लेख
13-Dec-2025
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भारत की राजनीति में जब-जब केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की स्थिति बनती है, तब ऐसे समय में लोकतांत्रिक संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। ताजा मामला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का है। जिन्होंने एसआईआर फॉर्म भरने से इंकार कर दिया है। उन्होंने कहा, कि उनका जन्म भारत में हुआ है। वह कई बार सांसद रह चुकी हैं। केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं। वर्तमान में मुख्यमंत्री हैं। उन्हें अपनी नागरिकता प्रमाणित करने की कोई जरूरत नहीं है। बगावती तेवरों के साथ अब वह दिल्ली में धरने के रूप में आर-पार की लड़ाई लड़ने की तैयारी में हैं। ममता दीदी का यह कदम चुनाव आयोग की एसआईआर की कार्यवाही को नकारने का मामला नहीं है। इसके पीछे गहरे राजनीतिक नागरिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों के सवाल छिपे हुए हैं। ममता बनर्जी पिछले कई वर्षों से केंद्र सरकार की नीतियों और निर्णयों को चुनौती देती रही हैं। केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार के साथ आर्थिक एवं राजनीतिक लड़ाई लड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। फिर चाहे मनरेगा के मजदूरों का मामला हो, या किसानों का मामला हो, सब में पश्चिम बंगाल की उपेक्षा की गई है। केंद्र सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल सरकार के साथ आर्थिक भेदभाव भी किया गया है। ममता दीदी के सिर के ऊपर से पानी गुजर गया है। इस बार उनका तेवर और तीखा है। एसआईआर फॉर्म न भरना सीधे तौर पर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाना है। इसमें वह अब आम जनता को भी शामिल करने जा रहीं हैं। जिनके वोट काटे जाएंगे वह भी आक्रामक तरीके से इसका विरोध करने दिल्ली और पश्चिम बंगाल के सभी जिलों में आंदोलन के लिए एकजुट हो सकते हैं। यह संकेत देता है, ममता बनर्जी ने जांच एजेंसियों और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करते हुए विद्रोही तेवर में आ गई हैं। उनके मुताबिक, एसआईआर फॉर्म महज एक चुनावी प्रक्रिया नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव बनाने और गड़बड़ी करके चुनाव जीतने का औजार बन चुका है। ममता बनर्जी का यह धरना केंद्र और राज्य के संबंधों में बढ़ती खाई से जोड़कर देखा जा रहा है। दिल्ली में धरना देने का निर्णय साधारण विरोध नहीं है। यह उस राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें ममता बनर्जी अपने अस्तित्व के संघर्ष को राष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहती हैं। 2024 के बाद के राजनीतिक माहौल में इंडिया गठबंधन में ममता बनर्जी शामिल नहीं थीं। विपक्ष बिखरा हुआ दिख रहा था। वर्तमान स्थिति में ममता बनर्जी को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए विपक्षी एकता में अपने आपको सशक्त विपक्षी नेता के चेहरे के रूप में स्थापित करने का अवसर भी माना जा रहा है। दिल्ली का धरना उन्हें राष्ट्रीय मीडिया का मंच देगा। सवाल यह भी है, केंद्र सरकार और राज्यों के बीच में जिस तरह का टकराव लगातार बढ़ रहा है, वह लोकतंत्र के हित में है? केंद्र और राज्य दोनों का दायित्व है, वह संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें। पिछले कुछ वर्षों से जांच एजेंसियां राज्यपाल तथा केंद्र की आर्थिक नीतियों में राज्यों के साथ जो भेदभाव किया जा रहा है। केंद्र सरकार राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोपों में घिरी है। जिन-जिन राज्यों में गैर भाजपाई सरकारें हैं, उन राज्यों के साथ केंद्र सरकार के संबंध ठीक नहीं हैं। जांच एजेंसियों और राज्यपालों के माध्यम से विपक्षी दलों की सरकारों को अस्थिर करने की प्रक्रिया पिछले कई वर्षों से चल रही है। चुनाव आयोग द्वारा, जिस तरह चुनाव प्रक्रिया का केंद्रीकरण किया गया है। चुनाव आयोग खुलकर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में काम करता हुआ नजर आ रहा है। विपक्षी दलों की राज्य सरकारें केंद्र सरकार द्वारा जिस तरह के हमले किए जा रहे हैं, उसे अब राज्य सरकारें राजनीतिक हमला बताकर विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर रही हैं। देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है। संवैधानिक संस्थाओं के बीच टकराव बढ़ रहा है। अब तो इसके दायरे में न्यायपालिका भी आ रही है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से भाजपा के पक्ष में अलग और विपक्षी दलों के प्रति अलग रुख देखने को मिल रहा है। यह स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच जो टकराव देखने को मिल रहा है, इसका शीघ्र समाधान होना चाहिए। इस तरह के टकराव से स्थितियां खराब होंगी। संवाद और अपनी-अपनी सीमा रेखा पर रहकर समन्वय बनाने की जिम्मेदारी सभी राजनीतिक दलों की है। ममता बनर्जी का यह कदम, केंद्र के लिए एक बड़ा संदेश है। अति सर्वत्र वर्जयेत, भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए विपक्षी दलों को पूरी तरह से नेस्त-नाबूत करने की जो रणनीति पर काम किया है, ऐसी स्थिति में विपक्ष अब अपने अस्तित्व की रक्षा करने के लिए डू एंड डाई की स्थिति में आ गया है। विपक्ष अब चुप नहीं बैठेगा। यह बगावती तेवर आने वाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीति को बगावत की ओर ले जाते हुए दिख रहे हैं। जिस तरह से महंगाई, बेरोजगारी और अन्य परेशानी आम लोगों को झेलनी पड़ रही हैं, उससे हर राज्य में आंदोलन बढ़ते चले जा रहे हैं। कानून व्यवस्था की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब हो रही है। अपराध बढ़ रहे हैं। हताशा में आत्महत्या करने की घटनाएं बढ़ती चली जा रही हैं। अधिकांश आबादी कर्ज के बोझ से दबी हुई है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सभी संवैधानिक संस्थाओं को अपनी जिम्मेदारी सजगता से पूरी करना होगी। जनता सब देख रही है, सब समझ रही है। ज्यादा दिन तक सपने नहीं दिखाए जा सकते हैं। ममता बनर्जी शक्ति-प्रदर्शन के जरिये अपनी सत्ता को सुरक्षित रखना चाहती हैं। दिल्ली का धरना एक राजनीतिक घटना भर नहीं होगी। वर्तमान में भारत के सामने जो चुनौतियां हैं। इस तरह के धरने-प्रदर्शन आम जनता की आवाज के रूप में सामने आते हैं। ममता बनर्जी का यह धरना सिर्फ पश्चिम बंगाल बनाम केंद्र के बीच टकराव का नहीं रह गया है। बल्कि भारतीय नागरिकों की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकार के साथ-साथ जीवनयापन के लिए एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए, तभी हम अपने लोकतंत्र को बेहतर दिशा की ओर ले जा पाएंगे। समय अपनी गति से भागता है। जिस तरह से दुनिया की आर्थिक व्यवस्था गड़बड़ा रही है, उसके कारण दुनिया के कई देशों में लगातार धरने प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकारें जल्दी-जल्दी गिर रही हैं और बन रही हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों में जो राजनीतिक दल अस्तित्व में हैं, उन्हें गंभीरता के साथ इस बात को स्वीकार करना होगा। एसजे/ 13 ‎दिसम्बर /2025