अंतर्राष्ट्रीय
30-Dec-2025


ढाका(ईएमएस)। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। यहां प्रकाशित एक विस्तृत रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्तमान प्रशासन कथित तौर पर कट्टर इस्लामी एजेंडे को बढ़ावा दे रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, सरकार के कई मंत्री और उच्च अधिकारी जमात-ए-इस्लामी और हिज्ब-उत-तहरीर जैसे चरमपंथी समूहों के गहरे प्रभाव में काम कर रहे हैं, जो देश के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए एक नई चुनौती बन गया है। हादी की हत्या के पीछे यूनुस सरकार का हाथ होने की शंका जाहिर की गई है। इस विवाद के केंद्र में इंक़लाब मंच के प्रवक्ता शरिफ उस्मान हादी की हालिया हत्या है। हादी की दिनदहाड़े हत्या ने यूनुस सरकार की कार्यप्रणाली और मंशा पर संदेह पैदा कर दिया है। गौरतलब है कि हादी अपनी कट्टरपंथी बयानबाजी और विवादित ग्रेटर बांग्लादेश के विचार को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते थे, जिसमें भारत के कुछ हिस्सों को शामिल करने की बात कही जाती थी। 11 दिसंबर को जैसे ही यूनुस प्रशासन ने 12 फरवरी 2026 को होने वाले आम चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की, हादी ने ढाका-8 सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। इसके ठीक अगले दिन मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने उनके सिर में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इस हत्या की जांच ने प्रशासन की विश्वसनीयता पर और भी प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। पुलिस जांच में दावा किया गया है कि हमलावर अवामी लीग का एक पूर्व छात्र नेता था, जिसे अगस्त 2024 में शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद हथियारों की डकैती के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि जहां जेलें बुजुर्ग कैदियों से भरी पड़ी हैं और अदालतों में जमानत मिलना लगभग असंभव है, वहां एक डकैती के आरोपी को इतनी आसानी से जमानत कैसे मिल गई? आरोप लग रहे हैं कि यूनुस प्रशासन ने सैकड़ों संदिग्ध आतंकियों के मामलों में या तो जमानत दे दी है या आरोप वापस ले लिए हैं। रिपोर्ट में उजागर किया गया है कि बांग्लादेश की मौजूदा कानूनी और कार्यकारी व्यवस्था पूरी तरह से निर्देशों के तहत काम कर रही है। यह भी संदेह जताया गया है कि हमलावर शायद उसी समूह का हिस्सा हो सकता है, जिस पर अंतरिम सरकार भरोसा करती है। एक पार्टी से जुड़े व्यक्ति द्वारा हथियारबंद डकैती करना और फिर जेल से बाहर आकर राजनीतिक हत्या को अंजाम देना, किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अवामी लीग, जमात-ए-इस्लामी और छात्र संगठनों के बीच की सीमाएं धुंधली हो गई हैं। जुलाई 2024 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान भी कई छात्र नेता अवामी लीग की छत्रछाया में काम कर रहे कट्टरपंथी थे। जमात-ए-इस्लामी ने भी स्वीकार किया है कि उसने गुप्त रूप से अवामी ढांचे के भीतर रहकर ही बड़े आंदोलनों को हवा दी थी। अब जब देश चुनाव की ओर बढ़ रहा है, तब कट्टरपंथी तत्वों का यह वर्चस्व और चुनावी हिंसा की शुरुआत भविष्य में और अधिक रक्तपात की आशंका पैदा कर रही है। यूनुस सरकार पर लग रहे इन आरोपों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भी अपनी ओर खींचा है। वीरेंद्र/ईएमएस/30दिसंबर2025