लेख
30-Dec-2025
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- सॉफ्टवेयर और ऐप के सोर्स कोड का खुलासा करे चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची को लेकर सामने आया विवाद केवल एक राज्य तक सीमित प्रशासनिक समस्या नहीं है, बल्कि यह भारत की चुनावी व्यवस्था की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सीधा सवाल खड़ा करता है। ईआरओ के अधिकार केंद्रीय चुनाव आयोग ने अपने पास ले लिए हैं? जिस मुद्दे को विपक्ष, विशेषकर राहुल गांधी, लंबे समय से उठा रहे हैं, चुनाव आयोग की डिजिटल प्रक्रियाएं अपारदर्शी हैं। तकनीक के जरिए मतदाताओं के लोकतांत्रिक अधिकारों से छेड़छाड़ करने के वह आरोप लगा रहे हैं। वह यह भी आरोप लगा रहे हैं कि चुनाव आयोग सरकार के दबाव में सत्ता पक्ष के काम कर रहा है। राहुल गांधी के आरोपों की सच्चाई अब जमीन पर दिखाई देने लगी है। केंद्रीय चुनाव आयोग के सेंट्रल सॉफ्टवेयर की तकनीकी खामी के चलते पश्चिम बंगाल में 31 से 32 लाख मतदाताओं को ‘अनमैप्ड’ घोषित कर उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। यह बेहद गंभीर मामला है। इससे पहले 58 लाख से अधिक नामों को ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाया जाना अपने आप में चिंताजनक है। मतदाता सूची तैयार करने का अधिकार जिलों में पदस्थ ईआरओ के पास होता है। बीएलओ, मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए मतदाताओं के घर जाकर जानकारी लेकर रिपोर्ट तैयार करता है। पश्चिम बंगाल में केंद्रीय चुनाव आयोग के पोर्टल से मतदाता सूची बनाने और मतदाताओं के नाम हटाने का काम सॉफ्टवेयर के माध्यम से हो रहा है। इसकी जानकारी स्थानीय चुनाव अधिकारी को नहीं होती है। केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा जो जांच के नोटिस जारी किए गए थे उसकी जांच किए जाने पर यह तथ्य उजागर हुआ है। 2002 की मतदाता सूची की पीडीएफ फाइल को पूरी तरह टेक्स्ट फॉर्मेट में बदला ही नहीं गया था। इसी कारण केंद्रीय चुनाव आयोग के सॉफ्टवेयर एवं पोर्टल में सही तरीके से नाम लिंक नहीं हो पाए। केंद्रीय चुनाव आयोग की लापरवाही और अपारदर्शिता को दर्शाता है। केंद्रीय चुनाव आयोग बिना पर्याप्त सत्यापन के सॉफ्टवेयर और प्रोग्राम के आधार पर काम कर रहा है, जिसके कारण चुनाव में भारी गड़बड़ी हो रही है। सबसे अहम सवाल यह है, जब मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने का अधिकार रिटर्निंग ऑफिसर का है। ऐसी स्थिति में दिल्ली से सॉफ्टवेयर के आधार पर मतदाताओं को नोटिस जारी करना, उनके नाम मतदाता सूची से हटाना या जोड़ना किस नियम के तहत केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा किया गया? पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने सुनवाई प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। राज्य चुनाव आयोग का इस तरह की रोक लगाना यह दर्शाता है, राज्य स्तर पर इस प्रक्रिया के कारण चुनाव का कार्य सही तरीके से हो ही नहीं सकता है। गलत तरीके से मतदाताओं के नाम जोड़ने और काटने का खामीयाजा स्थानीय बीएलओ और ईआरओ को भुगतना पड़ता है। मतदाता इसके लिए स्थानीय अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराता है। चुनाव कार्य में लगे पश्चिम बंगाल के अधिकारियों ने गंभीर आपत्तियां जताई हैं। यह टकराव केंद्र और राज्य चुनाव अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र की अस्पष्टता तथा क्षेत्रीय अधिकारियों के अधिकारों के हनन को दर्शाता है। केंद्रीय चुनाव आयोग एक तरह से सभी अधिकारों का केंद्रीयकरण कर सारे अधिकार अपने पास रखता चला आ रहा है। यह मामला केवल तकनीकी भूल का नहीं है। लाखों नागरिकों के मताधिकार से वंचित होने का कारण भी बन रहा है। लोकतंत्र में वोट का अधिकार सर्वोपरि और मौलिक अधिकार में है। यदि सॉफ्टवेयर की खामी से मतदाताओं का अधिकार और चुनाव की निष्पक्ष प्रणाली प्रभावित होती है, तो उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। ऐसे में राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग की डिजिटल प्रणाली पर उठाए गए सवालों को अब महज राजनीतिक बयान कहकर खारिज नहीं किया जा सकता है। चुनाव आयोग को न केवल उनके आरोपों का जवाब देना होगा वरन जो गड़बड़ियां कर्नाटक और हरियाणा के संबंध में उनके द्वारा पत्रकार वार्ता के जरिए बताई गई हैं, उस पर अब जवाब देना चुनाव आयोग के लिए जरूरी हो गया है, तभी चुनाव की निष्पक्षता बनी रहेगी। समय की मांग है, चुनाव आयोग अपने सभी सॉफ्टवेयर और सभी ऐप जो चुनाव कार्य में उपयोग में लाए जा रहे हैं उनके सोर्स कोड को सार्वजनिक करे। सभी हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और प्रोग्राम का स्वतंत्र तकनीकी ऑडिट कराना इस परिस्थिति में जरूरी हो गया है। चुनाव आयोग की पारदर्शिता ही लोकतंत्र और निर्वाचित सरकारों के प्रति विश्वास की नींव होती है। यदि चुनाव आयोग वास्तव में निष्पक्ष और विश्वसनीय है तो उसे तकनीक के पीछे छिपने के बजाय जनता के सामने तथ्यों को रखना होगा। वरना यह आशंका और गहरी होगी, कि चुनाव आयोग डिजिटल सिस्टम को मजबूत करने के बजाय उसे कमजोर करने का काम कर रहा है। जिस तरह से चुनाव के पहले मतदाता सूची के निर्माण, केंद्रीय स्तर पर मतदाताओं के नाम चुनाव के समय हटाने, जोड़ने तथा मतदान का प्रतिशत बार-बार घटाने-बढ़ाने तथा मतगणना के परिणाम जिले की जगह केंद्रीय स्तर से घोषित किये जा रहे हैं। इसको लेकर चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है। ईएमएस / 30 दिसम्बर 25