राज्य
29-Dec-2025
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1600 करोड़ बजट, फिर भी 17 हजार स्कूलों में भगवान भरोसे व्यवस्था, बालाघाट में मिड डे मील खाने के लिए नहीं है थाली केले के पत्ते पर मिड डे मील खा रहे बच्चे -जो बर्तन उपलब्ध थे वो खराब, उच्चाधिकारियों से मांग के बाद भी नहीं मिले बर्तन - भोपाल/ बालाघाट (ईएमएस)। मप्र के सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है। दुर्दशा का आलम ये है कि प्रदेश के 16,945 सरकारी स्कूलों में मध्यान भोजन व्यवस्था का कैसे संचालन हो रहा है इसकी किसी जिम्मेदार अधिकारी ने पिछले नौ माह से कोई सुध ही नहीं ली है। चौंकाने वाली बात ये है कि 1600 करोड़ के बजट वाली इस योजना के तहत कई स्कूलों में बच्चों को मिज्ञ डे मील खाने के लिए थाली ही नहीं है। ताजा मामला बालाघाट में सामने आया है। प्राथमिक शाला मेंड्रा से स्कूल में बच्चों को मिड डे मील खाने के लिए थालियां तक नहीं हैं। बच्चे जमीन पर केले में पत्ते रखकर मध्याह्न भोजन करने को मजबूर हैं। इस बारे में प्राथमिक शाला मेंड्रा प्रभारी सूर्यकांत कालबेले ने कहा कि स्कूल में संचालित मध्याह्न भोजन की स्थिति चिंताजनक है। यहां पर बच्चों के पास भोजन करने के लिए थालियां तक उपलब्ध नहीं हैं। बच्चे केले के पत्तों पर भोजन करने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि जो बर्तन उपलब्ध थे वो अब खराब हो चुके हैं। इसकी जानकारी कई बार उच्चाधिकारियों तक भेजी गई, लेकिन महीनों बीतने के बाद भी बर्तन उपलब्ध नहीं हो सके हैं। ऐसी परिस्थिति में बच्चे केले के पत्तों पर खाना खा रहे हैं। किरनापुर तहसील अंतर्गत ग्राम मेंड्रा की प्राथमिक शाला जर्जर अवस्था में हैं। यहां पर किसी तरह बच्चे मजबूरी में शिक्षार्जन करने को मजबूर हैं, जबकि ऐसी परिस्थिति में कभी भी कोई बड़ी अनहोनी हो सकती है। प्राथमिक शाला मेंड्रा में तकरीबन 20 बच्चे अध्ययन कर रहे हैं। लेकिन स्कूल भवन बहुत पुराना होने के कारण जर्जर हो चुका है। छत से प्लास्टर झड़ रहें है और फर्श पूरी तरह टूट चुकी है। ग्रामीणों के अनुसार कई बार छत से गिरते प्लास्टर से बच्चे बाल बाल बचे हैं फिर भी जर्जर छत के नीचे ही अध्ययन कार्य कराया जा रहा है। इस पूरे मामले पर शाला के प्रभारी सूर्यकांत कालबेले ने बताया कि स्कूल भवन की जर्जर हालत को लेकर कई बार अधिकारियों को अवगत कराया गया है। जर्जर भवन, बुनियादी सुविधाओं के अभाव तथा बच्चों की सुरक्षा को लेकर विस्तार पूर्वक लिखित जानकारी दी गई है, किन्तु उच्चाधिकारियों द्वारा भी कोई कारगर कदम अब तक नहीं उठाये गए हैं। उन्होंने बताया कि जिन स्कूलों के भवनों की हालत ठीक है। उन्हें नए भवन की स्वीकृति प्रदान की जा रही है, लेकिन प्राथमिक शाला मेंड्रा में बच्चे जान जोखिम में डाल कर पढ़ाई कर रहे हैं। इसके बावजूद यहां की सुध नहीं ली जा रही है। मॉनिटरिंग के लिए 795 करोड़ मप्र के सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन व्यवस्था में अव्यवस्था लगातार सामने आ रही है। यह स्थिति तब है जब मप्र के सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन व्यवस्था की मॉनिटरिंग के लिए सलाना 795 करोड़ रूपए खर्च किया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है जब निरीक्षण ही नहीं हो रहा है तो आखिर इस मद को कौन डकार रहा है। दरअसल इन आंकड़ों का खुलासा पीएम पोषण कार्यक्रम अंतर्गत तैयार की गई 4 अप्रैल से लेकर एक दिसंबर तक की ऑनलाइन निरीक्षण रिपोर्ट से हुआ है। बता दें सालभर में मध्यान भोजन के नाम पर करीब 1600 करोड़ रूपए से ज्यादा भारी भरकम बजट खर्च किया जाता है। भ्रष्टाचार का आलम ये है कि बच्चों की थाली तक को नहीं छोड़ा जा रहा है। मध्यान भोजन की व्यवस्था को सुगम तरीके से संचालित करने के लिए सिर्फ निरीक्षण पर 10 माह में प्रदेशभर में 1.92 करोड़ गाड़ी और डीजल के नाम पर खर्च किया जाता है। प्रत्येक जिले को 35 हजार प्रतिमाह दिया जाता है। ऐसे में 10 माह में 3.50 लाख रूपए एक जिले पर खर्च किया जाता है। बता दें साल में 365 दिन होते है लेकिन 240 दिनों का ही भुगतान किया जाता है। निरीक्षण के लिए तीन लोगों का दल प्रत्येक जिले में मध्यान भोजन की व्यवस्था के लिए तीन लोगों की टीम बनाई गई है। जिसमें एक टॉस्क मैनेजर, एक क्वालिटी मैनेजर एक डाटा एंट्री ऑपरेटर होता है। जिन्हें करीब 45 हजार से लेकर क्रमश 20 से 25 हजार तक मासिक सैलरी दी जाती है। लेकिन इसके बावजूद मध्यान भोजन के निरीक्षण में घोर लापरवाही सामने आई है। ऐसे में बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर निरीक्षण के नाम पर खर्च की जा रही मोटी रकम कौन डकार रहा है। बर्तन खरीदी के 102 करोड़ का उपयोग नहीं मप्र पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अिधकारियों की लापरवाही के चलते सितंबर से दिसंबर तक प्रदेश के 44 लाख से अधिक स्कूली बच्चों के पीएम पोषण (मध्याह्न भोजन) पकाने का पैसा नहीं दिया गया। केंद्र सरकार ने कुकिंग कॉस्ट का पैसा इसलिए नहीं दिया कि केंद्र सरकार ने मप्र शासन को स्कूलों में खाना बनाने-खाने वाले बर्तनों के रिप्लेसमेंट के लिए लगभग 9 महीने पहले 102 करोड़ रुपए दिए थे, जिसे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अिधकारियों ने उपयोग ही नहीं किया। केंद्र सरकार के पोर्टल पर यह पैसा दिखाई देने के कारण केंद्र सरकार ने आगे की राशि देने से इंकार कर दिया। मप्र पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, पीएम पोषण के जिम्मेदार अिधकारी सेंट्रलाइज कीचन के लिए बर्तन (मशीनें) खरीदी करना चाहते थे। अफसरों ने सेंट्रलाइज कीचन के लिए अनुमति भी मांगी, लेकिन केंद्र सरकार ने अनुमति नही दी। अफसरों की मंशा है कि अन्य 35 जिलों में भी सेंट्रलाइज कीचन से मध्याह्न भोजन की पूर्ति की जाए। इसके लिए 313 विकासखंडों में सेंट्रलाइज कीचन की जगह की तलाशी हो चुकी और कार्ययोजना पर काम हो चुका, लेकिन अमल नहीं हो पाया।