भारत में जनगणना केवल आंकड़ों का संग्रह भर नहीं होती बल्कि यह वह आधारशिला है जिसके ऊपर देश की नीतियाँ, विकास योजनाएँ और नागरिकों के अधिकारों की संरचना खड़ी होती है। स्वतंत्रता के बाद से भारतीय जनगणना ने हमेशा समय की आवश्यकताओं के अनुसार स्वयं को विकसित किया है और अब एक बार फिर देश एक बड़े परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है। आगामी जनगणना दो चरणों में की जाएगी और इसका स्वरूप पहले की तुलना में अधिक आधुनिक, अधिक पारदर्शी और पूरी तरह से डेटा आधारित होगा। 2026 और 2027 में होने वाली यह प्रक्रिया न केवल जनसंख्या के ठीक-ठीक आंकड़े देगी बल्कि घरों और परिवारों की वास्तविक परिस्थितियों का अद्यतन चित्र भी प्रस्तुत करेगी।सरकार ने यह तय किया है कि पहला चरण वर्ष 2026 में होगा जिसमें घरों की लिस्टिंग और आवास संबंधी विस्तृत जानकारी एकत्र की जाएगी। यह चरण 30 दिनों के भीतर पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है और इसके लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपनी-अपनी टाइमलाइन तय करने की स्वतंत्रता दी गई है। यह चरण बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि घरों और परिवारों की सही पहचान आगे होने वाली जनसंख्या गणना की आधारशिला बनती है। वर्षों से यह शिकायत उठती रही है कि कई क्षेत्रों में परिवारों की वास्तविक संख्या और दस्तावेजी आंकड़ों में भिन्नता पाई जाती है। इसी पृष्ठभूमि में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर घरों के अद्यतन डेटा का संग्रह किया जा रहा है, ताकि नागरिकों की पहचान, उनके अधिकारों और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का वास्तविक मूल्यांकन संभव हो सके। दूसरा चरण वर्ष 2027 में आयोजित किया जाएगा जिसका मुख्य उद्देश्य देश की कुल जनसंख्या का विस्तृत और संरचित आंकड़ा प्राप्त करना है। सरकार ने 1 मार्च 2027 की रात 12 बजे को जनगणना की रेफरेंस डेट घोषित किया है। इसका अर्थ यह है कि गिनती का आधार वह स्थिति होगी जो देश में इस निर्धारित समय पर होगी। हालांकि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे बर्फीले क्षेत्रों में जनसंख्या गणना इससे पहले सितम्बर 2026 में ही कर ली जाएगी ताकि मौसम संबंधी बाधाओं से प्रक्रिया प्रभावित न हो। इस जनगणना का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इसमें देश की विविधता और सामाजिक संरचना को बेहतर समझने के लिए बेस्ट प्रैक्टिसेज और जाति आधारित डेटा संग्रह का भी समावेश किया जा सकता है। इन विषयों पर मंत्रालयों, विभिन्न यूज़र ऑर्गेनाइजेशन और विषय विशेषज्ञों के साथ विस्तृत चर्चा की जा चुकी है और अंतिम ड्राफ्ट को तैयार करने से पहले इसे फील्ड टेस्टिंग के लिए भी भेजा जाएगा। यह कदम अभूतपूर्व है क्योंकि इससे न केवल यह सुनिश्चित होगा कि प्रश्नावली व्यावहारिक है बल्कि यह भी कि गणना की विधि जमीनी हालात के अनुरूप है। सबसे बड़ा परिवर्तन यह है कि जनगणना लगभग पूरी तरह पेपरलेस होने जा रही है। इसका मतलब यह है कि गणनाकर्मी टैबलेट, मोबाइल ऐप और डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से डेटा संग्रह करेंगे। इससे समय की बचत होगी, मानवीय त्रुटियाँ कम होंगी और डाटा का सुरक्षित डिजिटलीकरण तत्काल संभव होगा। डिजिटल प्रक्रिया से पारदर्शिता भी बढ़ेगी क्योंकि डेटा सीधे सर्वर पर अपलोड होगा और किसी भी तरह की गड़बड़ी की संभावना अपने आप कम हो जाएगी। भारत में पहचान और दस्तावेजों के स्तर पर चल रही सफाई प्रक्रिया का असर भी आगामी जनगणना पर देखने को मिलेगा। सरकार ने 2020 में 2.49 करोड़ राशन कार्ड रद्द किए थे जो या तो डुप्लीकेट पाए गए, अपात्र लाभार्थियों से जुड़े थे या स्थायी स्थांतरण की वजह से उपयोग में नहीं थे। वर्तमान समय में 20.29 करोड़ राशन कार्ड सक्रिय हैं और 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन प्राप्त हो रहा है। यह सुधार जनगणना की विश्वसनीयता बढ़ाने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है क्योंकि सामाजिक योजनाओं के लाभार्थियों की वास्तविक संख्या का पता तभी चलता है जब डेटा सटीक हो। इसी तरह राशन कार्डों की सफाई प्रक्रिया यह संकेत देती है कि जनगणना भी इस बार अधिक शुद्ध और तथ्यात्मक होने वाली है। देश में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ाने की दिशा में हो रहे अन्य प्रयास भी महत्वपूर्ण हैं। सहारा के 6842 करोड़ रुपये के रिफंड की प्रक्रिया इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जिसके तहत लाखों जमाकर्ताओं को उनका पैसा वापस मिलने की राह खुली। इसी तरह फार्मा सेक्टर में शुरू किए गए व्यापक ऑडिट के तहत 700 से अधिक कफ सिरप निर्माताओं की जांच की जा रही है ताकि दवाइयों की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। यह सभी कदम बताते हैं कि राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में डेटा और पारदर्शिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। नई जनगणना भी इसी व्यापक सुधार यात्रा का एक स्वाभाविक विस्तार है।भारत में स्टार्टअप संस्कृति भी पिछले वर्षों में तेजी से बढ़ी है और देश में 1.97 करोड़ स्टार्टअप्स या उद्यमशील इकाइयों का सक्रिय रूप से कार्यरत होना भारतीय अर्थव्यवस्था के नए रूप को दर्शाता है। जनगणना के दौरान एकत्र होने वाला डेटा इन उद्यमों की गतिविधियों, स्थानीय रोजगार, इनोवेशन के केंद्रों और आर्थिक अवसरों के भूगोल को बेहतर समझने का अवसर देगा। इससे भविष्य की औद्योगिक नीति, कौशल विकास योजनाएँ, रोजगार मॉडल और स्टार्टअप सपोर्ट सिस्टम और अधिक प्रभावी बनाए जा सकेंगे। जब कोई देश अपनी जनसंख्या के बारे में तथ्यपूर्ण आंकड़े प्राप्त करता है तब वही डेटा आगे चलकर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास, परिवहन और सामाजिक सुरक्षा जैसी योजनाओं की मूल आधारशिला बनता है। भारत जैसे विशाल और विविधता से भरे राष्ट्र के लिए जनगणना वह आईना है जिसमें देश स्वयं को वस्तुनिष्ठ रूप से देख सकता है। जनगणना का आंकड़ा यह बताता है कि कौन-कौन से क्षेत्र सबसे तेज़ी से बढ़ रहे हैं, किन इलाकों में सुविधाओं की कमी है, किस वर्ग की आबादी किस गति से बढ़ रही है और कहाँ अधिक सरकारी निवेश की आवश्यकता है।आधुनिक जनगणना केवल यह नहीं बताती कि देश में कितने लोग रहते हैं बल्कि यह भी बताती है कि वे कैसे रहते हैं। उनके घरों की स्थिति क्या है, उनके पास कितनी सुविधाएँ हैं। वे किन व्यवसायों से जुड़े हैं, उनकी सामाजिक संरचना क्या है, उनकी आय का स्तर और शिक्षा की स्थिति कैसी है। इस जानकारी के आधार पर ही बीपीएल सूचियों का निर्माण होता है, सामाजिक योजनाओं का आवंटन होता है और भविष्य के लिए बजट तैयार किया जाता है। पेपरलेस जनगणना और घरों की अद्यतन लिस्टिंग से यह सुनिश्चित होगा कि देश की आर्थिक मदद वास्तविक पात्रों तक पहुँचे और योजनाएँ उनके जीवन में वास्तविक परिवर्तन ला सकें।भारत की आगामी जनगणना 2026-27 इसलिए भी ऐतिहासिक मानी जा रही है क्योंकि यह केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय पुनर्मूल्यांकन है। यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से भारत अपनी वर्तमान स्थिति को समझेगा, अपने भविष्य की दिशा तय करेगा और अपनी नीतियों को अधिक वैज्ञानिक और अधिक इंसान-केंद्रित बनाएगा। आने वाले वर्षों का भारत कितना समावेशी, कितना डिजिटल और कितना सशक्त होगा यह काफी हद तक इस जनगणना पर निर्भर करेगा।इसलिए यह कहा जा सकता है कि जनगणना 2026–27 भारत के विकासीय मानचित्र को नए सिरे से गढ़ने वाला वह राष्ट्रीय अभियान है जो आने वाले दशकों तक देश को नई दिशा देगा। यह जनगणना केवल एक सांख्यिकीय अभ्यास नहीं बल्कि भारत की नई पहचान, नए विश्वास Arya नए युग की ओर बढ़ने का निर्णायक क्षण है। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) ईएमएस/11/12/2025