शेख हसीना की सरकार के खिलाफ उपद्रव के बाद से बांग्लादेश पिछले करीब डेढ़ साल से अराजकता और धर्मांधता की आग में गंभीर रूप से झुलस रहा है। इन दिनों में शायद ही कोई ऐसा महीना होगा, जब यहां हिंसा ना भड़की हो। शेख हसीना की सरकार गिराने के बाद देश में शांति लाने का वादा करने वाली मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार हिंसा रोकने में नाकाम रही। हसीना सरकार के विरोध में हिंसक आंदोलन चलाने वाले छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद बांग्लादेश में एक बार फिर आग भड़क गई। इस दौरान ढाका के पास भालुका में धर्म का अपमान करने के आरोप में एक हिंदू युवक को पीट-पीटकर मार डाला। युवक के शव को नग्न करके पेड़ से लटका कर आग लगा दी गई। मृतक की पहचान दीपू चंद्र दास के रूप में हुई है। उपद्रवियों ने देश के सबसे बड़े अखबार डेली स्टार और प्रोथोम आलो के ऑफिस में भी घुसकर तोड़फोड़ और आग लगा दी। भारतीय राजनयिक परिसरों और उनके घरों पर हमले किए गए हैं। इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान के आवास में तोड़फोड़ की गई। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के ऑफिस को भी जला दिया गया है। भारत के पड़ोस में धधकती यह अराजकता की आग लगातर चुनौती बढ़ा रही है। देशभर में हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। यहां इस समय एक अलग ही किस्म का पागलपन भी चल रहा है। इस पागलपन के तहत बांग्लादेश में एक वीडियो वायरल है, जिसमें सिराजुद्दौला साम्राज्य की फिर से स्थापना का ख्वाब दिखाया जा रहा है, जिसमें भारत के कई हिस्से शामिल हैं। इन घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बांग्लादेश वास्तव में सांप्रदायिक संक्रमण की ओर बढ़ रहा है या फिर सुनियोजित अस्थिरता के जाल में फंसता जा रहा है। दरअसल, मोहम्मद यूनुस असल में मोहम्मद अली जिन्ना की विचारधारा पर चल रहे हैं और उन्होंने बांग्लादेश में पाकिस्तान मॉडल लागू कर दिया। यह भारत के लिए भी चिंतनीय है। बांग्लादेश को लेकर भारत के सामने 1971 के बाद सबसे बड़ा रणनीतिक और राजनयिक संकट खड़ा हुआ है। यह चिंता विदेश मामलों पर संसद की समिति ने अपनी रिपोर्ट में जाहिर की है। कई मायनों में देखा जाए तो अभी बांग्लादेश में जिस तरह के हालात बन चुके हैं, उतनी बुरी स्थिति का सामना भारत को शायद बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के दौरान भी नहीं करना पड़ा था। आपको बता दें बांग्लादेश में पिछले कुछ दिनों में जो भी हुआ, उससे साफ है कि अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस के हाथ से चीजें निकलती जा रही हैं। जिन कट्टरपंथियों को उन्होंने शुरू में बढ़ावा दिया था, अब वे ही उनके काबू में नहीं हैं। उनकी भारत विरोधी नीतियों ने दोनों देशों के रिश्तों को सबसे खराब दौर में पहुंचा दिया है। शेख हसीना के खिलाफ पिछले साल जुलाई में आंदोलन शुरू हुआ था। अगस्त में उन्हें सत्ता से हटाया गया और तब से ढाका का रुख भारत के खिलाफ बना हुआ है। मौजूदा घटनाक्रम उसी की कड़ी है, जहां पहले भारतीय राजदूत को तलब किया गया और फिर दूतावास तक आक्रामक मार्च निकाला गया। इन घटनाओं ने बांग्लादेश में मौजूद भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। अंतरिम सरकार समस्या को संबोधित भी नहीं करना चाहती। होना तो यह चाहिए था कि भारत ने जब बांग्लादेश के उच्चायुक्त को बुलाकर अपनी चिंताएं जाहिर कीं, तो ढाका से कोई आश्वासन भरा सकारात्मक संदेश आता। लेकिन, इसके उलट भारत विरोधी बयानबाजी और तेज हो गई। जिस तरह से पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर बयान दिए जा रहे हैं, उसे कोई भी संप्रभु देश बर्दाश्त नहीं कर सकता। यूनुस सरकार का अपनी नाकामियों का ठीकरा भारत पर फोड़ना हकीकत की अनदेखी है और इससे स्थिति और बिगड़ेगी। सच यही है कि हसीना विरोधी आंदोलन आगे चलकर कट्टरपंथी तत्वों के नियंत्रण में आ गया। इसका सबूत अगस्त 2024 के बाद से अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई हजारों हिंसक घटनाएं हैं। अगले साल फरवरी में चुनाव की घोषणा होने के बाद से अपराध और बढ़ा है। बांग्लादेश की अस्थिरता भारत पर सीधा असर डालती है और इस नाते उसकी चिंता स्वाभाविक है। बल्कि यूरोपीय यूनियन और अमेरिका भी बांग्लादेश में मानवाधिकार उल्लंघनों का मामला उठा चुके हैं। अंतरिम सरकार पर अपने ही देश के भीतर निष्पक्ष चुनाव कराने का जबरदस्त दबाव है। पिछले महीने शेख हसीना को जिए तर सुनवाई का मौका दिए बिना सजा सुनाई गई,आलोचना हो रही है। यूनुस सरकार के जुलाई चार्टर को लेकर भी मतभेद हैं। इस चार्टर के जरिये 2024 के आंदोलन को संवैधानिक मान्यता देनी है और संविधान में कई बदलाव किए जाने हैं। भारत ने बांग्लादेश में स्वतंत्र, समावेशी और विश्वसनीय चुनाव की जरूरत बताई है जिसमें सबका हित है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अगुवाई वाली समिति की रिपोर्ट से निकली बातों के विश्लेषण से पता चलता है कि बांग्लादेश में जारी हिंसा की वजह से भारत के सामने कई बड़े और गंभीर संकट खड़े हुए हैं, जिनसे निपटना बहुत बड़ी चुनौती होगी। भारत की चिंता यह भी है कि बांग्लादेश चीन की रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल हो सकता है। चीन ने 370 मिलियन डॉलर का इस्तेमाल करके इसके मोंगला बंदरगाह का विस्तार किया है। इसके चलते भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए खुलना-मोंगला रेलवे लाइन में निवेश किया है। बहरहाल, बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उससे भारत को सिर्फ कूटनीतिक संकट का ही सामना नहीं करना पड़ रहा है, इसकी वजह से भारत की आतंरिक सुरक्षा का संकट भी गहरा गया है। बांग्लादेश की यूनुस सरकार भारत-विरोधी पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म बन गई है। वहां सेना के माध्यम से आईएसआई की गतिविधियां बढ़ गई हैं। ऐसे समय में भारत को बड़ी सजगता के साथ काम करना होगा।बांग्लादेश में बढ़ती अराजकता और कट्टरपंथी सोच भारत के लिए खतरा बन रहा है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) ईएमएस / 21 दिसम्बर 25