लेख
19-Dec-2025
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भारत और अमेरिका के बीच हाल के दिनों में हुई उच्च स्तरीय वार्ता ने वैश्विक राजनीति में एक नया संदेश दिया है।संवाद ही वह सेतु है जो किसी भी जटिल द्विपक्षीय रिश्ते को संतुलन और स्थिरता की ओर ले जाता है। बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य, वैश्विक अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव और सामरिक चुनौतियों के बीच दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व की बातचीत न केवल समयोचित थी बल्कि भविष्य की साझेदारी के प्रति स्पष्ट दृष्टिकोण भी प्रकट करती है। लंबे समय से चले आ रहे विवाद, खासकर व्यापार और टैरिफ से जुड़े मुद्दे, धीरे-धीरे नरम पड़ते दिखाई दे रहे हैं। भारत के लिए यह बातचीत एक भरोसेमंद संकेत है कि विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में से दो देश फिर से सामरिक और आर्थिक तालमेल की ओर लौट रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर बताया कि यह वार्ता महत्वपूर्ण और सौहार्दपूर्णर ही। इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि दोनों पक्षों ने विवादित मुद्दों से आगे बढ़कर उन क्षेत्रों पर अधिक जोर दिया जिनमें सहयोग की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं।जैसे रक्षा, ऊर्जा, सैन्य नवाचार, प्रौद्योगिकी, वाणिज्य और सुरक्षा। बीते कुछ वर्षों में व्यापारिक टकराव, विशेषकर टैरिफ की नीति, भारत-अमेरिका संबंधों में एक बड़ी बाधा थी। अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त शुल्कों को लेकर कई बार तनाव की स्थिति बनी। किंतु वास्तविकता यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था इतनी विविध, लचीली और मजबूत हो चुकी है कि इन टैरिफ का प्रभाव सीमित रहा। दूसरी ओर, अमेरिका को यह समझ आ गया कि कठोर व्यापारिक नियमों से वह भारत जैसे तेजी से उभरते साझेदार को केवल असहज कर रहा है, लाभ नहीं। इसलिए, जैसे-जैसे वार्ता आगे बढ़ी, टैरिफ का भूत धीरे-धीरे समाप्त होता दिखा। इस संवाद का सबसे बड़ा संदेश यह है कि वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए भारत और अमेरिका केवल सहयोग करने की इच्छा नहीं बल्कि व्यापक रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता रखते हैं। दोनों देशों ने स्पष्ट किया कि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में उभर रही साझा चुनौतियाँ,चाहे वह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा हो, उभरती तकनीकों का भविष्य हो, या ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु संबंधी मुद्दे।इन सब पर संयुक्त प्रयास आवश्यक हैं। यह समझ इस बात का प्रमाण है कि भारत अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक विमर्श को आकार देने वाला निर्णायक खिलाड़ी है। वार्ता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि दोनों देशों ने अपने रणनीतिक हितों के प्रति स्पष्टता बरतते हुए व्यापारिक रिश्तों को नई ऊर्जा देने की आवश्यकता को स्वीकार किया। भारत में मौजूद अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि पहले ही अंतिम प्रस्ताव वॉशिंगटन भेज चुके हैं और अब समझौते का निर्णय राजनीतिक स्तर पर लिया जाना है। यह संकेत देता है कि आने वाले महीनों में दोनों देश एक बड़े व्यापारिक समझौते के करीब पहुँच सकते हैं। मुद्दों को टालने या कठोर रुख अपनाने की बजाय संवाद द्वारा रास्ता खोजने का यह सकारात्मक संकेत वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी आश्वस्तकारी है। अमेरिका द्वारा लॉन्च किया गया 9 करोड़ का गोल्ड कार्ड भी दोनों देशों के रिश्तों में एक नया आयाम जोड़ता है। यह स्थायी निवास और निवेश के अवसरों को जोड़ने का प्रयास है, लेकिन इसकी अत्यधिक लागत इसे आम लोगों के लिए कठिन बनाती है। इसके अलावा, यह भी तथ्य है कि अमेरिका कभी भी किसी कार्डधारक का स्टेटस बदल सकता है, जिससे यह नीति अस्थिरता का संकेत भी देती है। भारत के लिए चुनौती यह है कि हजारों एच-1बी वीज़ा आवेदकों के इंटरव्यू अचानक महीनों के लिए टाल दिए गए हैं। इससे अमेरिकी नीतियों की अनिश्चितता उजागर होती है। अमेरिका के भीतर भी इस गोल्ड कार्ड योजना का विरोध जारी है, क्योंकि इसे अमेरिका के हितों के विरुद्ध और कुछ देशों को अनावश्यक रूप से अलग-थलग करने वाला कदम माना जा रहा है। यह भी तथ्य है कि कई विश्लेषकों के अनुसार अमेरिका अपने कठोर और बदलते नियमों के माध्यम से भारत की तेज़ी से बढ़ती आर्थिक तरक्की पर किसी न किसी रूप में अंकुश लगाने की कोशिश करता है। लेकिन यह आकलन भी उतना ही सही है कि भारत अब ऐसी नीतियों के दबाव में नहीं आने वाला। भारत की वैश्विक स्थिति जितनी मजबूत हुई है, उतनी ही उसकी क्षमता बढ़ी है कि वह समानता और सम्मान के आधार पर साझेदारी को आगे बढ़ाए। यही कारण है कि इस बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने टैरिफ का मुद्दा उठाने की आवश्यकता तक महसूस नहीं की।क्योंकि भारत का आत्मविश्वास अब किसी रक्षात्मक मुद्रा का मोहताज नहीं रहा। इस पूरे संवाद का व्यापक संदर्भ यह है कि दुनिया अनेक मोर्चों पर तनाव की स्थिति से गुजर रही है।यूरोप और मध्यपूर्व में संघर्ष, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन, और आर्थिक अनिश्चितताएँ। ऐसी परिस्थितियों में भारत-अमेरिका संबंधों की स्थिरता न केवल दोनों देशों बल्कि पूरे विश्व के लिए आवश्यक है। एक तरफ अमेरिका अपनी वैश्विक भूमिका को पुनर्संतुलित करने की कोशिश कर रहा है, तो दूसरी ओर भारत एक उभरती शक्ति के रूप में वैश्विक नेतृत्व में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका स्थापित कर चुका है। इस संतुलन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए संवाद और सहयोग ही सबसे प्रभावी साधन हैं। इस बातचीत से यह भी प्रतीत होता है कि दोनों देश भविष्य में सैन्य और सुरक्षा साझेदारी को और सुदृढ़ करेंगे। 21वीं सदी की रक्षा तकनीक चाहे वह साइबर सुरक्षा हो, स्पेस सिक्योरिटी, एआई आधारित सैन्य प्रणालियाँ, या समुद्री सुरक्षा,इन सभी क्षेत्रों में भारत और अमेरिका मिलकर वैश्विक मानक तय करने में सक्षम हैं। यह सहयोग न केवल एक-दूसरे के हितों की रक्षा करेगा बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक शांति में भी योगदान देगा। अमेरिका द्वारा भारत को दबाने की कोशिश का दौर अब बीतता दिख रहा है। दुनिया जानती है कि भारत किसी भी बाहरी दबाव के आगे झुकने वाला देश नहीं है। यही कारण है कि इस वार्ता के परिणाम में अमेरिका खुद एक अधिक सम्मानजनक, विनम्र और वास्तविक साझेदार के रूप में सामने आया। भारत के साथ संबंधों को गहराने की अमेरिका की इच्छा केवल रणनीतिक आवश्यकता नहीं बल्कि व्यावहारिक अनिवार्यता बन चुकी है। इन सबके बीच यह भी ध्यान देने योग्य है कि वैश्विक स्तर पर अन्य देश जैसे मैक्सिको भी नई परिस्थितियों में अपने आर्थिक हितों के लिए कठोर टैरिफ नीतियाँ अपनाने की बात कर रहे हैं। यह विश्व अर्थव्यवस्था में उभरती नई प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है। ऐसे समय में भारत को न केवल अमेरिका बल्कि अन्य साझेदारों के साथ भी अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए सजग रहना होगा। आने वाले समय में बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका निर्णायक होगी। अंततः, मोदी–ट्रंप वार्ता ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत-अमेरिका संबंध आज केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं। वे एक गहन, बहुआयामी और गतिशील साझेदारी के द्वार पर खड़े हैं। क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों के समाधान से लेकर व्यापार, रक्षा, तकनीक और ऊर्जा के क्षेत्रों में नवीन सहयोग हर स्तर पर यह रिश्ता नई ऊँचाइयों की ओर बढ़ रहा है। इसका अर्थ यह भी है कि आने वाले वर्षों में दोनों देश एक-दूसरे के लिए अपरिहार्य रणनीतिक सहयोगी बनेंगे। भारत की बढ़ती शक्ति, आत्मविश्वास और वैश्विक नेतृत्व क्षमता ने उसे वह स्थान दिलाया है जहाँ कोई भी राष्ट्र उसे दबा नहीं सकता।संवाद ही एकमात्र रास्ता है। यही इस वार्ता का सार है और यही भविष्य के भारत-अमेरिका संबंधों की दिशा तय करेगा। ईएमएस/19/12/25