- एपस्टीन फाइल्स के खुलासों के बीच सत्ता, नैतिकता और तानाशाही पर सवाल वॉशिंगटन (ईएमएस)। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर जारी एपस्टीन फाइल्स के नए खुलासों ने एक बार फिर उनकी भूमिका, उनके संबंधों और सत्ता के दुरुपयोग पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसी संदर्भ में न्यू टेस्टामेंट की विदुषी और सामाजिक कार्यकर्ता लिज़ थियोहारिस ने अपने लेख में ट्रंप की तुलना प्राचीन रोमन सम्राट नीरो से करते हुए उन्हें आधुनिक तानाशाही राजनीति का प्रतीक बताया है। लेख के अनुसार, जेफरी एपस्टीन के साथ ट्रंप के पुराने संबंध, महिलाओं को लेकर उनके बयान और नीतियां इतिहास के उन शासकों की याद दिलाती हैं, जिन्होंने सत्ता के बल पर यौन शोषण और दमन को सामान्य बना दिया। लेखिका का तर्क है कि जैसे नीरो के शासन में सत्ता, यौन हिंसा और भय का गठजोड़ था, वैसे ही आज ट्रंप की राजनीति में भी ताकत, लैंगिक भेदभाव और दमनकारी नीतियों का मेल दिखता है। थियोहारिस ने लिखा है कि इतिहास में तानाशाहों ने न केवल राजनीतिक और आर्थिक शक्ति का दुरुपयोग किया, बल्कि यौन शोषण को भी सत्ता बनाए रखने का हथियार बनाया। रोमन साम्राज्य में यह व्यवस्था खुली थी, जबकि आधुनिक अमेरिका में यह अलग रूप में सामने आती है। मीटू आंदोलन और एपस्टीन प्रकरण को इसका उदाहरण बताया गया है। लेख में यह भी कहा गया है कि ट्रंप द्वारा प्रवासियों, ट्रांसजेंडर समुदाय, गरीबों और हाशिए पर खड़े लोगों को निशाना बनाना आधुनिक “बलि का बकरा” राजनीति है, ठीक वैसे ही जैसे नीरो ने रोम में आग लगने का दोष ईसाइयों पर मढ़ा था। लेखिका ने इसे “फिडलिंग व्हाइल अमेरिका बर्न्स” यानी संकट के समय सत्ता की गैर-जिम्मेदारी करार दिया। बाइबिल के संदर्भों का हवाला देते हुए लेख में कहा गया है कि ईसाई धर्म का मूल संदेश न्याय, करुणा और समानता है, न कि दमन और बहिष्कार। थियोहारिस ने चेतावनी दी कि जब धर्म का उपयोग तानाशाही नीतियों को सही ठहराने के लिए किया जाता है, तो यह समाज के लिए खतरनाक संकेत होता है। लेख का निष्कर्ष है कि अमेरिकी समाज एक नैतिक संकट से गुजर रहा है और मतदाताओं को यह तय करना होगा कि वे सत्ता के दुरुपयोग को स्वीकार करेंगे या न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में खड़े होंगे।