- संगीत सम्राट तानसेन की कीर्ति का और छोर नहीं संगीत कुंभ तानसेन समारोह विश्व का ऐसा अनोखा संगीत समागम है, जो सत्ता और समाज के दशक दर दशक बदलते प्रतिमानों के बाबजूद आज भी अपने गरिमापूर्ण आयोजन के साथ संगीत तीर्थ ग्वालियर को पूर्णतः प्रदान कर रहा है, 101सालों के इस सफर में इस प्रतिष्ठित समारोह ने तवायफों के घुंघरूओं की झंकार से लेकर धुरंधर गान मनीषियों के आलाप तक कितने ही रंग देखें है, संगीत की आयु कितनी होती है? कोई नहीं जानता, मगर संगीत साधना के बल पर अजर-अमर बना जा सकता है। दुनिया भर के संगीत साधकों ने यह सब प्रमाणित भी किया है, कि कालजयी संगीत सम्राट तानसेन भी संगीत दुनिया के ऐसे दैदीप्यमान साधक रहे हैं। जिनका नाम पॉच शताब्दियों से अनवरत रूप से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के शिखर पर प्रकाशमान है। यह अलग बात है कि 15वीं शताब्दी के विख्यात संगीतज्ञ तानसेन के बारे में जितने तथ्य हैं उससे कहीं ज्यादा किंवदंतियां ध्रुपद शैली के गायक और दीपक राग के विशेषज्ञ तानसेन के बारे में प्रचलित है, कि तानसेन का जन्म ग्वालियर जनपद के ग्राम बेहट में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मकरंद पाण्डे और मां का नाम कमला था। तानसेन को बचपन में सब तन्ना, त्रिलोचन, तनसुख और रामतनु के नाम से पुकारते थे। जहां तक तानसेन के बचपन की घटनाओं का संबंध है, वह किंवदंतियों और जनश्रुतियों के जंजाल में काफी उलझी हुई है, उन्हें सुलझाना बड़े से बड़े इतिहासकारों के लिए भी कठिन हो रहा है,इस संबंध में असलियत सामने लाने के लिए अनुसंधान और शोध करने की आवश्यकता है। किंवदंती है कि, तानसेन जन्मजात गूंगे थे लेकिन बाल काल से ही संगीत के प्रति उनकी गहरी लगन थी। तन्ना पाण्डे अपने मवेशी को चराने के लिए प्रतिदिन झिलमिल नदी के किनारे ले जाते थे और फिर मवेशी को चरने के लिए छोड़कर वे पास के एक अति प्राचीन शिव मंदिर में शिव आराधना करने में मगन हो जाते थे। इतिहास से जुडे़ जानकार बताते हैं कि तन्ना की भक्ति भाव से भगवान शिव इतने खुश हुए, कि उन्होंने तन्ना को साक्षात दर्शन देकर आदेश पर दिया कि वह पूरी ताकत से तान छेड़े शिव शंकर के आदेश पर तन्ना ने जैसे ही अपनी तान छेड़ी तो तन्ना की तान का आवेग इतना तेज था कि शंकर जी की छोटी सी मढिंया तक ढेड़ी हो गई। स्वयं तन्ना भी इस चमत्कार से हक्के-बक्के रह गए। इतिहासकारों के मुताबिक तन्ना जैसे ही किशोरावस्था में आए तो वे संगीत की तालीम पाने के लिए गुरु की शरण में चले गए। गुरु ने जो सिखाया, प्रतिभाशाली तन्ना ने सीखा। उन्होंने पीर बाबा, मोहम्मद गौस से लेकर मथुरा के स्वामी हरिदास से संगीत के तमाम सारे गुर सीखे। तन्ना ने स्वामी हरिदास जी से संगीत की तालीम लेने के साथ ही पिंगल शास्त्र भी सीखा। उन्हें गौस साहब से गायन की तालीम ली, बताया जाता है कि तन्ना तानसेन को भारतीय संगीत के साथ ईरानी संगीत विद्या में भी दक्षता हासिल थी । तानसेन के बारे में जन श्रुतियां और इतिहास से जो निष्कर्ष निकलता है। उसके अनुसार तानसेन को संगीत से जो शोहरत मिली, वह स्वामी हरिदास और सूफी फकीर गौस मोहम्मद की देन थी। इतिहासकार गंगा सिंह भ्रमण, डॉ. हरिहर निवास द्विवेदी, डॉ. सरायू प्रसाद अग्रवाल एवं शिव सिंह सेंगर के शोध का भी यही निष्कर्ष है। हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि संगीत की विधिवत तालीम के लिए तानसेन ने स्वामी हरिदास और गौस मोहम्मद से उच्च शिक्षा लेने के पश्चात राजा मानसिंह तोमर द्वारा संचालित संगीत विद्यालय में भी दाखिला लिया था। संगीत की साधना करते-करते तन्ना पाण्डे जब तन्ना, त्रिलोचन, तनसुख और रामतनु से तानसेन हो गए तो उन्हें ध्रुपद में सिद्धहस्त माना जाने लगा। तानसेन ने सर्वप्रथम शेरशाह सूरी के बेटे दौलत खान के यहां राजश्रय पाया और फिर बान्धवगढ़( रीवा) के राजा रामचंद्र के दरबारी गायक बने। बान्धवगढ़( रीवा)के दरबारी गायक रहते हुए उन्होंने अकूत दौलत, मान-सम्मान और ख्याति प्राप्त की। दिलचस्प बात है कि तानसेन उनका नाम नहीं था। वह उनकी उपाधि थी, जो उन्हें बान्धवगढ़ के महाराज रामचंद्र से प्राप्त हुई थी। यह उपाधि इतनी प्रसिद्ध हुई कि उसने उनके मूल नाम को छिपा दिया। मुगल सम्राट अकबर के पास जैसे ही उनके चमत्कारिक गायन की खबर पहुंची, तो उन्होंने उनको अपने दरबार में बुला लिया। मुग़ल सम्राट अकबर तानसेन की संगीत में हासिल महारत से इस कदर खुश हुए कि उन्होंने अपने दरबार के नवरत्नों में उन्हें प्रथम स्थान तक दे दिया। इस तरह से 1619-20 में तानसेन का अकबरी दरबार में प्रवेश हुआ अकबर के आश्रय में रहने से तानसेन की प्रसिद्ध समस्त देश में व्याप्त हो गई थी, उन्हें मुगल सम्राट से अपूर्व आदर और विपुल वैभव प्राप्त हुआ था, उल्लेखनीय है कि तानसेन ने संगीत साधना के साथ ही संगीत शास्त्र पर आधारित तीन ग्रंथ संगीत सार, राग माला और गणेश स्त्रोत की रचना की थी,राग दरबारी कानडा, दरबारी आसावरी, मियां की तोड़ी मल्हार, दरबारी कल्याण, दरबारी तोड़ी, मियां की सारंग,का अविष्कार तानसेन द्वारा किया गया था,वहीं समय की मांग को देखते हुए उन्होंने ध्रुपद में चतुरंग और त्रिवट का गायन शुरू किया। उन्होंने अपनी संगीत की तपस्या को पूर्ण करने के लिए सितार से मिलती-जुलती वाद्य रबाव और रूद्रवीणा का भी आविष्कार किया। दरअसल में असलियत यह है कि तानसेन हकीकत में तानसेन थे। तानसेन यदि संगीत विद्या में पारंगत नहीं होते तो सम्राट अकबर उन्हें कंठाभरण,वाणी विलास उपाधि से अलंकृत नहीं करता। कड़वा सच तो यह है कि इस कालजयी संगीतकार तानसेन की समाधि पर पूर्व में रसिक जन स्वप्रेरणा से तानसेन संगीत समारोह में शिरकत करने आते थे ,20बी सदी की शुरुआत में ग्वालियर के सिंधिया राजघराने ने बाकायदा इस महान संगीतकार की स्मृति में तानसेन की समाधि पर सालाना तीन दिवसीय उर्स का आयोजन प्रारंभ कराया, यदि हम इस समारोह के पिछले 99बषों का सिंहावलोकन करें तो तो पायेंगे कि इसके स्वरूप में निरन्तर विकास हेतु परिवर्तन होते आए हैं। ग्वालियर स्टेट की ओर से 1924 में पहला उर्स कराया गया, जो बेहद ही सफल रहा। गायक डॉ. प्रभाकर गोहदकर के मुताबिक समारोह के प्रारंभिक बषों में कार्यक्रम के दौरान मशहूर तवायफे यहां अपनी प्रस्तुति देती थीं। तब लोग चार आने में तांगे से आयोजन स्थल पर पहुंचते थे। उस दौरान बिजली की भी समस्या थी। इसलिए संगीत प्रेमी स्वयं लालटेन लेकर जाते थे। उस वक्त बाबा कपूर की दरगाह पर रेबड़ी बांटी जाती थी, तानसेन समारोह 1924से1932तक एक दिवसीय रहा ,केवल एक दिन ही कलाकार सुर सम्राट को अपनी श्रद्धांजलि और स्वरांजलि देने बिना किसी पारिश्रमिक लिए आते थे,जब कलाकार अधिक संख्या में प्रस्तुति देने के लिए समारोह में शामिल होने आने लगे तो समारोह दो दिवसीय कर दिया गया, कुछ समय बाद समारोह में दो दिन में तीन सभाएं आयोजित की जाने लगी,यह क्रम सन् 1956तक चला,1957से समारोह का स्वरूप बदला व समारोह तीन दिन ग्वालियर में व चौथे दिन उनके पैतृक गांव बेहट में समापन कार्यक्रम आयोजित किया जाने लगा था, ग्वालियर में प्रतिबर्ष आयोजित किए जाने वाले तानसेन संगीत समारोह का इस साल 101वां वर्ष है , बीते 100वर्षों में इस समारोह ने अनेक उतार चढ़ाव देखे हैं,अनेक दैवी और प्राकृतिक विपदाओं को पार किया है और आज यह समारोह अद्वितीय स्थान रखता है, वर्तमान रूप में मनाए जाने वाले इस समारोह में अनेक विशेषताएंहै, संगीत सम्राट तानसेन की समाधि के करीब बना विशाल पंडाल संगीतकारोंकेलिए विशेष प्रेरणा स्रोत बन जाता है और दिन और रात को प्रतिकूल मौसम की परवाह किए बिना हजारों की संख्या में संगीत प्रेमी श्रोतागण निर्बाध रूप से यहां आते हैं और अपनी शान्ति पूर्ण उपस्थिति तथा रसास्वादन से समारोह को विशिष्टता प्रदान करते हैं, मूर्धन्य संगीत कार इस समारोह में विशुद्ध रुप से संगीत श्रद्धांजलि अर्पित करने यहां उपस्थित होते हैं,2011मेंभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के भोपाल मंडल द्वारा मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग को तानसेन समाधि, मोहम्मद गौस मकबरा परिसर हजीरा ग्वालियर में तानसेन संगीत समारोह आयोजित करने की अनुमति नहीं दी ,ऐसी स्थिति में तानसेन समारोह को सुर सम्राट तानसेन की समाधि से पांच किलोमीटर दूर मोतीमहल परिसर स्थित बैजाताल के खुले रंगमंच पर इस समारोह के तहत होने वाली संगीत सभाओं का आयोजन करना पड़ा था ,हालांकि उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत एवं कला अकादमी के उपनिदेशक राहुल रस्तोगी के प्रयासों से 2012में एएसआई ने तानसेन समारोह तानसेन की समाधि के निकट करने की अनुमति दे दी, संगीत सम्राट के सम्मान में तानसेन संगीत समारोह की यात्रा अनवरत रूप से जारी है। 2015में इसमें एक-के-बाद-एक कई नवाचार इसमें किए गए,मसलन इसे चार दिवसीय के स्थान पर पांच दिवसीय किया गया,1916में तानसेन समारोह में नया आयाम जुड़ा दुनिया के अलग अलग देशों के संगीतज्ञों को आमंत्रित कर उनकी प्रस्तुतियां कराई गई यह सिलसिला साल-दर-साल जारी है,राजा मानसिंह के दरबारी गायक तानसेन और बैजू बाबरा जिस किले के गुजरी महल में बैठकर अपनी लयकारी से सबका मन मोहते थे ,उसी गूजरी महल में तानसेन के बाद उनकी स्मृति में तकरीबन साढ़े पांच सौ साल बाद तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया की पहल पर संगीत के स्वर गूंजे। तानसेन के नाम पर शुरुआत मे कोई सम्मान नहीं दिया गया जाता था। लेकिन 1980 में तानसेन के नाम पर 5हजार रुप ए का अलंकरण देना प्रारंभ किया गया था जो वर्तमान में बढ़कर 5 लाख रुपए तक हो गया है। अब तानसेन अलंकरण के अलावा संगीत के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि नाटक के क्षेत्र में भी काम करने वाली संस्थाओं को सम्मानित किया जाता है,1985तक सम्मान की राशि 5हजार रुपये थी, वर्ष 1986 तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा ने उक्त राशि बढ़ाकर 50हजार रुपये कर दी , वर्ष 1990मेंइसे एक लाख रुपए कर दिया गया था,बर्ष 2015 में इसे बढ़कर दो लाख रुपए कर दिया गया , 2021में तानसेन संगीत समारोह का औपचारिक शुभारंभ करने आए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तानसेन सम्मान राशि को बढ़ाकर पांच लाख रुपए कर दिया, हालांकि इस बर्ष चयन समिति की बैठक न होने की वजह से किसी भी कलाकार के नाम का चयन न हो पाने की वजह से किसी भी कलाकार को तानसेन अलंकरण प्रदान नहीं किया गया था, अभी तक तानसेन सम्मान से पंडित कृष्ण राव शंकर पंडित, श्रीमती हीराबाई बडोदकर , उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पंडित रामचतुर, पंडित नारायण राव व्यास पंडित दिलीप चन्द्र बेदी , उस्ताद निसार हुसैन खां,ठाकुर जयदेव सिंह,बी आर देवधर, सुश्री गंगूबाई हंगल उस्ताद खादिम हुसैन खां,पंडित गजानन राव जोशी,सुश्री अंसगरी बाई, पंडित निवृत्ति बुआ सरनाईक, उस्ताद मुस्ताक़ अली, फिरोज दस्तूर, सुश्री मोगूबाई कुडीकर, उस्ताद नासिर अमीन उदीन डागर , पंडित भीमसेन जोशी, पंडित रामराव नायर, पंडित शरतचन्द्र आरोलकर, उस्ताद जियाफरीदुन डागर , पंडित एस सी आर भट्ट, उस्ताद असद अली खां,राजा छत्रपति सिंह, डॉ ज्ञान प्रकाश घोष , सुश्री गिरिजा देवी, पंडित हनुमान प्रसाद मिश्र,बाला साहेब पूछवाले, पंडित सियाराम तिवारी, पंडित सी आर व्यास, उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खां, उस्ताद अमजद अली खां,नियाज़ अहमद खां, पंडित दिनकर कायकिणी पंडित शिवकुमार शर्मा, सुश्री मालिनी राजुरकर सुश्री सुलोचना बृहस्पति, आचार्य पंडित गोस्वामी गोकुल़ोत्सव जी महाराज, उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान, पंडित अजय पोहनकर, विदुषी सविता देवी, पंडित राजन-साजन मिश्र, पंडित प्रभाकर कारेकर, पंडित विश्व मोहन भट्ट, पंडित अजय चक्रवर्ती,एल के पंडित , पंडित डालचंद शर्मा, पंडित कशालकर,पंडित विधाधर व्यास ,मंजू मेहता, सतीश व्यास, पंडित नित्यानंद हल्दीपुर, पंडित स्वप्न चौधरी, पंडित गणपति भटृ धारवाड़ को इस ख्याति प्राप्त तानसेन संगीत सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2024के राष्ट्रीय तानसेन अलंकरण से मुंबई के पंडित राजा काले और वर्ष 2025के लिए कोलकाता के तरुण भट्टाचार्य को विभूषित कियावत जायेगा, कालजयी संगीतकार तानसेन को समर्पित तानसेन समारोह देश की सांगीतिक दुनिया का सुप्रतिष्ठित आयोजन हैं, वहीं पिछले 100वर्षो से यह समारोह अपनी निरंतरता और गरिमा दोनों को बरकरार रखे हुए हैं, इस वर्ष इसका 101वां साल है,ग्वालियर में निरंतर आयोजित हो रहे इस संगीत समारोह में संभवत देश का ऐसा कोई शीर्षस्थ, अग्रणी, श्रेष्ठ और प्रतिभाशाली संगीतकार न होगा जिसने तानसेन समारोह में शिरकत न की हो, और शिरकत करना न चाही हो, गौरतलब है कि तानसेन अलंकरण सम्मान की शुरुआत वर्ष 1980 प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने की थी। वर्तमान में सम्मान पाने वाले कलाकार को पांच लाख रुपए नकद और प्रशस्ति पट्टिका भेंट की जाती है। तानसेन सम्मान संगीत के क्षेत्र में मध्य प्रदेश शासन की भावना और आकांक्षा के अनुरूप उत्कृष्ट प्रतिमानों की स्थापना में सहायक हुआ है, हालांकि पिछले कुछ सालों से मध्य प्रदेश सरकार के सांस्कृतिक महकमे ने इस पारंपरिक समारोह को वैश्विक संगीत समारोह में तब्दील करने का प्रयास किया है। इसमें तमाम सारे विदेशी संगीतज्ञों को शामिल किया है। इसका खुलकर विरोध भी हुआ है और समर्थन भी मिला। (लेखक के विषय में मध्य प्रदेश शासन से मान्यता प्राप्त - स्वतंत्र पत्रकार हैं।) ईएमएस / 15 दिसम्बर 25