राष्ट्रीय
26-Dec-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अरावली पर्वतमाला को लेकर मोदी सरकार द्वारा दी गई नई परिभाषा पर कड़ा सवाल उठाया है। उन्होंने इसे न केवल विशेषज्ञों की राय के विरुद्ध, बल्कि खतरनाक और पर्यावरण के लिए विनाशकारी बताया है। जयराम रमेश ने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) के आधिकारिक और प्रामाणिक आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि अरावली को ऊँचाई के आधार पर परिभाषित करना पूरी तरह से अवैज्ञानिक और संदिग्ध है। एफएसआई के अनुसार, 20 मीटर से अधिक ऊँचाई वाली अरावली पहाड़ियों में से केवल 8.7 प्रतिशत ही 100 मीटर से अधिक ऊँची हैं। वहीं, यदि एफएसआई द्वारा चिन्हित सभी अरावली पहाड़ियों को शामिल किया जाए, तो उनमें से 1 प्रतिशत से भी कम 100 मीटर से अधिक ऊँचाई वाली हैं। एफएसआई का स्पष्ट और संतुलित मत है कि ऊँचाई के आधार पर सीमाएँ तय करना उचित नहीं है, और अरावली की पूरी पर्वतमाल चाहे उसकी ऊँचाई कुछ भी हो उसको संरक्षण मिलना चाहिए। लेकिन सरकार की नई परिभाषा इसके ठीक उलट दिशा में जाती दिखाई दे रही है। क्षेत्रफल के लिहाज़ से इसका सीधा अर्थ यह निकलता है कि सरकार की नई परिभाषा लागू होने पर अरावली का 90 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा। इससे यह क्षेत्र खनन, रियल एस्टेट और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिए खोल दिया जाएगा, जो पहले से ही गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर और भी गहरा आघात पहुँचाएगा। जयराम रमेश ने इसे मोदी सरकार द्वारा पारिस्थितिक संतुलन पर सुनियोजित हमले का एक और उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि यह कदम प्रदूषण मानकों को कमजोर करने, पर्यावरण और वन कानूनों को शिथिल करने, तथा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और पर्यावरणीय शासन से जुड़ी संस्थाओं को निष्प्रभावी करने की उसी नीति का हिस्सा है, जो पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिली है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री द्वारा वैश्विक मंचों पर पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को लेकर दिए जाने वाले भाषणों और देश के भीतर ज़मीन पर किए जा रहे कार्यों के बीच कोई तालमेल नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हरित नेतृत्व की बात करने वाली सरकार, देश के भीतर प्राकृतिक धरोहरों को कमजोर करने वाले फैसले ले रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली पर्वतमाला न केवल उत्तर भारत के भूजल संरक्षण, वायु शुद्धिकरण और जलवायु संतुलन के लिए अहम है, बल्कि यह दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र को मरुस्थलीकरण से बचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे में संरक्षण को सीमित करना दीर्घकालिक पर्यावरणीय संकट को जन्म दे सकता है। वीरेंद्र/ईएमएस/26दिसंबर2025