नई दिल्ली,(ईएमएस)। उत्तर प्रदेश के चर्चित उन्नाव दुष्कर्म मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें सेंगर को राहत देने की बात कही गई थी। शीर्ष अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे अपराध के दोषियों को किसी भी सूरत में जमानत नहीं मिलनी चाहिए। जहां एक ओर पीड़िता न्याय की अपनी लंबी लड़ाई लड़ रही है, वहीं दूसरी ओर इस मामले ने एक नया मोड़ ले लिया है। कुलदीप सेंगर की बेटी डॉ. इशिता सेंगर ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी चुप्पी तोड़ते हुए एक भावुक और विचारोत्तेजक पत्र साझा किया है। डॉ. इशिता सेंगर ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि पिछले आठ वर्षों से उनका परिवार न्याय की उम्मीद में खामोश रहा, लेकिन अब उनकी सहनशक्ति जवाब दे रही है। उन्होंने लिखा, मैं यह पत्र एक ऐसी बेटी के रूप में लिख रही हूं जो थक चुकी है और डरी हुई है। आठ साल तक हमने इस उम्मीद में चुप्पी साधे रखी कि अगर हम कानून और संविधान का सम्मान करेंगे, तो सच स्वतः सामने आ जाएगा। हमने संस्थानों पर भरोसा किया और किसी भी तरह का शोर या प्रदर्शन नहीं किया, लेकिन अब मेरा वह विश्वास टूट रहा है। इशिता ने समाज और सोशल मीडिया पर होने वाले मीडिया ट्रायल पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि उनकी व्यक्तिगत पहचान को केवल भाजपा विधायक की बेटी के लेबल तक सीमित कर दिया गया है, जिससे उनकी इंसानियत और बोलने के अधिकार को छीना जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि जिन लोगों ने कभी अदालती दस्तावेज या रिकॉर्ड नहीं देखे, उन्होंने भी उनके परिवार के खिलाफ राय बना ली है। इशिता ने साझा किया कि उन्हें और उनके परिवार को लगातार अमानवीय व्यवहार, गालियों और यहां तक कि दुष्कर्म और मौत की धमकियों का सामना करना पड़ता है। पत्र में इशिता ने अपनी आर्थिक और भावनात्मक थकान का जिक्र करते हुए कहा कि वे हर उस अधिकारी और संस्थान के पास गईं जहां से न्याय की उम्मीद थी, लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर उनके पास वास्तव में वह ताकत होती जिसका जिक्र अक्सर किया जाता है, तो क्या उन्हें आठ वर्षों तक बेजुबान रहकर अपने नाम को कीचड़ में घसीटे जाते हुए देखना पड़ता? इशिता का कहना है कि आज न्याय व्यवस्था और संस्थाओं पर डर और जनता के उन्माद का दबाव इतना अधिक है कि तथ्यों की अनदेखी की जा रही है। उन्होंने अपील की है कि कानून को बिना किसी बाहरी दबाव, हैशटैग या लोकप्रिय राय के काम करने दिया जाए। उन्होंने अंत में भावुक होते हुए लिखा, मैं एक ऐसी बेटी हूं जिसे अब भी इस देश पर विश्वास है, कृपया मुझे इस विश्वास पर पछतावा न करने दें। यह पत्र अब कानूनी गलियारों और सार्वजनिक मंचों पर नई चर्चा का केंद्र बन गया है, जो एक हाई-प्रोफाइल मामले के दूसरे पक्ष की मानवीय जद्दोजहद को दर्शाता है। वीरेंद्र/ईएमएस/30दिसंबर2025