ढाका (ईएमएस)। विगत 17 वर्षों तक बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान की ढाका और देश के अन्य हिस्सों में बीएनपी के पोस्टरों पर उनकी तस्वीरें दिखती रहीं, लेकिन उनकी आवाज देश में नहीं गूंजी। अब लंबे आत्म-निर्वासन के बाद उनकी घर वापसी ने हिंसा और अस्थिरता से जूझ रहे बांग्लादेश की राजनीति को नई दिशा दे दी है। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश की राजनीति के सबसे चर्चित चेहरों में से एक रहे तारिक रहमान की वापसी को देश की मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल के बीच एक निर्णायक क्षण माना जा रहा है। फरवरी में होने वाले आम चुनावों से ठीक पहले उनका लौटना न केवल बीएनपी बल्कि पूरे क्षेत्रीय समीकरण, खासकर भारत की सुरक्षा और कूटनीति के लिहाज से अहम माना जा रहा है। नई दिल्ली के लिए तारिक रहमान की वापसी कई मायनों में महत्वपूर्ण है। एक ओर प्रो-इंडिया अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोका गया है और दूसरी ओर खालिदा जिया गंभीर रूप से बीमार हैं। ऐसे में बांग्लादेश ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों की गतिविधियां बढ़ी हैं और अंतरिम प्रमुख मोहम्मद यूनुस के कार्यकाल में भारत विरोधी बयानबाजी तेज हुई है। भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता जमात-ए-इस्लामी को लेकर है, जिसे व्यापक रूप से पाकिस्तान की आईएसआई के करीबी संगठन के रूप में देखा जाता है। शेख हसीना सरकार के दौरान प्रतिबंधित यह संगठन उनके सत्ता से हटने के बाद फिर से राजनीति में सक्रिय हो गया है। हालिया जनमत सर्वेक्षणों में जहां बीएनपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है, वहीं जमात उसकी कड़ी चुनौती बनती दिख रही है। चिंता इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि जमात की छात्र इकाई ने ढाका विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में अप्रत्याशित जीत दर्ज की है। हालात ऐसे हैं कि भारत, ऐतिहासिक मतभेदों के बावजूद बीएनपी को मौजूदा हालात में एक अपेक्षाकृत उदार और लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में देख रहा है। भारत को उम्मीद है कि तारिक रहमान की वापसी से पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश आएगा और बीएनपी अगली सरकार बना सकती है। शेख हसीना के दौर में बांग्लादेश ने भारत से करीबी रिश्ते बनाए रखे और चीन व पाकिस्तान से संतुलित दूरी बरती। लेकिन यूनुस के नेतृत्व में हालात पलटते नजर आए हैं। किस्तान से नजदीकियां बढ़ी हैं और भारत से दूरी बनी है। ऐसे में भारत को उम्मीद है कि बीएनपी की वापसी से बांग्लादेश की विदेश नीति में संतुलन लौट सकता है। हाल के महीनों में भारत और बीएनपी के रिश्तों में नरमी के संकेत भी मिले हैं। 1 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से खालिदा जिया की गंभीर बीमारी पर चिंता जताते हुए भारत की ओर से समर्थन व्यक्त किया था, जिस पर बीएनपी ने खुले तौर पर आभार जताया। यह वर्षों बाद रिश्तों में आई दुर्लभ गर्मजोशी मानी गई। तारिक रहमान के पक्ष में एक और बात यह है कि उन्होंने यूनुस सरकार के साथ मतभेद खुले तौर पर जाहिर किए हैं और अंतरिम सरकार के दीर्घकालिक विदेश नीति फैसलों पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने जमात-ए-इस्लामी से गठबंधन करने से भी इनकार कर दिया है। इस साल की शुरुआत में लंदन में रहते हुए तारिक रहमान ने ‘बांग्लादेश फर्स्ट’ विदेश नीति का खाका पेश किया था, जिसे उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ नारे से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा था, “न दिल्ली, न पिंडी, सबसे पहले बांग्लादेश।” इस बयान के जरिए उन्होंने साफ कर दिया कि बीएनपी न तो भारत और न ही पाकिस्तान के दबाव में नीति तय करेगी। तारिक रहमान की ढाका वापसी पूरी तरह शक्ति प्रदर्शन में तब्दील हो गई। पार्टी के मुताबिक, करीब 50 लाख कार्यकर्ता एयरपोर्ट से उनके आवास तक रोड शो में शामिल हुए। सरकार ने गुरुवार को राजधानी में सुरक्षा के सर्वोच्च इंतजाम किए थे। स्थानीय मीडिया के अनुसार, करीब 10 विशेष ट्रेनों से तीन लाख से ज्यादा बीएनपी समर्थक ढाका पहुंचे। बीएनपी नेता रुहुल कबीर रिजवी के हवाले से रॉयटर्स ने कहा, “यह बांग्लादेश की राजनीति का निर्णायक क्षण है।” सूत्रों का कहना है कि इस शक्ति प्रदर्शन से कट्टरपंथी तत्व असहज हैं और चुनाव से पहले बीएनपी और जमात के बीच टकराव की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान के बेटे तारिक रहमान 2008 से लंदन में रह रहे थे और वहीं से बीएनपी का नेतृत्व कर रहे थे। शेख हसीना शासन के दौरान उन्हें कई मामलों में दोषी ठहराया गया, जिन्हें बीएनपी ने राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया। 2007 में भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तारी के दौरान उन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हुईं और कथित तौर पर यातनाएं दी गईं। 2008 में इलाज के लिए उन्हें लंदन जाने की अनुमति मिली, जिसके बाद वे वहीं रह गए। 2004 के ढाका ग्रेनेड हमले में भी उन्हें अनुपस्थिति में सजा सुनाई गई थी, जिसमें 24 लोगों की मौत हुई थी और शेख हसीना बाल-बाल बची थीं। सुदामा नरवरे/27 दिसंबर 2025