लेख
18-Dec-2025
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दिवाली के उजाले ने अब विश्व मंच पर एक नया इतिहास रच दिया है और यह पर्व आज केवल भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक न रहकर पूरी मानवता की साझी विरासत बन चुका है हाल ही में यूनेस्को ने अपनी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में दिवाली को औपचारिक स्थान दिया है जिसके बाद यह पर्व भारत की पंद्रहवीं अमूर्त विश्व धरोहर के रूप में दर्ज हो गया है इस घोषणा ने न केवल भारतीय समाज में गर्व और उत्साह भर दिया है बल्कि विश्व भर में मौजूद उन समुदायों के बीच भी गौरव की अनुभूति पैदा की है जो इस रोशनी के पर्व को अपने जीवन से जुड़ा मानते हैं। भारत के सांस्कृतिक इतिहास में दिवाली का स्थान अनोखा है यह पर्व हजारों वर्षों से लोक परंपराओं सामाजिक संबंधों धार्मिक आस्थाओं और सामुदायिक एकता का जीवंत प्रतीक रहा है ।दीप जलाने की परंपरा केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं है बल्कि यह उस विचार का उत्सव भी है ,जिसमें अंधेरे पर प्रकाश और नकारात्मकता पर सकारात्मक सोच की विजय का संदेश निहित रहता है इसी सार्वभौमिक संदेश ने दिवाली को विश्व भर के समाजों के लिए आकर्षण का केंद्र बना दिया हैयूनेस्को द्वारा घोषित अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर का महत्व केवल मान्यता तक सीमित नहीं है यह किसी भी संस्कृति की जीवित परंपराओं को भावी पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुंचाने का दायित्व भी निभाती है अमूर्त विरासत वह धरोहर है, जिसे देखा नहीं बल्कि अनुभव किया जाता है। यही कारण है कि दिवाली जैसे पर्व को इस सूची में शामिल किया जाना मानव समाज के सांस्कृतिक भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दिवाली को यूनेस्को की सूची में शामिल करने का निर्णय दिल्ली में आयोजित इंटर गवर्नमेंटल कमेटी की बीसवीं बैठक के दौरान लिया गया इस बैठक में कई देशों की सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों पर विचार किया गया जिनमें जॉर्जिया, कार्गो, इथियोपिया और मिश्र जैसी प्राचीन सभ्यताओं के सांस्कृतिक प्रतीक भी शामिल थे। इस वैश्विक मंच पर दिवाली को प्रतिनिधि स्वरूप प्रदान किया जाना भारत की सांस्कृतिक विविधता और आध्यात्मिक परंपरा की व्यापक मान्यता का प्रमाण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि दिवाली हमारी सभ्यता की आत्मा है और इस पर्व में उजाला आशा और मानवता की साझा भावनाओं का अद्भुत संगम मिलता है। उन्होंने कहा कि आज दुनिया में सकारात्मकता और उल्लास का वातावरण दिखाई देता है और इस तरह की मान्यताएँ भारतीय संस्कृति को वैश्विक पटल पर और भी सशक्त बनाती हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि दिवाली का संदेश सीमाओं से परे जाकर मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है और यही कारण है कि यह पर्व अब वैश्विक स्तर पर मानवीय एकता का प्रतीक बन चुका है। दिवाली का विस्तार केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि विश्व के अनेक देशों में भारतीय समुदाय और अन्य संस्कृतियों से जुड़े लोग इसे पूरे उत्साह से मनाते हैं। न्यूयॉर्क, पेरिस, लंदन, टोरंटो, सिडनी और सिंगापुर जैसे शहरों में हर वर्ष रोशनी की सजावट और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ दिवाली का उत्सव मनाया जाता है। कई देशों की सरकारें भी इस पर्व को अपनी आधिकारिक सांस्कृतिक कैलेंडर में स्थान दे चुकी हैं। इससे स्पष्ट होता है कि दिवाली अब केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं बल्कि एक वैश्विक सांस्कृतिक आयोजन बन चुका है। अमूर्त धरोहर के रूप में दिवाली के चयन ने भारत की उन प्राचीन परंपराओं को भी सम्मान दिलाया है जो सहस्राब्दियों से मानव समाज में आशा सहयोग और सद्भावना के मूल्य स्थापित करती रही हैं। दिवाली का उत्सव घर परिवार समाज और समुदाय को एक साथ जोड़ता है। इस पर्व में लोग पुराने मतभेद मिटाकर नए संबंधों की शुरुआत करते हैं और इस प्रकार सामाजिक एकता को मजबूत बनाते हैं। इस सामाजिक सहभागिता का महत्व यूनेस्को के लिए भी अत्यंत आवश्यक मानदंड होता है। इसलिए दिवाली इस सूची में शामिल होने के योग्य पूर्ण रूप से सिद्ध हुई। दिवाली के सांस्कृतिक पक्ष के साथ ही इसका आर्थिक और सामाजिक प्रभाव भी बहुत व्यापक है ।भारत के कारीगरों हस्तशिल्पियों मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों फूल व्यापारियों मिठाई व्यवसायों और लाखों छोटे उद्यमियों के लिए यह पर्व आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत बनता है। इस तरह दिवाली केवल सांस्कृतिक परंपरा नहीं, बल्कि आर्थिक जीवन का भी महत्वपूर्ण आधार है। जो समाज की विविध इकाइयों को सहारा देता है ।यह व्यापक प्रभाव भी अमूर्त धरोहर के लिए आवश्यक तत्वों में से एक है। दिवाली को विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने से आने वाले समय में इसके संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई योजनाएँ शुरू होंगी। जिससे पर्व की परंपराएँ अधिक व्यवस्थित रूप से संरक्षित की जा सकेंगी। कई देशों में सांस्कृतिक साझेदारी कार्यक्रमों के माध्यम से दिवाली के बारे में जागरूकता बढ़ाने का अभियान भी चलाया जाएगा इससे युवाओं में अपनी सांस्कृतिक जड़ों के प्रति अभिमान और समझ दोनों विकसित होंगे। यूनेस्को की बैठक में प्रस्तुत रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि दिवाली की परंपरा केवल धार्मिक पृष्ठभूमि तक सीमित नहीं है बल्कि यह विविधता में एकता मानव सम्मान और साझा उत्सव का संदेश देती है। यह संदेश वर्तमान समय में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब दुनिया तनाव युद्ध और असहिष्णुता की चुनौतियों से गुजर रही है। ऐसे माहौल में रोशनी का यह उत्सव विश्व समुदाय को आशा और सकारात्मक सोच की राह दिखाता है। भारत ने दिवाली को इस सूची में शामिल कराने के लिए व्यापक शोध दस्तावेज और सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किए थे। जिनमें इस पर्व के इतिहास सामाजिक प्रभाव और सामुदायिक महत्त्व का विस्तार से वर्णन था। विशेषज्ञों ने इस बात को भी रेखांकित किया कि दिवाली की परंपरा केवल विशेष समुदाय या क्षेत्र तक सीमित नहीं है बल्कि यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और विविध प्रवासी समुदायों के माध्यम से वैश्विक स्वरूप ग्रहण कर चुकी है। इस वैश्विक स्वीकार्यता ने समिति को यह निर्णय लेने में सहूलियत प्रदान की।दिवाली को अमूर्त धरोहर का दर्जा मिलने के बाद इससे संबंधित सांस्कृतिक गतिविधियों को और बढ़ावा मिलेगा जैसे पारंपरिक दीप निर्माण लोक नृत्य संगीत रामलीला धार्मिक और सांस्कृतिक कथाएं तथा समुदाय आधारित आयोजनों को विश्व भर में नए मंच मिलेंगे इससे सांस्कृतिक आदान प्रदान भी बढ़ेगा और वैश्विक समाज भारत के बारे में और अधिक गहनता से जान सकेगा। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत विश्व की सबसे प्राचीन और जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं का केंद्र रहा है। और इसका सांस्कृतिक विकास हजारों वर्षों में निर्मित हुआ है। दिवाली का विश्व धरोहर सूची तक पहुंचना इस लंबे सांस्कृतिक सफर का सम्मान करता है और यह दिखाता है कि भारतीय परंपराएं केवल स्थानीय नहीं बल्कि वैश्विक महत्व रखती हैं ।यह उपलब्धि भारतीय समाज की उस सकारात्मक छवि को भी मजबूत करती है जिसमें आध्यात्मिकता, सामाजिक, समरसता और मानवीय मूल्यों की झलक दिखाई देती है। यह उत्सव प्रकाश का है इसलिए यह अंधकार को दूर करने का रूपक भी बनता है। दिवाली के दीप केवल घरों या मंदिरों में ही नहीं जलते बल्कि यह मन में बसी नकारात्मकता और भय को भी मिटाने का प्रतीक हैं ।जब विश्व समुदाय इस पर्व को अपनाता है तो यह संदेश और अधिक व्यापक रूप में सामने आता है ।इसीलिए यूनेस्को का यह निर्णय भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादायक है। दिवाली आज एक ऐसा वैश्विक उत्सव बन चुका है जो सीमाओं धर्मों और भाषाओं के परे जाकर हर मनुष्य को एक साझा भावनात्मक अनुभूति से जोड़ता है। इस पर्व की यही व्यापकता इसे विश्व विरासत सूची में स्थान दिलाने में निर्णायक सिद्ध हुई है। आने वाले वर्षों में यह मान्यता दिवाली को और भी अधिक अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाएगी और रोशनी का यह पर्व पूरी दुनिया के लिए शांति और सद्भाव का संदेश लेकर आगे बढ़ेगा। दिवाली का विश्व धरोहर बनना वास्तव में भारत की सांस्कृतिक शक्ति का उजाला है यह वह उजाला है जो अब पूरी मानवता के आकाश में चमकेगा और आने वाली पीढ़ियों तक आशा और उजास की राह दिखाता रहेगा। ईएमएस/18/12/2025