15-Dec-2025


- टाइगर रिजर्व और राष्ट्रीय उद्यानों का भी बनाया जाएगा जोनल मास्टर प्लान भोपाल (ईएमएस)। मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व और राष्ट्रीय उद्यानों का भी अब जोनल मास्टर प्लान बनाया जाएगा। इसकी मॉनीटरिंग के लिए नियमाक प्राधिकरण निगरानी समिति की स्थापना की जाएगी। इको सेंसिटिव जोन के भीतर विकास और सामुदायिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाने के लिए यह प्लान तैयार किया गया है। जिससे स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र संरक्षित रहे और साथ ही उत्तरदायी विकास को भी बढ़ावा मिल सके। इसके साथ ही वर्षा जल संचयन, देशी प्रजातियों के वृक्षों का रोपण, जंगली पशुओं के लिए अलग मार्ग और प्रदूषण रोकने समेत अन्य गतिविधियों के लिए निर्देश जारी किए गए हैं। इको सेंसेटिव जोन की सीमा से 1 किलोमीटर के दायरे में नए होटलों और रिसॉर्ट्स जैसे किसी भी नए व्यावसायिक निर्माण की अनुमति नहीं मिलेगी। हालांकि मौजूदा होटलों और रिसॉर्ट्स के नवीनीकरण और पुनर्निर्माण की अनुमति रहेगी। इसी प्रकार 20 डिग्री से अधिक तीव्र ढलान वाले क्षेत्रों का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए केवल सीमित गतिविधियों की अनुमति रहेगी। हालांकि स्थानीय निवासियों को आवासीय उद्देश्यों के लिए अपनी भूमि पर निर्माण कार्य करने की अनुमति रहेगी। जबकि उद्योग, होम स्टे, नए वाणिज्यिक उपक्रम, होटल और रिसॉर्ट्स सहित अन्य सभी गतिविधियां पर्यावरण की रक्षा और ढलान के और अधिक क्षरण को रोकने के लिए सख्ती से प्रतिबंधित रहेंगी। 50 मीटर दायरे में सीमिति गतिविधियों की अनुमति नदियां और बड़े जलाशयों के आसपास बफर जोन को परिभाषित करने के लिए भी दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। इन बफर क्षेत्रों के भीतर, केवल संरक्षण गतिविधियों, कृषि और संबद्ध प्रथाओं की ही अनुमति होगी। पारिस्थितिक संतुलन की रक्षा के लिए अन्य सभी गतिविधियों पर रोक रहेगी। बड़ी नदियों और तालाबों के एफएल या एफआरएल से न्यूनतम 50 मीटर की दूरी पर ही अनुमति मिलेगी। जबकि छोटे जल निकायों के किनारों से बफर के रूप में न्यूनतम 15 मीटर की दूरी आवश्यक होगी। टाइगर रिजर्व में इन कार्यों की होगी अनुमति राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के बाघ गलियारों संबंधी दिशानिर्देशों के अनुसार, आबादी भूमि पर और 100 मीटर के बफर क्षेत्र के भीतर आवासीय निर्माण की अनुमति है। गैर-आबादी भूमि में, 0.1 के एफएआर प्रतिबंध के साथ आवासीय निर्माण की अनुमति है। इसके साथ ही सडक़ों के निर्माण और चौड़ीकरण की अनुमति भी रहेगी। वहीं नए व्यावसायिक निर्माण पूरी तरह से प्रतिबंधित रहेंगे। जबकि मधुमक्खी पालन, मछली पालन, रेशम पालन, पशुपालन जैसी आजीविका गतिविधियां को अनुमति दी जा सकती है। इसके साथ ही संरक्षित क्षेत्र से 1 किमी के भीतर व पहाड़ी दलों पर स्थित मंदिरों में केवल मौजूदा ढांचे के अनुरूप विकास की अनुमति दी जाएगी। हर 2 किलोमीटर लगाए जाएंगे साइनेज संरक्षित वचन क्षेत्रों में अक्सर साइनेज की आवश्यकता होती है, क्योंकि इन क्षेत्रों में पशुओं की आवाजाही और निवास होता है। इसलिए प्रत्येक सडक़ के किनारे 2 किमी की दूरी पर साइनेज लगाए जाएंगे। इस क्षेत्र में प्रत्येक 2 किमी पर पशु क्रॉसिंग संरचनाओं पर चेतावनी के लिए संकेत लगाने का प्रस्ताव है। वहीं कृषि क्षेत्रों में जंगली सूअरों को छोडक़र न्यूनतम आबादी होती है। इस क्षेत्र में संकेत केवल प्रमुख सडक़ों पर 5 किमी की दूरी पर लगाए जाने चाहिए। वन्यजीवों के लिए बनाए जाएंगे अंडरपास संरक्षित क्षेत्रों में वन्यजीव सुरक्षा बढ़ाने और वाहन संबंधी दुर्घटनाओं को कम करने के लिए विशेष रूप से वन और बस्ती क्षेत्रों में, वाहनों की गति को नियंत्रित करने के लिए स्पीड ब्रेकर, हंप और रंबल स्ट्रिप्स लगाने का प्रस्ताव है। वहीं वन्य जीवों के सडक़ पार करने के लिए क्रासिंग और सुरंग बनाए जाने का प्लान भी है। वहीं संरक्षित क्षेत्रों में सडक़ों के किनारे 100-200 मीटर पर घने वृक्ष लगाने के निर्देश दिए गए हैं। जिससे जंगल के अंदर ध्वनि प्रदूषण न हो। सफारी के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ शुभरंजन सेन ने बताया कि प्रदेश के ज्यादातर अभयारण्य का इको सेंसिटिव जोनल मास्टर प्लान तैयार हो चुका है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है। अगर मास्टर प्लान नहीं बनेगा, तो 10 किमी के दायरे में निर्माण और विकास गतिविधियां प्रतिबंधित रहेंगी। शुभरंजन सेन ने बताया कि टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क के बफर जोन में गैर परंपरागत बिजली के स्त्रोत जैसे सोलर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाएगा। जंगल में कार्बन उत्सर्जन और ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए सफारी में केवल इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग किया जाएगा। अवैध शिकार रोकने ड्रोन व थर्मल कैमरों से निगरानी शुभरंजन सेन ने बताया कि जंगल में वर्षा जल के संचयन के लिए छोटे तालाब व चेक डैम बनाए जाएंगे। पहाड़ों में मिट्टी का कटाव रोकने के लिए बबूल व ल्यूकेना जैसे पौधे लगाए जाएंगे। इसके साथ जोनल मास्ट प्लान में अवैध शिकार रोकने के लिए भी कठोर कदम उठाए गए हैं। वनकर्मियों की गश्त बढ़ाई जाएगी। जंगल में वन्य जीवों की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे। इसके साथ ही थर्मल और ड्रोन कैमरों से भी जंगल की निगरानी की जाएगी। 1 लाख किलोमीटर से अधिक संरक्षित क्षेत्र वर्तमान में मध्य प्रदेश में बाघों के संरक्षण के लिए 9 टाइगर रिजर्व हैं। एमपी में वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों का क्षेत्रफल 11198.954 वर्ग किलोमीटर है। यहां 11 राष्ट्रीय उद्यान व 24 वन्यप्राणी अभयारण्य हैं। कान्हा, बांधवगढ, पन्ना, पेंच, सतपुडा व संजय राष्ट्रीय उद्यानों और इनके निकटवर्ती 7 अभयारण्यों को मिलाकर प्रदेश में पहले 6 टाइगर रिजर्व बनाए गए थे। इसके अलावा 2023 में वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व का गठन नौरादेही एवं वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य को शामिल कर किया गया। रातापानी टाइगर रिजर्व का गठन दिसंबर 2024 में हुआ। माधव नेशनल पार्क को भी टाइगर रिजर्व का दर्जा मिल चुका है। इन सभी का इको सेंसिटिव जोनल मास्टर प्लान तैयार हो रहा है। विनोद / 15 दिसम्बर 25