राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी क्षेत्र में भड़का आंदोलन लगातार चौथे दिन भी शांत नहीं हुआ है। इंटरनेट सेवाएँ बंद हैं, सड़कों पर तनाव का माहौल है और किसान आंदोलन की आग अब केवल एक स्थानीय असहमति नहीं रही, बल्कि पूरे उत्तर भारत का ध्यान अपनी ओर खींचने लगी है। एथेनॉल फैक्टरी के निर्माण को लेकर महीनों से होता विरोध अब उग्र रूप ले चुका है। शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने वाले किसानों का धैर्य उस समय टूट गया जब निर्माणाधीन दीवार तोड़ी गई, पुलिस से संघर्ष हुआ और दोनों पक्षों के कई लोग घायल हुए। टिब्बी का यह संघर्ष, स्थानीय लोगों की आजीविका और पर्यावरणीय चिंताओं से लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तक, एक जटिल संकट का रूप लेता जा रहा है।इस पूरे विवाद की जड़ में ड्यून एथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड की वह फैक्टरी है जिसे लेकर स्थानीय किसानों और ग्रामीणों में गहरी नाराजगी है। लोगों का तर्क है कि यह प्रोजेक्ट उनकी जमीन, पानी और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है। दस महीने तक विरोध शांतिपूर्ण तरीके से चलता रहा, पर 2026 में जब पुलिस सुरक्षा के बीच निर्माण को फिर से शुरू किया गया, तब से तनाव बढ़ता गया। 10 दिसंबर की घटना ने हालात को विस्फोटक बना दिया। राठीखेड़ा गांव में लोगों ने निर्माणाधीन दीवार को तोड़ दिया, फैक्टरी परिसर में घुसकर तोड़फोड़ की और आगजनी भी हुई। इसके बाद पुलिस और किसानों के बीच तेज पत्थरबाजी हुई जिसमें करीब 70 लोग घायल हुए। 30 परिवार डर के माहौल में अपना घर छोड़कर चले गए और कई घायल लोग टिब्बी के गुरुद्वारे में शरण लिए हुए हैं, जहाँ लगभग 250 लोगों के लिए प्रतिदिन भोजन तैयार किया जा रहा है। इस संघर्ष ने अब प्रशासनिक और राजनीतिक मोर्चे पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। किसान नेता जगजीत सिंह ने 17 दिसंबर को महापंचायत बुलाई है, जिसमें राष्ट्रीय किसान नेता राकेश टिकैत, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई किसान नेता शामिल होंगे। इससे आंदोलन का दायरा और बड़ा होने की आशंका है। किसान नेताओं का स्पष्ट कहना है कि कलेक्टर और एसपी का तबादला किए बिना कोई बातचीत नहीं होगी। किसानों के खिलाफ अभी तक 107 लोगों पर मामला दर्ज किया गया है और 40 को हिरासत में लिया गया है, जिससे ग्रामीणों में रोष और बढ़ गया है। प्रशासन और किसान कमेटी के बीच दो दौर की वार्ता विफल हो चुकी है, जिसके चलते संवाद की संभावनाएँ लगभग खत्म-सी दिख रही हैं। इसके समानांतर राजनीतिक बयानबाज़ी भी पूरे मामले को और जटिल कर रही है। कांग्रेस खुलकर किसानों के पक्ष में बोल रही है, वहीं कुछ नेताओं का आरोप है कि यह सब विपक्ष की सुनियोजित चाल है, जिसमें कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि जब अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल में इस प्रोजेक्ट का एमओयू साइन हुआ था तो अब कांग्रेस समर्थित लोग ही धावा क्यों बोल रहे हैं। दूसरी ओर, किसानों का आरोप है कि पुलिस ने महिलाओं पर दुर्व्यवहार किया, और आंदोलनकारियों का कहना है कि प्रशासन की ज्यादतियों ने उन्हें उग्र होने को मजबूर किया। कई लोगों ने पुलिस वाहनों को आग लगा दी, जिससे स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो गई। यह पूरा घटनाक्रम प्रशासनिक विफलताओं, राजनीतिक टकराव और सामाजिक असंतोष की परतों से बना है। टिब्बी का यह संघर्ष केवल एक फैक्टरी के निर्माण का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण जनजीवन, पर्यावरणीय समझ, सरकारी परियोजनाओं और स्थानीय हितों के बीच एक टकराव का प्रतीक बन गया है। जहाँ प्रशासन विकास और उद्योग की दिशा में कदम बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, वहीं स्थानीय लोग इसे अपनी जमीन, खेती और जीवनशैली पर संकट के रूप में देख रहे हैं। इस विवाद ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। इंटरनेट सेवाओं का लगातार बंद रहना, पुलिस और नागरिकों के बीच बढ़ती दूरी, विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप ये सभी संकेत देते हैं कि स्थिति नियंत्रण से बाहर होती जा रही है। महापंचायत में टिकैत जैसे नेताओं की उपस्थिति आंदोलन को और संगठित कर देगी, जिससे यह मुद्दा राजस्थान की सीमाओं से निकलकर पंजाब, हरियाणा और यूपी तक फैल सकता है। इस संभावना ने प्रशासनिक तंत्र को और चिंतित कर दिया है। ऐसी परिस्थितियों में आवश्यक है कि सरकार और आंदोलनकारी दोनों ही एक मध्य मार्ग तलाशें। विकास और उद्योग की ज़रूरत से कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि कोई भी परियोजना स्थानीय लोगों की सहमति और हितों की अनदेखी करके लंबे समय तक चल नहीं सकती। किसानों को यह भरोसा दिलाया जाना चाहिए कि उनकी जमीन, पर्यावरण और जलस्रोत सुरक्षित रहेंगे और यदि किसी प्रकार का जोखिम है तो उसका समाधान और मुआवजा स्पष्ट, पारदर्शी और न्यायपूर्ण होगा। साथ ही, हिंसा और नुकसान की घटनाओं को रोकना दोनों पक्षों की जिम्मेदारी है। टिब्बी की आग को शांत करना केवल हनुमानगढ़ के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। जिस तरह किसान आंदोलन पिछले वर्षों में राष्ट्रीय मुद्दा बना था, उसी तरह यह विवाद भी व्यापक असर छोड़ सकता है। जिस गति से असंतोष बढ़ रहा है, अगर संवाद और संवेदनशीलता के साथ इसका समाधान नहीं खोजा गया, तो यह आंदोलन सामाजिक असंतोष का एक और बड़ा उदाहरण बन सकता है। इसलिए ज़रूरत है ठोस वार्ता, शांत दिमाग और समाधान की राजनीति की।ताकि विकास और किसान, उद्योग और पर्यावरण, प्रशासन और जनता के बीच संतुलन बनाया जा सके। टिब्बी आंदोलन केवल एक संघर्ष की कहानी नहीं, बल्कि यह इस बात का भी स्मरण है कि विकास का कोई भी रास्ता जनता की सहमति और विश्वास के बिना सफल नहीं हो सकता। ईएमएस/20/12/2025