(वीर बाल दिवस 26 दिसम्बर पर विशेष ) वीर बाल दिवस गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबज़ादे, जोरावर सिंह जी और फतेह सिंह जी के बलिदान को याद करने के लिए मनाया जाता है। इन दोनों साहिबज़ादों ने मुगल शासक औरंगज़ेब के अत्याचारों का सामना करते हुए धर्म के लिए अपने प्राणों का त्याग कर दिया था।वीर बाल दिवस गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबज़ादे, जोरावर सिंह जी और फतेह सिंह जी के बलिदान को याद करने के लिए मनाया जाता है। इन दोनों साहिबज़ादों ने मुगल शासक औरंगज़ेब के अत्याचारों का सामना करते हुए धर्म के लिए अपने प्राणों का त्याग कर दिया था। क्यों 26 दिसंबर को मनाया जाता है? 26 दिसंबर, 1704 को ही इन दो साहिबज़ादों को दीवार में चिनवा दिया गया था। इसीलिए इस दिन को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार क्या है? प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार भारत सरकार द्वारा बच्चों को उनके विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। यह पुरस्कार बच्चों को प्रेरित करने और उनके उत्कृष्ट कार्यों को पहचानने के लिए दिया जाता है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार को भारत सरकार असाधारण उपलब्धियों के लिए 7 श्रेणियों में प्रदान करती है। इनमे शामिल है- कला और संस्कृति, बहादुरी, नवाचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सामाजिक सेवा, खेल और पर्यावरण आदि है आखिर जानते है गुरू गोविन्द सिंह की विरता और उनके पराक्रम और उनका सारे परिवार की शहादत जो कट्टरपंथी ताकतों से जम कर लड़ी, सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह की जयंती नानकशाही कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में पड़ती है। वह दुनिया के अकेले ऐसे व्यक्ति होंगे, जिनके पिता और बच्चों की उनके सामने हत्या कर दी गई। सिख समाज के लिए इस दिन का विशेष महत्व होता है। इस दिन गुरु द्वारों में शब्द, प्रार्थना, लंगरों का आयोजन होता है, साथ ही उनके बलिदानों एवं उपदेशों को याद किया जाता है। गुरु गोबिद सिंह मानवता एवं त्याग के प्रतीक थे। उन्हें धर्म और मानव जाति के कल्याण हेतु अद्वितीय योगदान के लिए भी जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष पौष माह के शुक्ल पक्ष सप्तमी को गुरु गोबिद सिंह जयंती मनाई जाती है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार गुरु गोबिद सिंह का जन्म 22 दिसंबर, 1666 में पटना (बिहार) में हुआ था। पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी थी। बाल्यावस्था में उन्हें गोविंद के नाम से पुकारा जाता था। गोविंद सिंह बाल्यकाल से बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। गुरु गोबिंद सिंह सिख पंथ के दसवें गुरु थे। इसके बाद उन्होंने गुरु परंपरा को खत्म कर गुरु ग्रंथ साहिब को स्थाई गुरु घोषित कर दिया। जब औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर का कत्ल करवा दिया, तो उनकी शहादत के बाद उनकी गद्दी पर गुरु गोविंद सिंह को बैठाया गया। उस समय उनकी उम्र मात्र 9 वर्ष थी। गुरु की गरिमा बनाये रखने के लिए उन्होंने अपना ज्ञान बढ़ाया और संस्कृत,फारसी,पंजाबी और अरबी भाषाएं सीखीं। गुरु गोविंद सिंह ने धनुष-बाण, तलवार, भाला आदि चलाने की कला भी सीखी।उन्होंने सिखों को अपने धर्म,जन्मभूमि और स्वयं अपनी रक्षा करने के लिए संकल्पबद्ध किया और उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाया। पंच प्यारे भी गुरु गोविंद सिंह की ही देन है। केशगढ़साहिब में आयोजित सभा में गुरु गोविंद सिंह ने ही पहली बार पंच प्यारों को अमृत छकाया था। इस घटना को देश के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है,क्योंकि उस समय देश में धर्म,जाति जैसी चीजों का बहुत ज्यादा बोलबाला था। गुरु गोबिंद सिंह जिन्हें ‘दशमेश गुरू’ भी कहते हैं वह दुनिया के एकमात्र सिख गुरू हैं, जिन्होंने सिख धर्म की आस्था के लिए अपने सभी चारों पुत्रों का बलिदान दे दिया। सिख धर्म के अनुयायी गुरू गोबिंद सिंह की जयंती को प्रकाश पर्व के नाम से भी सेलिब्रेट करते हैं। गुरु गोविंद सिंह जी के द्वारा सन् 1699 में 13 अप्रैल बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की गई। यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। खालसा का मतलब होता है खालिस यानि शुद्ध जो मन, वचन एवं कर्म से पूरी तरह से शुद्ध हो और समाज के प्रति पूरी तरह से समर्पण का भाव रखता हो। पंज प्यारे की स्थापना से पहले सिख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा, कौन अपने सिर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक स्वयं सेवक तुरंत सामने आकर इस बात के लिए तैयार हो गया जिसके बाद गुरु गोविंद सिंह जी उसे अपने साथ दूसरे तंबू में ले गए जब कुछ देर बाद वे वापस लौटे तो उनकी तलवार पर खून लगा हुआ था। उसके बाद गोविंद जी ने दोबारा भीड़ में खड़े लोगों से वही सवाल पूछा तो फिर से उसी प्रकार एक और व्यक्ति राजी हो गया और उनके साथ चला गया। जिसके बाद वे फिर वह खून से सनी तलवार लेकर बाहर आए। इसी तरह से एक-एक करके जब पांचवा स्वयंसेवक भी उनके साथ तंबू के भीतर चला गया, तब इसके कुछ समय बाद गुरु गोविंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस बाहर आ गए और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया। इस तरह से पंज प्यारे की स्थापना हुई। चिड़ियाँ नाल मैं बाज लड़ावाँ,गिदरां नुं मैं शेर बनावाँ सवा लाख से एक लड़ावाँ,ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ सिखों के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह द्वारा 17 वीं शताब्दी में कहे गए ये शब्द आज भी सुनने या पढ़ने वाले की आत्मा को चीरते हुए उसके शरीर में एक अद्भुत शक्ति का संचार करते हैं। ये केवल शब्द नहीं हैं,शक्ति का पुंज है, एक आग है अन्याय के विरुद्ध, अत्याचार के विरुद्ध, भय के विरुद्ध, शक्ति के दुरुपयोग के विरुद्ध, निहत्थे और बेबसों पर होने वाले जुल्म के विरुद्ध। कल्पना कीजिए उस आत्मविश्वास की जो एक चिडिया को बाज से लड़ा सकता है, उस विश्वास की जो गीदड़ को शेर बना सकता है, उस भरोसे की जिसमें एक अकेला सवा लाख से जीत सकता है। और हम सभी जानते हैं कि उन्होंने जो कहा वो करके भी दिखाया।इनके दो बड़े पुत्र चमकौर के युद्ध में शहीद हो गए और दो छोटे पुत्र मात्र 8 और 5 वर्ष की आयु में धर्म की रक्षा करते हुए दीवार में जिंदा चिनवा दिए गए थे। वो इन्हीं की दी शिक्षा थी जो उस अबोध आयु के बालक मुसलमान सूबेदार वजीर खान की कैद में होते हुए भी डरे नहीं और धर्म परिवर्तन के नाम पर अपने दादा की कुर्बानी याद करते हुए बोले कि जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की परवाह भी नहीं की तुम उनके पोतों को मुसलमान बनाने की सोच भी कैसे सकते हो? इन कुर्बानियों ने गुरु गोविंद सिंह जी को और मजबूत बना दिया और 1705 में उन्होंने औरंगजेब को छंद शेरों के रूप में फारसी भाषा में एक पत्र लिखा जिसे जफरनामा कहा जाता है।हालांकि यह पत्र औरंगजेब के लिए था और इसमें उन्होंने औरंगजेब को उसका साम्राज्य नष्ट करने की चेतावनी दी थी लेकिन इसमें जो उपदेश दिए गए हैं उनके आधार पर इसे धार्मिक ग्रंथ के रूप में स्वीकार करते हुए दशम ग्रंथ में शामिल किया है। गुरु गोविंद सिंह जी इतिहास के वो महापुरुष हैं जो किसी रियासत के राजा तो नहीं थे लेकिन अपनी शख्सियत के दम पर लोगों के दिलों पे राज करते थे। उन्होंने इस गुलाम देश के लोगों को सिर उठाकर जीना सिखाया, लोगों को विपत्तियों से लड़ना सिखाया, यह विश्वास दिलाया कि अगर देश आज गुलाम है तो इसका भाग्य हम ही बदल सकते हैं। वो गुरु गोविंद सिंह जी ही थे जिन्होंने अपने भक्तों को एक सैनिक बना दिया, उनकी श्रद्धा और भक्ति शक्ति में बदल दी, जिनके नेतृत्व में इस देश का हर नागरिक एक वीर योद्धा बन गया, सिखों के दसवें एवं आखिरी गुरु की 356 साल पुरानी हर सीख आज भी प्रासंगिक है। उनके बताए पथ पर चलकर जिस देश ने अपना इतिहास बदला आज एक बार फिर से उन्हीं का अनुसरण करके हम अपने देश का भविष्य बदल सकते हैं। आवश्यकता है अपनी आने वाली पीढ़ी को उनके बताए संस्कारों से जोड़ने की।गुरु गोबिंद सिंह की तीन पत्नियां थीं। पहली पत्नी जीतो, से 3 पुत्र जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह, दूसरी पत्नी सुंदरी से अजीत सिंह, लेकिन तीसरी पत्नी साहिब देवन से कोई संतान नहीं थी। 1704 के चमकौर युद्ध में 40 बहादुर सिख योद्धाओं के साथ अजीत सिंह और जुझार सिंह सैकड़ों मुगल सैनिकों पर कहर बनकर टूट पड़े और आधी से ज्यादा सेना का सफाया कर दिया, लेकिन मुगल सेना गुरु गोबिंद सिंह की हत्या के फिराक में थी। तभी अजीत और जुझार पिता की ढाल बनकर आ गये। पिता को तो उन्होंने बचा लिया, लेकिन खुद शहीद हो गए अपनों के विश्वासघात से सरहिंद के नवाब वजीर खान ने गोबिंद सिंह के दो अन्य पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह और उनकी माता को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों बच्चों पर इस्लाम धर्म कबूल करने का दबाव डाला गया। इंकार करने पर दोनों को दीवार में चुनवा दिया गया। बेटों की इस नृशंस हत्या को सहन नहीं कर पाने से माता गुजरी भी शहीद हो गईं। गुरु गोबिंद सिंह सिख धर्म के 10वें गुरु, दार्शनिक कवि और उन्हों्ने खालसा वाणी - वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह दी। बैसाखी के दिन 1699 में उन्होंयने खालसा पंथ की स्था पना की थी। यही नहीं उन्हों्ने सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया था। उन्होंाने खालसा पंथ की रक्षा के लिए मुगलों और उनके सहयोगियों से 14 युद्ध लड़े थे। गुरु गोबिंद सिंह की गिनती महान लेखकों और रचनाकारों में होती है। उन्होंनने जाप साहिब, अकाल उस्तगत, बिचित्र नाटक, चंडी चरित्र, शास्त्रि नाम माला, अथ पख्यांख चरित्र लिख्य ते, ज़फ़रनामा और खालसा महिमा जैसी रचनाएं लिखीं। बिचित्र नाटक को उनकी आत्म कथा माना जाता है, जोकि दसम ग्रन्थ का एक भाग है। आपको बता दें कि गुरु गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम दसम ग्रंथ है। गुरु गोबिंद सिंह ने जीवन जीने के लिए पांच सिद्धांत दिए थे, जिन्हेंि पांच ककार कहा जाता है। पांच ककार का मतलब क शब्द से शुरू होने वाली उन 5 चीजों से है, जिन्हें गुरु गोबिंद सिंह के सिद्धांतों के अनुसार सभी खालसा सिखों को धारण करना होता है। गुरु गोविंद सिंह ने सिखों के लिए पांच चीजें अनिवार्य की थीं- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा। इनके बिना खालसा वेश पूर्ण नहीं माना जाता। इनमें केश सबसे पहले आते हैंइस दिन दुनिया भर में सिख समुदाय गुरु गोबिंद सिंह जयंती को बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाते हैं। भारी संख्या में सिख पुरुष, महिलाएं एवं बच्चे सुबह सवेरे प्रभात फेरियों में भाग लेते हैं। पूरे रास्ते गुरू ग्रंथ साहब का पाठ एवं भजन होता है। इसके पश्चात गुरू द्वारों में भजन, कीर्तन एवं लंगर (मुफ्त भोजन) का आयोजन किया जाता है। कालांतर में सरहद के नवाब वजीर खां ने गुरु गोबिंद सिंह पर धोखे से प्रहार किया, जिसकी वजह से 7 अक्टूबर 1708 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी शहादत वाले स्थान पर तख्त श्री हजूर साहिब बना है, जो वर्तमान में नांदेड़ (महाराष्ट्र) में है। .../ 25 दिसम्बर /2025