लेख
29-Nov-2023
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सिल्कयार सुरंग में फंसे 41 मजदूर 17 दिन बाद सुरक्षित बाहर निकल आए। मंगलवार की देर शाम इन मजदूरों को बाहर गया। ईश्वर की कृपा रही कि यह सभी 41 मजदूर पूरी तरह से स्वस्थ और प्रसन्न चित्त हैं। जब इन मजदूरों को बाहर निकाला जा रहा था। उस समय केंद्रीय मंत्री वीके सिंह और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मजदूरों के स्वागत के लिए वहां पर मौजूद थे। इन मजदूरों की उम्र बाकी थी, और भगवान की कृपा थी। जिसके कारण वह मजदूर सुरक्षित रूप से बाहर निकाल पाए हैं। लगभग 1 सप्ताह तक मजदूरों को निकालने के लिए जिस तरीके के प्रयास होते रहे हैं। जब उसकी तीव्र आलोचना हुई, तब जाकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने इस मामले में सजगता दिखाई। ऑस्ट्रेलिया से विशेषज्ञ बुलाए गए। बाहर से मशीन बुलाई गईं। भारतीय सेना को भी मजदूरों को निकालने के काम में तैनात किया गया। लगातार 10 दिनों के प्रयास के बाद आखिर फंसे हुए मजदूर सुरंग से सुरक्षित रूप से बाहर निकल आए। सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए मैन्युअल खुदाई और भारतीय जुगाड़ तकनीकी ही काम आई। सेना के जवानों ने भी बिना रुके हर संभव प्रयास किया। पर्यावरण विदों की भी सहायता ली गई अमेरिका से बुलाई गई। मशीन 47 मीटर तक की खुदाई करने के बाद खराब हो गई। उसके बाद भारतीय टीम ने मैनुअल तरीके से गैस कटर से गर्डर एवं सरिया काटकर खुदाई शुरू की। कई तरीके के प्रयास किये। मजदूरों को खाना-पानी और दवाई का इंतजाम पाइप के माध्यम से कराया गया। सुरंग में फंसे हुए मजदूरों के साथ संवाद कायम किया गया। जिसके कारण मजदूर बाहर निकल सके। सुरंग बनाने वाली कंपनी द्वारा सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया। उल्टे जहां मजदूर काम कर रहे थे, वहां पर पहाड़ की मिट्टी लगातार गिरने लगी थी। मजदूरों ने जब प्रबंधन को इस बात की जानकारी दी, तो उन्होंने गार्डर का टेका लगाकर पहाड़ से गिरने वाली मिट्टी को रोकने का प्रयास किया। बाद में अमेरिका से जो मशीन लाई गई थी वह गार्डर के कारण उसके पार्ट्स टूट गए बाद में भारतीय तकनीकी के जरिए गैस के द्वारा उन गार्डर को काटकर जगह बनाई गई। तब जाकर मजदूरों को निकाल पाना संभव हुआ। इस पूरे मामले में जो खुलासा हुआ है, वह आश्चर्यचकित करने वाला है। सरकार ने चार धाम प्रोजेक्ट के लिए केंद्रीय पर्यावरण नियमों की अवहेलना और अनदेखी करने के लिए चारधाम यात्रा के प्रोजेक्ट को छोटे-छोटे 53 प्रोजेक्ट में बांट दिया। ताकि पर्यावरण की अनुमति नहीं लेना पड़े। नाही पर्यावरण से संबंधित कानून का पालन करना पड़े। चार धाम मार्ग बनाने के लिए 53 प्रोजेक्ट के जो ठेकेदार चयनित किए गए। उन्होंने सारा काम सब लेट कर दिया। हिमालय के इस संवेदनशील क्षेत्र में उप ठेके लेने वाले ठेकेदार जिन्हें यहां पर काम करने का कोई अनुभव ही नहीं था। उनके द्वारा यह प्रोजेक्ट पूरे किए जा रहे थे। ठेकेदारों ने अपना मुनाफा काटकर सब ठेकेदारों को ठेका दे दिया। जिसके कारण सब ठेकेदारों ने सुरक्षा मानकों का भी ध्यान नहीं रखा। बहुत कम पैसे में प्रोजेक्ट को पूरा करने और मुनाफा कमाने की लालच में मजदूरों की जिंदगी को तो संकट में डाल दिया। इसके अलावा जो प्रोजेक्ट में काम चल रहा है, वह गुणवत्ता विहीन है। इसको लेकर भी अब हिमालय की तराई में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। देवभूमि जो भगवान ने शिव की तपो भूमि है। वहां पर बन रहे चार धाम के मार्ग पर इस तरीके का भ्रष्टाचार, लापरवाही के कारण पूरे उत्तराखंड का हिमालयिन क्षेत्र अंदर से खोखला हो गया है। मानव द्वारा प्रकृति को जो नुकसान पहुंचाया जा रहा है। आने वाले समय पर उसका क्या स्वरूप होगा। इसको लेकर अब उत्तराखंड आशंकित है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां पर उद्योग लगाने की भी अनुमति नहीं थी। एकाएक इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नाम पर पहाड़ों को अंदर से खोदकर बिजली, बांध और चार धाम यात्रा के लिए मार्ग बनाने और पर्यटन उद्योग विकसित करने के लिए जिस तरह से देवभूमि के साथ खिलवाड़ किया गया है। वह आश्चर्यचकित करने वाला है। पिछले तीन-चार वर्षो में उत्तराखंड के क्षेत्र में जिस तरीके की उथल-पुथल मची हुई है। पहाड़ कट कट भू स्वखलन से बिखर रहे हैं। उत्तराखंड और हिमाचल में प्रकृति का यह तांडव नृत्य कई वर्षों से देख रहे हैं। इसके बाद भी यदि हम यदि इस घटना से कोई सबक नहीं लेते हैं, तो अब देवभूमि का भगवान ही मालिक है। ईएमएस / 29 नवम्बर 23