लेख
17-Dec-2025
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सिडनी में हुआ आतंकी हमला न केवल निंदनीय है, बल्कि यह उस वैश्विक सच्चाई की ओर भी इशारा करता है जिसमें आतंकवाद मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। यह घटना किसी एक देश, धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें उस विकृत सोच में हैं जो निर्दोष लोगों के खून से अपनी पहचान बनाना चाहती है। पहलगाम में घूमने आए निहत्थे पर्यटकों पर हमला हो या फिर सिडनी में यहूदी समुदाय के पवित्र हुंनक्का त्योहार के दौरान सामूहिक गोलीबारी।दोनों घटनाएं बताती हैं कि आतंक का कोई चेहरा नहीं होता, उसका कोई मजहब नहीं होता और उसकी कोई सीमा नहीं होती।सिडनी की घटना ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। त्योहार का माहौल, श्रद्धा और उल्लास से भरा जमावड़ा, सैकड़ों लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएं दे रहे थे।और तभी गोलियों की तड़तड़ाहट ने खुशियों को मातम में बदल दिया। इस सामूहिक गोलीबारी में 11 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि एक और व्यक्ति ने बाद में दम तोड़ दिया। बारह निर्दोष जानें और बारह परिवारों की दुनिया उजड़ गई। यह आंकड़ा महज संख्या नहीं है, बल्कि उन सपनों, उम्मीदों और रिश्तों का अंत है जो अचानक छिन गए। गोलीबारी की सूचना मिलते ही ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए कार्रवाई शुरू कर दी। सुरक्षा बलों की तेजी और पेशेवर रवैये ने यह सुनिश्चित किया कि स्थिति और अधिक भयावह न हो। इसी बीच एक आम नागरिक की असाधारण हिम्मत सामने आई, जिसने हमलावर से भिड़कर उसकी बंदूक छीन ली। यह साहसिक कदम बताता है कि आतंक के सामने भी इंसानी जज्बा हार नहीं मानता। उस नागरिक की हिम्मत की दाद देनी होगी, क्योंकि ऐसे क्षणों में एक व्यक्ति का साहस कई जिंदगियां बचा सकता है। ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि हमले के पीछे के मकसद की जांच जारी है। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि हमला किस उद्देश्य से किया गया था, लेकिन जिस तरह यहूदी समुदाय को त्योहार के दौरान निशाना बनाया गया, उससे आशंका गहराती है कि यह नफरत से प्रेरित हिंसा हो सकती है। घटना के बाद पुलिस को बांडी क्षेत्र के कैपलेप परेड में एक संदिग्ध गाड़ी मिली, जिसमें हथियार होने के साथ-साथ विस्फोटक होने की भी आशंका जताई जा रही है। यह तथ्य दर्शाता है कि हमले की साजिश कितनी व्यापक और खतरनाक हो सकती थी। इस पूरी घटना में एक और चौंकाने वाला पहलू यह रहा कि गोलीबारी में बाप-बेटे की संलिप्तता सामने आई। एक ही परिवार के दो लोगों द्वारा इस तरह की हिंसा को अंजाम देना समाज के लिए गंभीर चेतावनी है। यह दिखाता है कि कट्टरता और नफरत की सोच किस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी पनप सकती है, अगर समय रहते उसे रोका न जाए। पुलिस ने यहूदी समाज को निशाना बनाने वाले आरोपियों को दबोच लिया है, लेकिन सवाल यह है कि ऐसी सोच पनपती कहां से है और इसे खत्म कैसे किया जाए। आतंकवाद आज एक नासूर बन चुका है, जो लगातार मानवता के शरीर को खोखला कर रहा है। यह केवल गोलियों और विस्फोटों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह डर, अविश्वास और नफरत का ऐसा माहौल बनाता है, जिसमें समाज की बुनियादें हिलने लगती हैं। पहलगाम की घटना में भी निहत्थे पर्यटकों को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वे आसान लक्ष्य थे। वहां भी मकसद डर फैलाना था, संदेश देना था कि कोई भी सुरक्षित नहीं है। सिडनी और पहलगाम—दोनों घटनाएं अलग-अलग महाद्वीपों पर हुईं, लेकिन उनकी पीड़ा एक जैसी है। विश्व समुदाय के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि आतंकवाद से निपटने के लिए आधे-अधूरे प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। यह समस्या किसी एक देश की नहीं है, इसलिए इसका समाधान भी सामूहिक होना चाहिए। खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान, सीमा पार सहयोग, कट्टरपंथी विचारधाराओं के खिलाफ साझा रणनीति और आतंक को वित्तीय सहायता देने वाले नेटवर्क पर सख्त कार्रवाई,ये सभी कदम अनिवार्य हैं। साथ ही, समाज के स्तर पर भी संवाद, शिक्षा और आपसी समझ को बढ़ावा देना होगा, ताकि नफरत की जमीन ही खत्म हो जाए। यह भी जरूरी है कि हम आतंकवाद को किसी धर्म या समुदाय से जोड़कर न देखें। ऐसा करना आतंकियों के मंसूबों को ही बल देता है। सिडनी में यहूदी समाज को निशाना बनाया गया, तो कल किसी और समुदाय को बनाया जा सकता है। आतंकवाद का लक्ष्य इंसानियत है, और उसकी सबसे बड़ी ताकत हमारी आपसी दरारें हैं। जब हम एक-दूसरे के दुख को अपना दुख समझते हैं, तब आतंक कमजोर पड़ता है। इस दुखद और पीड़ादायक घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि सुरक्षा केवल हथियारों और कानून से नहीं आती, बल्कि सामाजिक एकजुटता से भी आती है। जिस नागरिक ने हमलावर से भिड़कर बंदूक छीनी, उसने यह साबित किया कि साहस और मानवता अभी जिंदा है। ऐसे उदाहरण हमें उम्मीद देते हैं कि अंधेरे के बीच भी रोशनी की किरण मौजूद है। हर हाल में आतंकवाद का मुकाबला करना होगा।यह कोई नारा नहीं, बल्कि समय की मांग है। इसके लिए सरकारों को कठोर निर्णय लेने होंगे, समाज को जागरूक होना होगा और मीडिया को जिम्मेदार भूमिका निभानी होगी। आतंक के हर कृत्य की निंदा के साथ-साथ हमें उन कारणों पर भी विचार करना होगा, जो युवाओं को इस रास्ते पर धकेलते हैं। बेरोजगारी, पहचान का संकट, झूठा प्रचार और कट्टर विचारधाराएं इन सबका इलाज जरूरी है। सिडनी की घटना में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए और उनके परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए यह संकल्प लेना होगा कि हम आतंक के सामने झुकेंगे नहीं। दुनिया ने बहुत खून देख लिया है, अब वक्त है कि इंसानियत को बचाने के लिए एकजुट होकर खड़ा हुआ जाए। आतंकवाद चाहे जहां भी सिर उठाए, उसका जवाब मजबूती, समझदारी और मानवीय मूल्यों से दिया जाए।यही इस त्रासदी से निकलने का एकमात्र रास्ता है। (वरिष्ठ पत्रकार,साहित्यकार, स्तम्भकार) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 17 ‎दिसम्बर /2025