राज्य
25-Dec-2025
...


- शहरी विधानसभा क्षेत्रों के विधायक जुटे गुणा-भाग में भोपाल (ईएमएस)। मप्र में एसआईआर के बाद मतदाता सूची के प्रारंभिक प्रकाशन ने कई विधायकों को परेशानी में डाल दिया है। खासकर शहरी क्षेत्र के विधायकों की चिंता बढ़ गई है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश में शहरी क्षेत्रों में अधिक मतदाताओं के नाम कटे हैं। ऐसे में विधायक अपने-अपने क्षेत्र में वोट बैंक का गणित लगाने लगे हैं। गौरतलब है कि 42.74 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम इसमें हटाए गए हैं। शहरी विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या अधिक घटी है। इससे कई विधानसभाओं में राजनीति समीकरण प्रभावित होने की संभावना बन सकती है। उदाहरण के तौर पर भोपाल की गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र में फिलहाल 97,052 हजार मतदाता कम हुए हैं। यहां पिछला चुनाव भाजपा की कृष्णा गौर 1,06,668 मतों के अंतर से जीती थीं। इसी तरह, नरेला विधानसभा क्षेत्र में 81,235 हजार मतदाता घटे। यहां से भाजपा के विश्वास सारंग 25 हजार मतों के अंतर से जीते। इसका मतलब है कि अब नेताओं ने मतदाताओं का सही नियोजन नहीं किया तो आने वाले चुनाव में इनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। प्रदेश की उन सभी शहरी सीटों की राजनीति प्रभावित हो सकती है, जिन सीटों पर हार-जीत का अंतर पांच या दस हजार से कम रहा है। राजनीतिक दलों को झोंकनी होगी ताकत- एसआइआर के दूसरे चरण में अब 5,31,31,983 मतदाता हैं। हटाए गए मतदाताओं में अधिकतर शहरी क्षेत्रों के सर्वाधिक 22,78,393 स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए। अलग-अलग श्रेणियों में 42,74,160 मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं। हटाए गए मतदाताओं में अधिकतर शहरी क्षेत्रों के हैं। यही विषय राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों के लिए चिंताजनक है। अब 22 जनवरी तक अधूरे गणना पत्रक भरने वाले मतदाताओं को बुधवार से घर-घर जाकर नोटिस दिए जाएंगे। यदि किसी को अपना नाम जुड़वाने के लिए दावा करना है तो उसे फार्म छह और किसी नाम पर आपत्ति है तो फार्म सात भरना होगा। यह प्रक्रिया 22 जनवरी 2026 तक चलेगी। मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 21 फरवरी को होगा। राजनीतिक दलों और स्थानीय विधायकों को इस चरण में पूरी ताकत झोंकनी पड़ेगी। जिन मतदाताओं को नोटिस जारी हुआ है, उनसे संपर्क कर नोटिस का जवाब दिलाना होगा। मतदाताओं का सही नियोजन नहीं किया तो कम हार-जीत वाली शहरी सीटों के राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं। इन सीटों पर बदल भी सकते हैं समीकरण जिन विधानसभाओं में बहुत अधिक संख्या में मतदाता कम हुए हैं, उन पर जीत के लिए अब इन नेताओं ने मतदाताओं का सही नियोजन नहीं किया तो आने वाले चुनाव में इनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। एसआइआर के परिणामों से प्रदेश की उन सभी शहरी सीटों की राजनीति प्रभावित हो सकती है, जिन सीटों पर हार-जीत का अंतर पांच या दस हजार से कम रहा है। आने वाले चुनाव में इन सीटों पर समीकरण बदल भी सकते हैं। इसकी वजह यह है कि शहरी क्षेत्रों में गणना पत्रक कम भरे गए हैं जबकि गांव में अधिक। जो मतदाता गांव से शहर में आए हैं, वे अपना स्थायी नाम वहीं रखना चाहते हैं। जितने वोट कटे उससे भी कम अंतर से हारे विधानसभा चुनाव उधर, विशेष गहन पुनरीक्षण की ड्राफ्ट सूची जारी होते ही सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि एसआईआर के तहत जितने वोट काटे गए, उनसे कम अंतर से पार्टी विधानसभा चुनाव हारी थी। पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल ने कहा कि वे विधानसभा चुनाव में 15 हजार वोटों से हारे, जबकि उनकी विधानसभा सीट पर 16 हजार वोट काट दिए गए। पटेल ने सवाल किया कि इससे क्या साबित होता है। वहीं सज्जन सिंह वर्मा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव में करीब 32 लाख वोटों से हारी थी, लेकिन अब एसआईआर प्रक्रिया में 43 लाख से अधिक वोट हटा दिए गए हैं। जबकि साढ़े आठ लाख वोट नो मैपिंग हैं। उन्होंने इसे चुनाव आयोग पर सीधा आरोप बताया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जीतू पटवारी को विधानसभ में साजिश के तहत हराया गया। पटवारी की विधानसभा सीट पर 37 हजार वोट काटे गए, जबकि वे 33 हजार वोटों से चुनाव हारे।