- खनन को मिली नई छूट पर उठे सवाल नई दिल्ली (ईएमएस)। देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर नई बहस छेड़ दी है। बीते महीने 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने खनन से जुड़े एक अहम मामले में फैसला सुनाते हुए 100 मीटर तक ऊंचाई वाले पहाड़ों पर खनन की अनुमति दे दी। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को खासतौर पर राजस्थान और अरावली पर्वतमाला के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह फैसला पूरी तरह लागू होता है, तो राजस्थान में मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया और तेज हो सकती है, जिससे प्रदेश का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने का खतरा बढ़ जाएगा। अरावली पर्वतमाला को राजस्थान की जीवनरेखा कहा जाता है, लेकिन अब यही जीवनरेखा खतरे के संकेत दे रही है। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट का हवाला देते हुए माना है कि अरावली पर्वत क्षेत्र तेजी से सिकुड़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, अरावली का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा अब 100 मीटर से कम ऊंचाई का रह गया है। अदालत के अनुसार, 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले भूभाग को पर्वत की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा, बल्कि सामान्य भूमि माना जाएगा। इसका सीधा अर्थ यह है कि ऐसे क्षेत्रों में खनन गतिविधियों का रास्ता साफ हो सकता है, जो आने वाले समय में पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अरावली पर्वतमाला पहले जैसी ऊंची और मजबूत नहीं रह गई है। अरावली मरुस्थल के विस्तार को रोकने में एक प्राकृतिक दीवार की तरह काम करती है। अरावली पर्वतमाला दुनिया की सबसे पुरानी वलित पर्वतमालाओं में गिनी जाती है। इसकी कुल लंबाई लगभग 692 किलोमीटर है, जिसमें से करीब 550 किलोमीटर हिस्सा राजस्थान में फैला हुआ है। अरावली की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर है, जो माउंट आबू में स्थित है और जिसकी ऊंचाई 1727 मीटर है। यह पर्वतमाला दिल्ली, राजस्थान और गुजरात तीनों राज्यों से होकर गुजरती है। राजस्थान की कई प्रमुख नदियों का उद्गम भी अरावली से ही होता है, इसलिए इसे प्रदेश की लाइफ लाइन कहा जाता है। यदि अरावली का क्षरण इसी गति से जारी रहा, तो इसके परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं। राजस्थान में मरुस्थल का तेजी से विस्तार होगा, गर्म हवाओं का असर बढ़ेगा, बंगाल की खाड़ी से आने वाला मानसून कमजोर पड़ सकता है और भूकंपीय गतिविधियों का प्रभाव भी ज्यादा महसूस हो सकता है। साथ ही अरावली से निकलने वाली नदियां सूख सकती हैं, जिससे खेती, जलस्रोत और आम जनजीवन पर सीधा असर पड़ेगा। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, अरावली की ऊंचाई घटने से राजस्थान का वर्षा तंत्र पहले ही प्रभावित होने लगा है। पहले मानसूनी हवाएं अरावली से टकराकर पूर्वी राजस्थान में अच्छी बारिश कराती थीं, लेकिन अब कमजोर पड़ती पर्वतमाला के कारण ये हवाएं पश्चिमी राजस्थान की ओर निकल जा रही हैं। अरावली के क्षरण की शुरुआत 1990 के दशक में तेज शहरीकरण, बड़े निर्माण कार्य, अंधाधुंध खनन और पेड़ों की कटाई के कारण हुई थी। स्थिति गंभीर होने पर 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली में अवैध खनन पर रोक लगाई थी, लेकिन नए फैसले के बाद एक बार फिर पर्यावरण को लेकर चिंताएं गहरा गई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अरावली में खनन बढ़ता है, तो राजस्थान में रेगिस्तान का फैलाव तेजी से होगा, मानसूनी हवाएं कमजोर पड़ेंगी और प्रदेश में वर्षा की मात्रा में गिरावट आ सकती है। अरावली की ऊंचाई घटने से मानसून का पूरा तंत्र प्रभावित हो रहा है, जिसका असर प्रदेश के मौसम पैटर्न पर साफ दिखाई देने लगा है। सुदामा/ईएमएस 22 दिसंबर 2025