17-Dec-2025
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देहरादून,(ईएमएस)। जबरन धर्मांतरण के मामलों में सजा का दायरा बढ़ाने से जुड़े उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2025 को फिलहाल मंजूरी नहीं मिल सकी है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने इस विधेयक को पुनर्विचार के संदेश के साथ राज्य सरकार को वापस भेज दिया है। बताया जा रहा है कि विधेयक के मसौदे में कुछ तकनीकी खामियों के कारण यह निर्णय लिया गया। विधायी विभाग को यह विधेयक मंगलवार को प्राप्त हुआ। सरकार के सामने अब इस विधेयक को लागू करने के लिए सीमित विकल्प रह गए हैं। वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, या तो सरकार अध्यादेश के जरिए इसे प्रभावी बनाए, अथवा अगले विधानसभा सत्र में इसे संशोधनों के साथ दोबारा पारित कराए। धामी सरकार के लिए यह विधेयक काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि इसके जरिए जबरन और छल-बल से होने वाले धर्मांतरण पर सख्ती बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।राज्य में धर्म स्वतंत्रता कानून का इतिहास पहले से रहा है। वर्ष 2018 में पहली बार उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) कानून लागू किया गया था। इसके बाद वर्ष 2022 में इसमें संशोधन कर सजाओं को और कठोर बनाया गया। हाल के वर्षों में सामने आए मामलों को देखते हुए सरकार ने 13 अगस्त 2025 को कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर नए संशोधन विधेयक को मंजूरी दी। यह विधेयक 20 अगस्त को गैरसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र में पारित भी हो गया था, जिसके बाद इसे राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा गया। सजा और प्रावधानों में बड़े बदलाव नए विधेयक में छल, दबाव या प्रलोभन से धर्मांतरण कराने पर कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। अब ऐसे मामलों में कोई भी व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकेगा, जबकि पहले यह दायरा केवल खून के रिश्तों तक सीमित था। सामान्य धर्म परिवर्तन के मामलों में जेल की सजा को बढ़ाकर तीन से दस वर्ष कर दिया गया है, जो पहले दो से सात वर्ष थी। इसके अलावा जिलाधिकारी को गैंगस्टर एक्ट की तर्ज पर संपत्ति कुर्क करने का अधिकार देने का प्रस्ताव है। विवाह का झांसा देकर, हमला, षड्यंत्र, नाबालिगों की तस्करी, दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराधों के जरिए धर्मांतरण कराने पर न्यूनतम 20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान रखा गया है। ऐसे मामलों में दोषियों पर दस लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकेगा। वीरेंद्र/ईएमएस/17दिसंबर2025