कर्नाटक विधानसभा द्वारा हेट स्पीच और हेट क्राइम के खिलाफ नया कानून पारित किया गया है। कर्नाटक सरकार ने इस कानून के तहत नफरत फैलाने वाले भाषण, लेखन, सोशल मीडिया पोस्ट या किसी भी बोलने और सुनने वाले माध्यम से घृणा को बढ़ावा देने पर दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को दंडित करने का प्रावधान किया गया है। दोष सिद्ध होने पर दोषी को 1 से 7 साल तक की सजा और 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। यह कानून केवल दंडात्मक कानून नहीं है, बल्कि समाज को एक स्पष्ट संदेश भी देने का प्रयास है, वह यह कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब नफरत फैलाना नहीं है। इस कानून के लागू होने के बाद “राजनीतिक एवं धार्मिक अभिव्यक्ति” की आड़ में नफरत फैलाने को कानून के अनुसार अपराध माना गया है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में हेट स्पीच की घटनाओं में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है। चुनावी रैलियों, टीवी डिबेट्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर धर्म, जाति, भाषा और समुदाय के आधार पर नफरत फैलाने वाले बयान आम हो गए हैं। यह नफरत सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि आगे चलकर हिंसा, सामाजिक बहिष्कार, नफरत और भय के माहौल को जन्म देती हुई दिखाई देती है। इस कारण हत्या अपराध और माबलीचिंग की घटनाएं बड़ी तेजी के साथ बढ़ रही हैं। इतिहास गवाह है, हर बड़ी साम्प्रदायिक हिंसा की जमीन नफरत भरे भाषणों से तैयार होती है। भाषण के जरिए एक समूह दूसरे समूह के खिलाफ नफरत और हिंसा का वातावरण बनाने का काम करता है। जो नफरत के माध्यम से समाज को विभक्त करने का मुख्य कारण बनता है। इस कानून का विरोध बीजेपी द्वारा यह कहकर किया जा रहा है, कि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित होगी। लोग अपनी बात खुलकर नहीं कह पाएंगे। इस कानून का दुरुपयोग संभव है। कर्नाटक भाजपा का यह तर्क अधूरा और राजनीति से भरा हुआ सुविधाजनक पेंतरा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार है। संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में जिम्मेदारी भी तय करता है। यह अधिकार निरंकुश नहीं है। संविधान स्वयं सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर उचित प्रतिबंध की अनुमति भी देता है। नफरत फैलाना न तो विचार है, दूसरे के विचारों से असहमत होना भी सामाजिक अपराध नहीं है। गौर करने वाली बात यह है, कि जिन राजनीतिक दलों द्वारा कर्नाटक के इस कानून पर सबसे अधिक आपत्ति दर्ज कराई गई है, उन राजनीतिक दलों की राज्य एवं केंद्र सरकार ने यूएपीए, एनएसए और देशद्रोह जैसे कहीं अधिक कठोर कानून लागू कर रखे हैं। स्वतंत्र अभिव्यक्ति के विरोध में जो लोग कर्नाटक में बने कानून का विरोध कर रहे हैं, वही केंद्र में इस तरह के कानून का खुलकर समर्थन करते हैं। सैकड़ो लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर केंद्र द्वारा लंबे समय से जेल में रखा गया है। इससे दोहरापन स्पष्ट रूप में झलकता है। जिस तरह से भारत में नफरत दिन प्रतिदिन फैलती चली जा रही है, आवरण ओढ़कर हेट स्पीच जगह-जगह बड़े पैमाने पर उत्तेजना के साथ, जिसमें हिंसा का भी पुट होता है, दी जा रही हैं। इस तरह की हेट स्पीच पर नियंत्रण वाले कानून को “तानाशाही” कहना राजनीतिक दलों के दोहरे मापदंडों को उजागर करता है। कर्नाटक का यह कानून देश के बाकी राज्यों के लिए एक संकेत है। लोकतंत्र में चुनाव जीतकर सत्ता में काबिज होना राजनीतिक दलों का उद्देश्य होता है। चुनाव जीतने के लिए इस तरह की हिंसा और सामाजिक विद्वेश को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। समाज और लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यक्तिगत और सामाजिक हितों को सुरक्षित और सम्मानजनक बनाना सरकार की जिम्मेदारी है। नफरत और हिंसा पर लगाम लगाने वाला कानून से किसी को डर लगता है, तो यह डर कानून का नहीं, बल्कि अपनी स्वार्थ की राजनीति और मौका परस्ती का है। लोकतांत्रिक व्यवस्था का सच यही है, जो नफरत के स्थान पर सामाजिक एवं व्यक्तिगत प्रेम और सद्भाव का प्रतीक है। भारतीय लोकतंत्र में सभी वर्गों को समान अधिकार दिए गए हैं सभी को अपने-अपने धर्म के पालन करने का अधिकार दिया गया है। सबको अपना जीवन निजी विचार से जीने का अधिकार है। इसमें कोई भी दूसरा यदि अतिक्रमण करता है अथवा सार्वजनिक व्यवस्थाओं में विद्वेष पैदा करने की कोशिश करता है तो वह भारतीय लोकतंत्र के हिसाब से अपराध है। इस तरह के अपराधों को सख्ती से नियंत्रित करने की जरूरत है। कर्नाटक सरकार द्वारा हेट स्पीच को लेकर जो कानून बनाया गया है वह वर्तमान समय की जरूरत है। हेट स्पीच पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर अपना फैसला दे चुका है। केंद्र एवं राज्य सरकारें हेट स्पीच के मामले में कार्यवाही नहीं कर रही हैं, जिस कारण सुप्रीम कोर्ट का आदेश होने के बाद भी पुलिस द्वारा कार्यवाही नहीं करने से, हेट स्पीच का चलन दिन व दिन बढ़ता चला जा रहा है। इसका दुरुपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है। कानून व्यवस्था की स्थिति दिनों-दिन खराब हो रही है। अपराध भी बढ़ते चले जा रहे हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारें अपनी सुविधा के अनुसार हेट स्पीच के मामले में कार्रवाई करती हैं, जिसके कारण स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है। इस पर रोक लगना ही चाहिए। कर्नाटक सरकार को अधिकार है, वह अपने राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने के लिए इस तरह के कानून बना सके। उसका ईमानदारी से बिना किसी भेदभाव के पालन कर राज्य की कानून व्यवस्था को बनाए रख सके। कर्नाटक सरकार ने इस कानून का ईमानदारी से पालन किया, तो भारतीय संविधान, लोकतांत्रिक व्यवस्था, सामाजिक, धार्मिक एवं व्यक्ति के निजी अधिकार सुरक्षित होँगे। ईएमएस / 22 दिसम्बर 25