकता है। मतदान प्रक्रिया पर बढ़ते सवाल, तकनीकी, पारदर्शिता को लेकर विपक्ष की आशंकाएँ निराधार नहीं है। चुनाव में अर्थतंत्र की भूमिका का असर, चुनाव के यह मुद्दे लंबे समय से देश की राजनीति और चुनाव में गहरी जड़ें जमा चुके हैं। इस बार संसद में जिस तीखेपन और स्पष्टता के साथ इन सभी प्रश्नों को सांसदों ने रखा है, उससे सरकार और चुनाव आयोग दोनों के ऊपर चुनाव में सुधारों की दिशा में ठोस कदम उठाने का दबाव बनाने का काम किया है। चुनाव आयोग और सरकार की जवाबदेही तय करने की दिशा में संसद आगे बढ़ी है। बहस का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह रहा, कि चर्चा में वोट चोरी मामले को लेकर सभी गंभीर दिखे। लगभग सभी दलों ने ‘वोट चोरी’ चुनाव में सरकार के ‘अनुचित प्रभाव’ तथा चुनाव आयोग का सत्ताधारी दल के प्रति समर्पण जैसे आरोपों की पृष्ठभूमि में चुनाव प्रक्रिया के भरोसे को लेकर विपक्ष की चिंता देखने लायक थी। विपक्ष ने हर बात को बड़ी सूक्ष्मता के साथ संसद में रखा है। इस बहस में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच में जिस तरह की तलखी देखने को मिली है। सरकार को घेरते हुए विपक्ष ने जिस तरह की एकजुटता मजबूती के साथ दिखाई है, उससे चुनाव आयोग और सरकार की परेशानी निश्चित रूप से बढ़ी है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी एवं कुछ सदस्यों ने ईवीएम से जुड़ी पारदर्शिता को बढ़ाने, वीवीपैट की संख्या में वृद्धि करने, 100 फ़ीसदी मतपत्रों की गिनती करने, और स्वतंत्र ऑडिट की आवश्यकता पर जोर दिया है। संसद में विपक्ष के सदस्यों ने डिजिटल युग में साइबर सुरक्षा के बढ़ते खतरे का उल्लेख करते हुए मतदान प्रणालियों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ सुधार करने एवं जवाबदेही तय करने की बात कही है। सदन में स्वीकार किया गया है, चुनावी सुधार केवल तकनीकी बदलावों तक सीमित नहीं हो सकते। काले धन और चुनावी खर्च की सीमा के उल्लंघन ने चुनाव को बुरी तरह से प्रभावित करते हुए लोकतांत्रिक संतुलन को बिगाड़ा है। राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे में पारदर्शिता, चुनावी बॉन्ड, सरकारी खजाने से चुनाव के दौरान मतदाताओं के खाते में राशि ट्रांसफर करने एवं पैसे के बल पर चुनाव को प्रभावित करने, विवादित तंत्रों एवं पैसे के बल पर चुनाव को प्रभावित करने का उल्लेख संसद में करते हुए इनमें सुधार की मांग की गई है। उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड पर कड़े नियम बनाने के मांग और बहस ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है। कई सदस्यों ने मांग दोहराई, दोषी राजनीतिक व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए समयबद्ध न्यायिक प्रक्रिया को विकसित किया जाना जरूरी है। वोट चोरी’ से जुड़े आरोप लोकतंत्र में जनता के विश्वास को चोट पहुँचाते हैं। सदस्यों की मांग थी, संसद में उठे मुद्दों को केवल चर्चा और बहस की औपचारिकता नही माना जाए। संसद में चुनाव सुधार और वोट चोरी को लेकर जो चर्चा हुई है, उस पर तुरंत गंभीरता के साथ आधार बनाकर चुनावी प्रणाली को विश्वसनीय बनाने के लिए और चुनाव में लोगों का भरोसा बना रहे, उसके लिए आवश्यक परिवर्तन करने की जरूरत है। सरकार और चुनाव आयोग को सभी राजनीतिक दलों को भरोसे में लेकर चुनाव सुधार की दिशा में ठोस, समयबद्ध, पारदर्शी सुधार लागू किए जाने की दिशा में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। लोकतंत्र की शक्ति तभी सुरक्षित रह सकती है जब चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष, विश्वासप्रद और भविष्य की तकनीकी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो। इस पर सभी राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को विश्वास हो। संसद में हुई बहस ने देश को एक बड़ा संदेश दिया है। भारत सरकार और चुनाव आयोग के पास अब चुनाव सुधारों को टालने का विकल्प नहीं बचा है। जिस तरह के हालात पूरे देशभर में बने हैं। एसआईआर के बाद जिस तरह से मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा रहे हैं। मतदाता सूची समय पर राजनीतिक दलों और आम जनता के समक्ष नहीं रखी जा रही है। मतदान के बाद जिस तरह से मतदान का प्रतिशत बढ़ाया जाता है। वीवीपीएटी की मशीनों के पर्चियों की गणना नहीं की जाती है। उसके कारण राजनीतिक दलों और आम जनता का भरोसा चुनाव प्रक्रिया से खत्म होता जा रहा है। मतदाताओं का भरोसा पुनः मजबूत करने के लिए संसद में विपक्ष ने जिस तरह के सुझाव दिए हैं उन पर तुरंत सुधार किए जाने की जरूरत है। चुनाव आयोग की नियुक्ति और एसआईआर को चुनाव आयोग सरकार और न्यायपालिका की भूमिका को लेकर भी संसद में बहुत कुछ कहा गया है। जिस तरह से मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की गई है, न्यायपालिका से चुनाव से संबंधित मामलों की सुनवाई को लंबे समय तक टाला जा रहा है। उसके कारण चुनाव और चुनाव की विश्वसनीयता को लेकर लगातार शक-सुबहा बढ़ता ही चला जा रहा है। संसद में हुये इस विमर्श ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग तथा न्यायपालिका को एक मौका दिया है। समय रहते इस पर सार्थक पहल हो जाती है तो लोगों का इस पर भरोसा बना रहेगा। जिस तरह की हालत वर्तमान में देखने को मिल रही है सरकार चुनाव, आयोग और न्यायपालिका ने यदि अपनी भूमिका का सही तरीके से निर्वाह जिम्मेदारी के साथ नहीं किया तो आगे चलकर भारत में भी वही स्थिति बन सकती है जिस तरह की स्थिति बांग्लादेश में बनी थी। चुनावी व्यवस्था लोकतंत्र का आधार है। जहां पर नागरिक अपने अधिकार निर्वाचित प्रतिनिधियों को सौंपते हैं। यदि आम जनता को यह विश्वास नहीं होगा कि उसने जिसे वोट दिया है उसे वोट नहीं मिला तो ऐसी स्थिति में एक विद्रोह पनपता है। जनता के विद्रोह के सामने कोई भी शक्ति टिकती नहीं है। संसद में जिस तरह से चुनाव सुधार पर बहस हुई है, उसके बाद सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। चुनाव आयोग द्वारा पारदर्शिता के साथ चुनाव कराए जाएं। सभी राजनीतिक दलों को भरोसे में लिया जाए। इस तरह के कदम उठाए जाने की तत्काल जरूरत है। एसजे/ 10 ‎दिसम्बर /2025