नई दिल्ली (ईएमएस)। क्या आप जानते हैं कि ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला पूरी तरह से गुप्त रखा था? लेखक आदित्य अवस्थी की किताब दास्तान ए दिल्ली के अनुसार, राजधानी स्थानांतरण का यह पूरा ऑपरेशन सीसेम प्रोजेक्ट नाम के एक कोडनेम के तहत चलाया गया था। ब्रिटिश राज को इस बात का डर था कि अगर राजधानी बदलने की जानकारी पहले ही कलकत्ता के प्रभावशाली लोगों और व्यापारियों को पता चल गई, तो वे हंगामा खड़ा कर सकते थे। यही वजह थी कि किंग जॉर्ज पंचम समेत सिर्फ 20-25 लोगों को ही इस भनक थी। दावा किया जाता है कि तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग को भी इसका पता नहीं था। इतिहासकार इसे बेस्ट केप्ट सीक्रेट ऑफ इंडिया भी बताते हैं। 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार में किंग जॉर्ज पंचम ने 80 हजार से ज्यादा की भीड़ के सामने यह सामान्य दावा किया कि सरकार कलकत्ता से दिल्ली राजधानी स्थानांतरित करने के लिए कटिबद्ध है। राजधानी स्थानांतरित करने की असली घोषणा तो 20 मार्च 1912 को हुई थी, जिसके बाद ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को नई दिल्ली के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1911 में आज ही ब्रिटेन के किंगजार्ज पंचम ने भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की थी। 1905 में बंगाल बंटवारे के बाद देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया था। इसी वजह से अंग्रेजों ने दिल्ली को राजधानी बनाने का निर्णय लिया। 1911 में राजधानी बदलना केवल प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य का एक राजनीतिक दांव भी था। 1905 में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को विभाजित किया था, जिससे वहां राष्ट्रवादी भावनाएं और भड़क गई थीं। स्वदेशी आंदोलन का जन्म हुआ। अंग्रेजों के लिए वहां शासन करना मुश्किल हो गया। ब्रिटिशों ने प्रशासनिक केंद्रों को अलग-थलग करने के लिए कलकत्ता से छुटकारा पाना चाहा। दिल्ली को नई राजधानी बनाने का सबसे मुख्य कारण इसकी लोकेशन थी, ये देश के बीचोंबीच है। कलकत्ता देश के पूर्व किनारे पर था, जहां से शासन चलाना थोड़ा मुश्किल होता था। दिल्ली का रेल और सड़क मार्ग से जुड़ाव भी बेहतर था। गर्मियों के दौरान कलकत्ता के बजाय दिल्ली से शिमला पहुंचना भी आसान था। लुटियंस और बेकर ने वायसराय लॉर्ड हार्डिंग को 25 अगस्त 1911 को लिखे पत्र में साफ किया था कि दिल्ली उत्तर भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक राजनीति के संदर्भ में उपयुक्त है। दिल्ली सदियों से भारत की राजधानी रही थी। पुरानी दिल्ली के किले और शहर की भव्यता इसे ऐतिहासिक रूप से भी मुफीद जगह बनाती थी। राजधानी की घोषणा के बाद प्रशासनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जिस नए शहर का जन्म हुआ, उसे नई दिल्ली का नाम दिया गया। सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर इसके आर्किटेक्ट थे। नई दिल्ली बनाने के लिए लुटियंस और बेकर ने जो स्थान चुना, वो था शाहजहानाबाद का दक्षिणी मैदानी इलाका और रायसीना की पहाड़ी पर वायसराय हाउस, यही आज राष्ट्रपति भवन है। राजपथ, नार्थ-साउथ ब्लॉक, संसद भवन आदि की रूपरेखा तैयार की गई। 1927 में इसका नाम नई दिल्ली रखा गया और 1931 में यह आधिकारिक रूप से भारत की राजधानी बन गई। ढिल्लू से दिल्ली या ढीली से बनी दिल्ली ? दिल्ली नाम को लेकर भी कई रोचक कहानियां हैं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि दिल्ली का नाम मौर्य वंश के राजा ढिल्लू या दिल्लू के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इसे पहली बार राजधानी बनाया। कुछ लोग मानते हैं कि यह इंद्रप्रस्थ है, क्योंकि दिल्ली को पहले इसी नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि पांडवों ने इसे बसाया था। वहीं, चंदबरदाई रचित पृथ्वीराज रासो के अनुसार दिल्ली का नाम ढिली से निकला। एक किंवदती के मुताबिक तोमर वंश के राजा अनंगपाल ने यहां पर लोहे का एक स्तंभ यानी खंभा लगवाया था, जो ढीला पड़ गया। इसे सुधारने के सारे प्रयास नाकाम रहे, जिसकी वजह से लोग इस क्षेत्र को ढिल्ली कहने लगे। सुदामा नरवरे/ 13 दिसंबर 2025