पहले उनके फेफड़े पत्थर हुए, फिर देह मिट्टी...अब किस्मत में है विधवा होने का ठप्पा नई दिल्ली,(ईएमएस)। मध्यप्रदेश का पन्ना क्षेत्र हीरों की खदानों के लिए दुनियाभर में जाना जाता है, लेकिन कम लोग ही जानते होंगे कि यहां कि सिलिका डस्ट लोगों को गंभीर बीमारी में डाल देती है। ऐसी ही दर्दभरी कहानियों को जन्म देने वाली सिलिकोसिस बीमारी के बारे में यहां के रहवासी बात करते देखे जाते हैं। 35 साल के थे, जब एक दिन वहां अचानक खत्म हो गए। उनकी मौत पर डॉक्टर बताते, फेफड़ों में धूल भर गई थी। उनके जाने के बाद तीन बच्चा का पालन-पोषण किया। अब चेहरा भी ठीक से याद नहीं। लेकिन दुख भूलता कहां है! पैंतीस से पैंतालीस स्टोन खदानों में काम करते पुरुष इसी उम्र तक पहुंच पाते हैं। इसका मुख्य कारण सिलिकोसिस बीमारी है। खदानों में काम के दौरान सिलिका डस्ट सांस के जरिए लंग्स तक पहुंचकर जम जाती है और फेफड़े सख्त हो जाते हैं। इसके बाद मरीज ठीक से सांस नहीं ले पाता। आखिर-आखिर में थकान, तेज बुखार के साथ मुंह से खून आने लगता हैं, और उसकी मौत हो जाती है। यह बीमारी लाइलाज है, इस महंगे इलाज से सिर्फ मैनेज कर सकते हैं, वहां भी कुछ समय के लिए। आदिवासी मोहल्ले के ज्यादातर लोग स्टोन माइन्स में काम करते रहे। यही वहां समुदाय है, जिसपर बीमारी की गाज गिरी। इसमें कुल 70 विधवाएं हैं, जो गांव में हैं। इसके अलावा काफी महिलाएं बाहर जा चुकीं है। आदिवासी गांव में रहने वाली महिला बताती हैं कि मेरी पसंद की शादी थी। जब ब्याह के बाद पहली बार मायके गई, सब परेशान थे। एक रिश्तेदार ने बता दिया था कि इस गांव में औरतें जल्दी विधवा हो जाती हैं। तब अनसुना कर दिया, लेकिन बेटी के होने पर डॉक्टर ने भी कह दिया कि बेटी को बीमारी से दूर रखना। मैं डर गई। न कहीं उठने-बैठने जाती हूं, न खाने-पीने का लेन-देन रखा। अपने नाम की तरह ही धूपधुली ये हंसोड़ युवती टीबी कहते हुए वाकई डरी हुई दिखती है। यहां हर घर में कोई न कोई विधवा है। जो भी पुरुष पत्थर खदान में काम करते हैं, 40 साल के होते-होते खत्म हो जाते हैं। 60 साल के दो-चार आदमी ही गांव में मौजूद है। मजदूरी करने पन्ना चली जाती हैं, या फिर किसी और बड़े शहर। बाल-बच्चों को भी साथ लिए जाती हैं। अभी भी बहुत-सी बाहर रह रही हैं। जिनकी उम्र कम है, वे दिल्ली चली जाती हैं। जो काफी साल पहले पति को खो चुकीं, वे बाकी हैं। हमें ठहरने का कहते हुए रोशनी ऐसी महिलाओं को एक जगह बुलाने का जिम्मा लेती हैं। एक-एक करके कुछ ही मिनटों में सात-आठ महिलाएं जमा हो जाती हैं। वे ऐसी गर्मजोशी से मिलती हैं, जैसे मैं उनकी पड़ोसी हूं जो छुट्टियां बिताने बाहर गई थी। आशीष दुबे / 13 दिसंबर 2025