लेख
24-Dec-2025
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अटल बिहारी वाजपेयी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन पर राज्‍यसभा में 29 मई सन 1964 को कहा था,आज हम सब यहाँ एक महान आत्मा की स्मृति में एकत्रित हुए हैं, जिनका नाम केवल भारत में नहीं, सम्पूर्ण मानवता में सम्मानपूर्वक लिया जाता है। एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूँगा हो गया, एक लौ थी जो अनंत में विलीन हो गई। यह सपना एक ऐसे संसार का था जो भय और भूख से रहित हो, गीत वह महाकाव्य जैसा जिसमें गीता की गूँज और गुलाब की सुगंध हो, और वह लौ वह दीपक की तरह था जिसने रात भर जलकर हर अँधेरे से लड़ा और हमें रास्ता दिखाया। मृत्यु ध्रुव सत्य है और शरीर नश्वर है। जिस सुंदर मन और शरीर को कल हमने शोक के साथ बिदा किया, उसका विश्राम निश्चित था, लेकिन क्या यह तरीका इतना अचानक और चुपके से होना चाहिए था जब हमारे साथी सोए पड़े थे और पहरेदार बेख़बर थे? हमारे जीवन की यह अमूल्य निधि खो गई। भारत माता आज शोकमग्न है उसका सबसे प्यारा राजकुमार खो गया। मानवता आज असमंजस में है उसका पुजारी चला गया। शांति आज अशांत है उसका रक्षक विदा हो गया। जन-जन की आँखों का तारा टूट गया। विश्व के रंगमंच पर वह महान अभिनेता अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अन्तर्ध्यान हो गया। नेहरू के जीवन का संकेत रामायण के महाकवि वाल्मीकि के कथन से मिलता है कि भगवान राम “असंभवों के समन्वय” थे, और इसी प्रकार नेहरू के जीवन में उदारता और दृढ़ता का अद्भुत सम्मिश्रण दिखाई देता था। वे शांति के पुजारी भी थे और स्वाधीनता तथा सम्मान की रक्षा के लिए दृढ़ता से लड़ने वाले भी। उनके व्यक्तित्व में व्यक्तिगत स्वाधीनता का समर्थन और आर्थिक समानता की प्रतिबद्धता परस्पर सम्पूर्ण रूप से विद्यमान थी। उनके चलन से जिस शून्य का अनुभव हम कर रहे हैं, वह केवल राजनीतिक शून्य नहीं है, बल्कि एक दर्शनीय आदर्श और सत्यवादी जीवन की अनुपस्थिति का शून्य है। असहमतियों और मतभेदों के बावजूद, उनके आदर्शों, प्रमाणिकता और देशभक्ति के प्रति हमारे हृदय में आदर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इसी भावना के साथ, मैं उस महान आत्मा के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। वाजपेयी जी ने नेहरू को याद करते हुए कहा कि वे सिर्फ एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक महान आदर्श, मार्गदर्शक और मानवता के लिए समर्पित जीवन थे। उन्होंने नेहरू को भारत माता का सबसे प्यारा राजकुमार बताया और कहा कि उनका योगदान न केवल भारत बल्कि विश्व के लिए शांति और सम्मान का संदेश था।वास्तव में भारतीय राजनीति मे अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं का आना देश के लिए ही नही बल्कि दुनियाभर के लिए सुखद कहा जा सकता है।उन्होंने वैचारिक मतभेद तो किये लेकिन किसी से मन भेद कभी नही किया।तभी तो उन्हें सर्व मान्य नेता माना गया।इसी गुण के कारण वे पक्ष विपक्ष दोनो के लिए सम्मानीय और लोकप्रिय रहे।उन्होंने राजनीति की एक बड़ी पारी खेली और पांच पीढ़ियों तक के सहभागी बने।जीवन पर्यन्त कुंवारा रहे वाजपेयी उन कुंवारे राजनेताओ के लिए आशा की किरण रहे जो उनके अनुसार ही राजनीतिक सफलता चाहते थे।विदित हो सन 1957 की लोकसभा में भारतीय जन संघ के सिर्फ़ चार सांसद थे। इन सासंदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन से कराया गया। तब राष्ट्रपति ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि वो किसी भारतीय जन संघ नाम की पार्टी को नहीं जानते।अटल बिहारी वाजपेयी उन चार सांसदों में से एक थे। आज भारतीय जनसंघ की उत्तराधिकारी भारतीय जनता पार्टी के सबसे ज़्यादा सांसद हैं और शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने बीजेपी का नाम न सुना हो।शायद यह बात सच हो। लेकिन यह भी सच है कि भारतीय जन संघ से भारतीय जनता पार्टी और सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफ़र में अटल बिहारी वाजपेयी ने कई पड़ाव तय किए हैं।नेहरु-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओँ में शामिल है जिन्होंने सिर्फ़ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बलबूते पर सरकार बनाई। एक अध्यापक के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए जीवन का शुरुआती सफ़र ज़रा भी आसान न था।25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई. उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरु किया. उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया। 1951 में वो भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे. अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया।वैसे लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वह हार गए थे. 1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया. लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वह दूसरी लोकसभा में पहुंचे. अगले पाँच दशकों के उनके संसदीय करियर की यह शुरुआत थी। 1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे. विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया. इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे सुखद क्षण बताते हैं. 1980 में वो बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे।1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए । दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक वे संसद मे लगातार बने रहे लेकिन बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही।ख़ासतौर से 1984 में जब वह ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे। 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे. 16 मई 1996 को वे पहली बार प्रधानमंत्री बने. लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा।इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने, लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए। 1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली. इस तरह वाजपेयी को लगातार तीन बार देश का प्रधानमन्त्री बनने का अवसर मिला।प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू से लेकर पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी व राजीव गांधी भी वाजपेयी का बहुत सम्मान करते थे।विपक्ष के नेता के रूप मे अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी को उनकी सफल विदेश नीति के लिए उन्हें संसद मे दुर्गा कहकर उनका सम्मान किया था।वे प्राय दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचते थे।उनकी इसी सोच ने उन्हें बड़ा बनाया और सबका चेहता भी।तभी तो अटल बिहारी वाजपेयी दिवंगत होने के बावजूद यादों में आज भी जिंदा है। (लेखक विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति व वरिष्ठ साहित्यकार है) ईएमएस / 24 दिसम्बर 25