नई दिल्ली(ईएमएस)। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम में संशोधन करने पर विचार करने को कहा ताकि अपराधियों के तेजाब हमले के पीड़ितों को ‘‘दिव्यांगजन’’ की श्रेणी में शामिल किया जा सके और उन्हें कल्याणकारी उपायों का लाभ मिल सके। केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार कानून में बदलाव पर विचार करने को तैयार है और उन्हें खुद इस अपराध के उस पहलू की जानकारी नहीं थी। पीठ ने अपने आदेश में कहा, भारत सरकार याचिका में उठाए गए सभी मुद्दों पर विचार करे... सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि याचिका में उठाए गए सभी मुद्दों पर विचार किया जाएगा और एक उपयुक्त नीतिगत ढांचा तैयार किया जाएगा। पीठ ने जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय को अपने अधिकार क्षेत्र में लंबित तेजाब हमले के सभी पांच मामलों में सुनवाई में तेजी लाने का निर्देश दिया। यह बताए जाने पर कि तेजाब हमले के पीड़ितों को राज्य सरकारों से मुआवजे के रूप में तीन लाख रुपये से अधिक नहीं मिलते हैं, प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह इस पहलू पर गौर करेंगे। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने तेजाब हमले की पीड़िता शाहीन मलिक द्वारा दायर एक जनहित याचिका में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाया है। इससे पहले पीठ ने चार दिसंबर को सभी उच्च न्यायालयों की रजिस्ट्रियों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में लंबित तेजाब हमलों के मामलों का ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया था।मलिक ने अपनी याचिका में कानून के तहत दिव्यांगजन की परिका विस्तार करने का अनुरोध किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि तेजाब हमले के कारण आंतरिक अंगों की जानलेवा क्षति झेलने वाले पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा और चिकित्सा देखभाल सहित अन्य राहतें मिल सकें। वीरेंद्र/ईएमएस/12दिसंबर2025