कंपाला (ईएमएस)। युगांडा का पूर्व राष्ट्रपति ईदी अमीन को दुनिया आज भी ‘बुचर ऑफ युगांडा’ यानी युगांडा का कसाई कहकर याद करती है। जनता का हीरो बनने के सपने दिखाकर सत्ता में पहुंचा ईदी अमीन कुछ ही समय में ऐसा तानाशाह बन गया। इतिहास में ईदी अमीन की क्रूरता और अमानवीयता की मिसाल मिलना बेहद मुश्किल है। ईदी अमीन पर आरोप हैं कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों को न सिर्फ बेरहमी से मरवाता था, बल्कि उनके शवों के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर देता था। उसके पूर्व सहयोगियों और जान बचाकर देश से भागे लोगों ने दावा किया कि अमीन अपने दुश्मनों को यातनाएं देकर मारता और फिर उनका मांस तक खा जाता था। यहां तक कहा जाता है कि उसने अपने फ्रिज में कटे हुए सिर संभालकर रखे हुए थे। इन खुलासों के बाद ही उसे ‘बुचर ऑफ युगांडा’ का नाम मिला। अमीन का शासन करीब आठ साल चला और इस दौरान उसने देश में खौफ का ऐसा माहौल बना दिया, जहां कोई भी उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता था। इतिहासकारों के मुताबिक, उसके शासनकाल में करीब तीन से पांच लाख लोगों की हत्या करवाई गई। उसकी तानाशाही का शिकार सिर्फ राजनीतिक विरोधी ही नहीं बने, बल्कि आम नागरिक भी बड़ी संख्या में उसकी क्रूर नीतियों की भेंट चढ़े। ईदी अमीन का एक और फैसला युगांडा के लिए विनाशकारी साबित हुआ। उसने एशियाई मूल के लोगों, जिनमें बड़ी संख्या में भारतीय शामिल थे, को देश छोड़ने के लिए केवल तीन महीने का वक्त दिया। अचानक हुए इस फैसले से हजारों परिवार बेघर हो गए और युगांडा की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई। व्यापार, उद्योग और रोज़गार पर इसका गहरा असर पड़ा, जिसकी भरपाई देश वर्षों तक नहीं कर सका। उसकी निर्दयता उसके निजी जीवन में भी साफ नजर आती थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसने अपनी ही एक पत्नी के साथ बेरहमी से मारपीट की और बाद में उसकी हत्या कर दी। कहा जाता है कि उसने शव के टुकड़े कर दिए और कई लोगों के शव मगरमच्छों को खिला दिए जाते थे। ऐसी घटनाओं ने उसकी छवि को एक नरभक्षी और निर्दयी शासक के रूप में और पुख्ता किया। ईदी अमीन के पतन की कहानी भी कम नाटकीय नहीं है। युगांडा और तंजानिया के बीच बढ़ते तनाव के बीच अमीन की सेना ने तंजानिया के कागेरा सालिएंट क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। यही उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। तंजानिया के राष्ट्रपति जूलियस न्येरेरे ने पलटवार का आदेश दिया और तंजानियाई सेना ने युगांडा में घुसकर अमीन की सत्ता की नींव हिला दी। खतरे को भांपते ही ईदी अमीन देश छोड़कर भाग गया। अंततः उसे सऊदी अरब में शरण मिली, जहां 2003 में उसकी मौत हुई। सुदामा/ईएमएस 18 दिसंबर 2025