13-Dec-2025
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कोलकाता,(ईएमएस)। पश्चिम बंगाल के मुरशिदाबाद जिले में तृणमूल कांग्रेस से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर बाबरी मस्जिद की तर्ज पर मस्जिद निर्माण के अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा रहे हैं। 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर आधारशिला रखने के बाद से अब तक लगभग 5 करोड़ रुपये का चंदा जुटाया जा चुका है। 23 बीघा भूमि पर प्रस्तावित इस मस्जिद के निर्माण की जिम्मेदारी संभाल रही समिति के सदस्य रोजाना शाम को दान पेटियों से एकत्र धन गिनते हैं। हाल ही में एक दिन में 23 लाख रुपये से अधिक नकद के साथ सोने की अंगूठी, नथ और बालियां भी दान में मिलीं। चंदा देश-विदेश से विभिन्न माध्यमों से आ रहा है, जिसमें नकद, ऑनलाइन ट्रांसफर और गहने शामिल हैं। हुमायूं कबीर ने बताया कि एक व्यक्ति ने 1 करोड़ रुपये देने का वादा किया था, जो अभी प्राप्त नहीं हुआ है। वे विदेशी फंडिंग के लिए बैंकिंग व्यवस्था स्थापित करने के बाद कतर, सऊदी अरब, बांग्लादेश और इंग्लैंड सहित अन्य देशों से और अधिक धन की उम्मीद कर रहे हैं। आधारशिला समारोह में भारी समर्थन मिलने से वे अपनी नई राजनीतिक पारी को लेकर भी उत्साहित हैं। पार्टी से निलंबित होने के बावजूद हुमायूं कबीर का राजनीति छोड़ने का कोई इरादा नहीं है। वे बंगाल की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का दावा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद वे किंगमेकर बनेंगे और उनके बिना कोई सरकार नहीं बन सकेगी। भरतपुर से विधायक कबीर 17 दिसंबर को विधानसभा सत्र में उपस्थित रहेंगे, लेकिन इस्तीफा देने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। जनवरी में इस्तीफे पर विचार करने की बात कही है। 22 दिसंबर को वे अपनी नई पार्टी का शुभारंभ करने वाले हैं, हालांकि नाम अभी गोपनीय है। पहले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से गठबंधन की उम्मीद थी, जो पूरी नहीं हुई। अब मुरशिदाबाद में कांग्रेस और वाम मोर्चा के साथ सीट बंटवारे की योजना है, जिसकी घोषणा पार्टी गठन के बाद होगी। इस बीच, तृणमूल कांग्रेस ने कबीर के इस एजेंडे से पूरी तरह दूरी बना ली है। पार्टी का मानना है कि यह उनकी समावेशी राजनीति के सिद्धांतों के विपरीत है। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाता लगभग 30 प्रतिशत हैं, जबकि मतुआ जैसे हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के वोट भाजपा और तृणमूल के बीच बंटे हैं। आधारशिला वाले दिन तृणमूल ने एकता दिवस मनाकर सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश दिया। हुमायूं कबीर का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। कांग्रेस से तृणमूल में आए कबीर सत्ताधारी दल के पहले कार्यकाल में जूनियर मंत्री रहे। 2015 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए छह साल निष्कासित हुए, फिर 2018 में भाजपा जॉइन की, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में तृणमूल उम्मीदवार से हार गए। निष्कासन पूरा होने पर फिर तृणमूल में लौटे। इस विवादास्पद प्रोजेक्ट और नई पार्टी से बंगाल की राजनीति में नया मोड़ आने की संभावना है। वीरेंद्र/ईएमएस/13दिसंबर2025 ------------------------------------