राज्य
21-Nov-2023
...


{सप्ताह की बात आनन्द पुरोहित के साथ} विधानसभा के चलते चुनाव में, रमेश मेंदोला के एक वक्तव्य कि... मैं ही नहीं पूरा इन्दौर चाहता है कि कैलाश विजयवर्गीय मुख्यमंत्री बने... ने जहां प्रदेश बीजेपी में खलबली मचा दी थी, वहीं कैलाश विजयवर्गीय तो इसके प्रति पूरी तरह आश्वस्त ही है। इन्दौर की राजनीति से ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखने वालों के लिए यह जानना जरूरी है कि रमेश मेंदोला वर्तमान में उस विधानसभा से विधायक हैं जहां से कभी कैलाश विजयवर्गीय विधायक रहे थे। रमेश मेंदोला को कैलाश विजयवर्गीय के सखा, सारथी, उनके राजनीतिक रणनीतिकार, या.... जो जो भी कहा जा सकता कह सकते हैं....., संक्षेप में इतना ही कि कैलाश विजयवर्गीय की इस लोकप्रियता और उनके राष्ट्रीय महासचिव बनने के सफ़र में उनका बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। स्थानीय राजनीति को एक नया ही रंग देने के साथ .... भोजन भंडारों का नया ट्रेंड राजनीति में चलाने वाले रमेश मेंदोला के बारे में माना जाता है कि.... पहले वे ट्रेक मजबूत बनाते उसके बाद टारगेट बताते हैं ...अब पहली बार कैलाश विजयवर्गीय के लिए इस तरह सार्वजनिक रूप से कहा गया है तो कुछ तो राजनीति होंगी ही।..... वैसे कैलाश विजयवर्गीय ने भी इन्दौर एक नम्बर से उम्मीदवार बनाने के बाद ही क्षेत्र के मतदाताओं से अपनी पहली मुलाकात में ही यह कह दिया था कि... मैं यहां सिर्फ विधायक बनने के लिए ही नहीं आया हूं।..... और यह बात कैलाश विजयवर्गीय ने यूं ही सिर्फ चुनाव प्रचार के चलते नहीं कहीं थी बल्कि.... तमाम स्थितियों, संभावनाओं और हालातो के मद्देनजर ही उनका यह स्टेटमेंट था... तों अब मौका भी है और ...दस्तूर भी...। हालांकि पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ ही आम मतदाताओं के एक बड़े वर्ग की कैलाश विजयवर्गीय को मुख्यमंत्री बनाये जाने की इच्छा उनकी लोकप्रियता के चलते लगातार झलक रही है, और ऐसा नहीं कि इसके लिए प्रयास नहीं ही किए गये हो.... प्रयास तो एक नहीं अनेकों बार किए गए थे, और जिनमें सर्वाधिक सशक्त प्रयास महू विधानसभा सीट फतह करने के बाद हुएं थे... और जिनमें दो की सरगर्मी सर्वाधिक रहीं थी, पहला तो इन्दौर के बंगला नम्बर दो में बयालीस विधायकों की परेड और दूसरा जबलपुर के तात्कालिक विधायक बब्बू के सानिध्य में जबलपुर की एक होटल में विधायकों का जमावड़ा थे। परन्तु इन प्रयासों पर हर बार हाइकमान का निर्णय नकारात्मक ही रहा और कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश की राजनीति से केन्द्रीय सगंठन में शामिल हो राष्ट्रीय महासचिव की महत्वपूर्ण भूमिका में आ गए। पहले उमाभारती सरकार, फिर बाबूलाल गौर सरकार, और उसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश सरकार में लगातार दस वर्षों से ज्यादा मंत्री रहे कैलाश विजयवर्गीय वैसे तो मालवा निमाड़ क्षेत्र में भाजपा का एक बड़ा नाम है, वहीं उनकी गिनती प्रदेश के कद्दावर नेताओं में भी की जाती है। उन्हें लगातार चौथी बार भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बतौर महासचिव शामिल किया गया है। कैलाश विजयवर्गीय उस वक्त और ज्यादा सुर्खियों में आ गए थे जब उन्हें पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रभारी बनाकर भेजा था। हालांकि बीजेपी वहां सरकार तो नहीं बना पाईं परन्तु उनके अनुसार सम्मान जनक राजनैतिक स्थिति उसने वहां बना ली थी.... और इसके बाद कैलाश विजयवर्गीय के पुनः प्रदेश राजनीति में लौट मुख्यमंत्री के लिए कयास शुरू हो गये थे। वैसे भी प्रदेश बीजेपी में अभी तो मुख्यमंत्री पद के लिए कैलाश विजयवर्गीय का नाम शीर्ष पर ही माना जा रहा हैं.... लेकिन अगर इस बार नहीं तो शायद फिर नहीं की स्थिति भी बन सकती है। चार टर्म के अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में पहली बार 29 नवम्बर 2005 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान के इस टर्म में मुख्यमंत्री बनने के साथ ही बदलाव की भी सुगबुगाहट शुरू हो गई थी, परन्तु तब कैलाश विजयवर्गीय का नाम पीछे चला गया था और कांग्रेस से पाला बदल बीजेपी में आएं ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम तय माना जा रहा था, क्योंकि उनकी बदौलत 2018 के चुनावों में हारी भाजपा, कमलनाथ सरकार को हटा कर 24 मार्च 2020 को पन्द्रह माह में ही पुनः सत्ता में आई थी। कालांतर में उन्हें केन्द्र में मंत्री पद दे इस कयास को टालने की कोशिश भी की गई.... परन्तु फिर भी चर्चा में वे ही थे। उसके बाद बदलते घटनाक्रम के चलते नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, नरोत्तम मिश्रा, वीडी शर्मा और कई अनेकानेक नामो के साथ कैलाश विजयवर्गीय का नाम भी चर्चा में शामिल था। एक वक्त बाबूलाल गौर के बाद शिवराज सिंह चौहान के साथ साथ चले कैलाश विजयवर्गीय का नाम इस बार पांचवें छठे स्थान पर पहुंच चुका था। ज्योतिरादित्य सिंधिया चर्चाओं में पहले नम्बर पर ही बने हुए थे। शिवराज सिंह चौहान को बदलने के कयास के चलते चर्चा में आ रहे नामों पर बहुत पीछे चल रहें कैलाश विजयवर्गीय का नाम अचानक से सबसे ऊपर उस वक्त आ गया जब केन्द्रीय गृह मंत्री और भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने मध्यप्रदेश चुनाव की कमान अघोषित रूप से अपने हाथों में ले ताबड़तोड़ भोपाल के दौरे करना शुरू कर दिए और उसके साथ ही प्रथम संभागीय बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन इन्दौर में आयोजित करने के साथ प्रदेश भर में संभागीय बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन की जवाबदारी कैलाश विजयवर्गीय को देने की सूचना दी। इस बदलते परिवेश में कैलाश विजयवर्गीय का नम्बर बढ़ गया और रही सही कसर इस संभागीय सम्मेलन के पूर्व बीजेपी केन्द्रीय कार्यसमिति की घोषणा ने पूरी कर दी, जिसमें कैलाश विजयवर्गीय को चौथी बार महासचिव बनाया गया इस संदर्भ में कैलाश विजयवर्गीय की बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा से बात के वायरल विडियो ने कैलाश विजयवर्गीय को मुख्यमंत्री पद के लिए नम्बर एक पर ला दिया, विडियो में कैलाश विजयवर्गीय ने बताया कि जेपी नड्डा जी ने कहा कि बनाना तो कुछ और चाहता था पर अभी महासचिव ही। उधर प्रदेश सत्ता शीर्ष में बदलाव का इशारा संभागीय बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन में अमित शाह ने भी कर दिया जब उन्होंने अपने चौंतीस मिनट के भाषण में कई बार केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार और प्रदेश में कमल के फूल की सरकार या भाजपा सरकार का जिक्र किया उन्होंने अपने भाषण में एक बार भी प्रदेश सरकार के लिए शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं लिया जबकि वे उस वक्त मंच पर ही मौजूद थे। इन तमाम घटनाओं के साथ विधानसभा चुनाव के लिए तेजी से बदली परिस्थितियों में कैलाश विजयवर्गीय का नाम एक नम्बर पर आ गया वहीं उन्हें इन्दौर एक नम्बर विधानसभा से भाजपा ने उम्मीदवार भी घोषित कर दिया। हालांकि पार्टी ने उन सभी नेताओं को भी विधानसभा चुनाव मैदान में उतारा जिन जिन के नाम प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए चल रहे थे बस ज्योतिरादित्य सिंधिया को इनमें शामिल नहीं किया गया, जिसके चलते कयास यही लगाएं जा रहे कि पार्टी ने सबको खुला निमंत्रण दे दिया है... कि विधानसभा चुनाव जीतकर आइये फिर मुख्यमंत्री की दावेदारी जताईये .... वैसे विधानसभा चुनाव मैदान में शिवराज सिंह चौहान भी है,.... जिन्हें बदला जाना संभावित है। अब यदि तीन दिसंबर को आए परिणामों के बाद भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में आती है तो शायद प्रदेश के मुखिया भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और इन्दौर विधानसभा क्षेत्र क्रमांक एक से इस विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाए गए कैलाश विजयवर्गीय ही हो। क्योंकि जैसा कि मैंने पहले कहा कि अभी तो ..मौक़ा भी है और दस्तूर भी है....फिर कुछ भी हो सकता, क्योंकि तेजी से बदलाव को बढ़ते राजनीतिक परिदृश्य में लगातार जहां नये नये राजनेतिक ध्रुव बन रहें हैं वहीं नये नये राजनेता सशक्त स्तंभ।.... कभी पहले नम्बर पर चर्चा में रहने वाले छठवें सातवें नम्बर पर भी पहुंच चुके थे, अगर ऐसे ही लगातार राजनीतिक परिदृश्य बदलते रहे और नये नये समीकरण बनते रहे... तो आगे भविष्य में पता नहीं क्या रहेगा। इसलिए..... अभी नहीं तो शायद कभी नहीं। आनन्द पुरोहित/ 21 नवम्बर 2023