मुंबई (ईएमएस)। बॉलीवुड के फिल्म निर्माता और निर्देशक गोविंद निहलानी ने अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज के जटिल और संवेदनशील मुद्दों को बेबाकी से पर्दे पर उतारा। गोविंद निहलानी की फिल्में न सिर्फ कलात्मक दृष्टि से समृद्ध रहीं, बल्कि सामाजिक चेतना को भी मजबूती से सामने लाईं। इसी वजह से उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान मिली। गोविंद निहलानी ने निर्देशन की शुरुआत साल 1980 में फिल्म ‘आक्रोश’ से की। यह फिल्म एक सशक्त कानूनी ड्रामा थी, जिसमें ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और अमरीश पुरी जैसे दिग्गज कलाकार नजर आए। मशहूर नाटककार विजय तेंदुलकर द्वारा लिखी गई इस फिल्म ने सामाजिक अन्याय और दलित उत्पीड़न जैसे गंभीर मुद्दों को गहराई से उठाया। ‘आक्रोश’ को भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए गोल्डन पीकॉक अवॉर्ड मिला, जिससे निहलानी को एक संवेदनशील और सशक्त निर्देशक के रूप में पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने 1983 में ‘अर्ध सत्य’ का निर्देशन किया, जो पुलिस व्यवस्था, सत्ता और नैतिकता के टकराव पर आधारित थी। यह फिल्म आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे प्रभावशाली फिल्मों में गिनी जाती है। आगे चलकर उन्होंने ‘दृष्टि’, ‘विजेता’, ‘कलयुग’ और ‘देव’ जैसी फिल्मों के जरिए सामाजिक और राजनीतिक विषयों को अलग-अलग नजरियों से प्रस्तुत किया। साल 1997 में बनी ‘हजार चौरासी की मां’, जो महाश्वेता देवी के प्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित थी, नक्सलवाद और एक मां के दर्द को बेहद संवेदनशील ढंग से दर्शाती है। गोविंद निहलानी को ‘आक्रोश’, ‘अर्ध सत्य’, ‘दृष्टि’, ‘हजार चौरासी की मां’, ‘तमस’ और ‘कुरुतिपुनल’ जैसी फिल्मों के लिए कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं। वहीं ‘जुनून’, ‘विजेता’, ‘आक्रोश’ और ‘देव’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स से भी सम्मानित किया गया। ‘तमस’ नामक टेलीविजन सीरीज, जो विभाजन की त्रासदी पर आधारित थी, को भी व्यापक सराहना मिली। सिंध में जन्मे गोविंद निहलानी का परिवार विभाजन के बाद राजस्थान आ गया। उदयपुर में रहते हुए उन्हें फिल्मों और फोटोग्राफी का शौक लगा, जिसने आगे चलकर उन्हें सिनेमेटोग्राफी और फिर निर्देशन की राह पर ला खड़ा किया। सुदामा/ईएमएस 22 दिसंबर 2025