लेख
23-Dec-2025
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पुस्तक: भक्ति -द्वार के लेखक श्री :संजय गोस्वामी ने ईश्वर की भक्ती पर एक आध्यात्मिक पुस्तक लिखा है यह पुस्तक ईश्वर के भक्ति को काव्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है भक्ति में बहुत शक्ति होती है। भक्ति का तात्पर्य है-स्वयं के अंतस को ईश्वर के साथ जोड़ देना। जुड़ने की प्रवृत्ति ही भक्ति है। दुनियादारी के रिश्तों में जुट जाना भक्ति नहीं है। भक्ति का मतलब है पूर्ण समर्पण। सरल शब्दों में हम कहते हैं कि हमारी आत्मा परमात्मा की डोर से बंध गई। ईश्वर के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित होने वाला सच्चा साधक ही भक्त है। जिसके विचारों में शुचिता (पवित्रता) हो, जो अहंकार से दूर हो, जो किसी वर्ग-विशेष में न बंधा हो, जो सबके प्रति सम भाव वाला हो, सदा सेवा भाव मन में रखता हो, ऐसे व्यक्ति विशेष को हम भक्त का दर्जा दे सकते हैं। नर सेवा में नारायण सेवा की अनुभूति होने लगे, ऐसी अनुभूति ही सच्ची भक्ति कहलाती है।इस पुस्तक में ईश्वर के भक्त के लिए समस्त सृष्टि प्रभुमय होती है।इन्ही विचारों को प्रार्थना के माध्यम से 21वीं शदी में सुख, शांति, मानवता, सहिष्णुता,समृद्धि हेतु कविता के रूप में भक्ति भावना को दर्शाया गया है 48.पेज :की इस पुस्तक का मूल्य मात्र 20रूपये है मां काली की अनुभूति करते-करते कई लोग हैं जो कृष्णा तक पहुंच गए। पुस्तक एक अपने को पहचान करने की है अच्छी साधिका है है ईश्वर एक है किसकी पूजा करोगे तो किसकी प्राप्त हो जाएंगे मानवता को धारण करो क्योंकि यह सब एक ही परम ब्रह्म से प्रथम उत्पत्ति है।यह पुस्तक में बताया गया है परम ब्रह्म तो वास्तव में श्याम है जो निराकार सूप्त ऊर्जा है।सनातन में यही सबसे बड़ी समस्या है आदमी 2 4 किताबें पढ़ लेता है और उसके बाद गूगल के सहारे या चित्रकूट महाराज के सहारे कुछ गीत इत्यादि का अनुवाद करने के बाद विद्वान हो जाता है और ज्ञानी हो जाता है। यहां तक की आदि गुरु शंकराचार्य ने जगत विद्या ब्रह्म सत्य बोला तो उसको काटने के लिए जगत सत्य और स्वप्न मिथ्या बिना समझे बिना चिंतन किया ज्ञान बांटने लगता है।जब हम सोते हैं स्वप्न देखते हैं उस समय स्पष्ट नहीं सत्य होता है और जब नहीं सोते हैं तो यह जगत सत्य लगता है प्रश्न यह है सत्य है क्या तो उत्तर यह दोनों में से कोई सत्य नहीं है।इन सबों के बारे में पुस्तक में जानकारी दि गई है. जिससे समाज में सत्य को जानने की कोशिश करें किसी भी धर्म में भक्ति एक ऐसा रस है जो एक भक्त का अपने व्यक्तिगत भगवान के प्रति और भगवान का भक्त के प्रति आपसी गहरे भावनात्मक लगाव और प्रेम पर ज़ोर देता है।आप जितनी अधिक श्रद्धा करेंगे उतने सघन और जल्दी अनुभव होंगे आप यदि नास्तिक है और शुद्ध नास्तिक है ईश्वर नाम से घृणा करते हैं तो थोड़ा समय लग सकता है लेकिन सनातन शक्ति का अनुभव हो आवश्यक होता है। क्योंकि यह पुस्तक लिखने में मेरा कोई योगदान नहीं है यह उसी परमात्मा ने सिर्फ इस जगत में यह शरीर है बाकी सब ईश्वर की कृपा है। .../ 23 ‎दिसम्बर /2025