अपने ही काम आते हैं दूसरे तमाशा देखते हैं। आज हालात बहुत ही खराब होते जा रहे हैं लोग सोशल मीडिया व व्हाट्सप्प पर व्यस्त रहते हैं चौबीस घंटे भी कम पड़ते जा रहे हैं अपनों के लिए समय ही नहीं हैं समय का अभाव होता जा रहा हैं। अपने ही काम आएंगे गैर तमाशा देखेंगे। अपनों से मनमुटाव हैं मगर सात समंदर पार अजनवी के लिए समय ही समय हैं अपनों का कभी हाल नहीं पूछते लेकिन अजनबी लोगों की पल पल की खबर ली जाती हैं अपना आस पड़ोस ही काम आएगा विदेशी नहीं काम आएगा। आज लोग संवेदनहिन् हो गया हैं कौन जी रहा कौन मर रहा कोई सरोकार नहीं है। संवेदना मृतप्राय हो चुकी हैं। आधुनिक मानव स्वार्थ व मतलब तक सीमीत हो गया है। यह बहुत ही त्रासदी है। संस्कारों का अंतिम संस्कार होता जा रहा है। नैतिक मूल्यों का पतन हो चूका है। नैतिकता नाम की कोई चीज नहीं है लोग नैतिकता की अदालत में हार् रहे हैं। समाज के बुद्धिजीवी लोगों क़ो मंथन करना होगा नैतिक मूल्य क़ो बरकरार रखना होगा तभी समाज में नैतिकता बनी रहेगी। मानव ताउम्र भटकता रहता है धनलीपसा में मशगुल रहता हैं उल्टा सीधा काम करके माया क़ो इक्क्ठा कर रहा है आदमी क़ो पता है की यहाँ क़ोई अमर नहीं है। आधुनिक मानव जर, जोरू, जमीन के लिए अपनों का खून कर रहा है रिश्तों का कत्लेआम कर रहा हैं। खुनी रिश्ते खत्म होते जा रहे हैं। इंसान क़ो कोई नहीं गिरा सकता इंसान ही इंसान क़ो गिरा रहा है। खुनी रिश्ते दरक रहे हैं इन रिश्तों क़ो बचाना चाहिए। आज लोग एक दूसरे से बेबजह ही दुश्मनी रखते है। किसी का आदर सम्मान नहीं करते उल्टा अपमान करते है। आदमी क़ो अपना अतीत नहीं भूलना चाहिए क्यूंकि अतीत की परछाईयां मरते दम तक पीछा करती हैं। वक़्त एक जैसा नहीं रहता राज क़ो रंक बनने में एक पल नहीं लगता अहंकार त्याग देना चाहिए। ईएमएस / 23 दिसम्बर 25