लेख
17-Apr-2024


| चूंकि मै किसी राजनीतिक दल का प्रचारक नहीं हूँ इसलिए मुझे केंचुआ रंजीत सिंह सुरजेवाला की तरह 48 घंटे के लिए बैन नहीं कर सकता। मै रोजाना आपके लिए लिखता हूँ और आज भी लिख रहा हूँ। आज मैंने संघ लोकसेवा आयोग के नतीजों की खबर पढ़ी तो मुझे ख्याल आया कि क्यों न देश में सांसदों के चयन के लिए संघ लोकसेवा आयोग को ही मुकर्रर कर दिया जाए। यूपीएससी यानि संघ लोकसेवा आयोग वैसे भी लोक सेवक ही तो चुनता है ,फिर नेताओं को क्यों नहीं चुन सकता ? आखिर नेता भी तो लोकसेवक ही होते हैं ? यूपीएससी का इतिहास काफी पुराना है। ये संगठन 1854 से देश के लिए लोक सेवक चुनता आ रहा है। पहले ये आईसीएस चुनता था लेकिन 1922 से आईएएस चुन रहा है। पहले यूपीएससी का नाम एफपीएससी था लेकिन भारत की आजादी के बाद जैसे ही देश में नया संविधान बना इसका नाम यूपीएससी हो गया। यूपीएससी को मै केंचुआ से ज्यादा महत्वपूर्ण मानता हूँ ,क्योंकि केंचुआ तो देश के लिए पांच साल में एक बार 543 लोक सेवक चुनता है लेकिन यूपीएससी तो लगातार ये काम करता है। इस साल भी यूपीएससी सीएसई 2023 के परिणामों में 1143 रिक्त पदों के मुकाबले 1016 के चयन की सूची जारी की गई है. इन सभी को आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, ग्रुप ए और ग्रुप बी सर्विस में सरकारी नौकरी मिलेगी। यदि संघ लोकसेवा आयोग को ये काम सौंपा जाये तो संसद में जाने से पहले सभी नेताओं को एक नहीं बल्कि दो-दो इम्तिहान देना पड़ें। मजेदार बात ये हो कि भावी लोकसेवकों को न टिकिट पाने के लिए किसी की चिरौरियाँ करना पड़ें और न नोट देना पड़ें। किसी हाईकमान की, किसी संसदीय बोर्ड की जरूरत ही न पड़े। कम से कम न्यूनतम योग्यता वालों को ही संसद में जाने की पात्रता तो होगी। अभी तो संसद में जाने की कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय ही नहीं है। अभी तो बस आपकी उम्र 25 साल के ऊपर होना चाहिए। आपकी योग्यता का पैमाना आपकी शिक्षा ,चाल-चलन नहीं है आपका पुलिस से चरित्र सत्यापन भी जरूरी नहीं है । आप खुद अपने ऊपर चले रहे मामलों की जानकारी दे दें तो आपकी कृपा है। आपने नेता बनने से पहले कितना ,क्या और कैसे कमाया ? कोई नहीं पूछता । ईडी,सीबीआई तो बाद में आपके पीछे लगती है। वो भी तब जब आप सत्ता के साथ नहीं बल्कि आश्रम के साथ खड़े होते हैं तब। केंचुआ को संसद सुनने से पहले आदर्श आचार संहिता लगना पड़ती है जो उसके हिसाब से नहीं सत्ताधीशों के हिसाब से काम करती है। केंचुआ किसी को भी चुनाव से पहले और चुनाव के बाद एडवायजरी जारी कर सकता है ,किसी को भी चुनाव प्रचार करने से रोक सकता है। केंचुआ किसको कितनी आजादी दे ये सत्ता तय करती है ,केंचुआ नहीं। यूपीएससी में ये सब झंझट नहीं है। निर्धारित अहर्ता है तो पहले प्रिलिम्स में उत्तीर्ण होइए और फिर मुख्य परीक्षा में अपनी योग्यता का मुजाहिरा कीजिये। अगर योग्यता नहीं है तो चाहे चाय बेचिये या पकौड़े। कोई रोकने वाला नहीं। सांसद बनने के लिए कोई न्यूनतम योग्यता नहीं है। चाय बेचने वाला हो ,मजदूर हो , हत्याभियोगी हो ,जेबकतरा हो, संसद के लिए चुनाव लड़ सकता है। केवल सजायाफ्ता नहीं होना चाहिए। हो भी तो दो साल से कम की सजा वाला हो। मुमकिन है कि आप मेरी कल्पना पर हँसे ,मुझे मूर्ख भी कहें ,आपको ये छूट भारतीय संविधान ने दी है। सत्ता आपको ये छूट नहीं देती ,लेकिन चूंकि मै संविधान के विधान को मानता हूँ इसलिए मै आपको ये आजादी देता हूँ। मै आजादी का परम उपासक भी हूँ और समर्थक भी । मैंने 1975 में भी आजादी पर हमलों का विरोध किया था और पचास साल बाद 2024 में भी कर रहा हूँ। मुझे जब से मतदान का अधिकार मिला है मै नेता की सूरत देखकर मतदान नहीं करता । मै पार्टियों का चल,चरित्र और चेहरा देखता हूँ। मै मंदिर-मस्जिद,मजहब के नारे देने वालों को भूलकर भी वोट नहीं देता। मै वोट देने से पहले उम्मीदवार की जाति या छाती का आकार भी नहीं देखता। अनेक मौकों पर ऐसा हुआ कि मुझे अपने इलाके में कोई उम्मीदवार समझ नहीं आया तो मैंने मतदान में हिस्सा नहीं लिया । मेरी इस मूर्खता की वजह से बज्जर मूर्ख उम्मीदवार जीत गए। इसका अफ़सोस मुझे आजतक है। भारत में यदि सब कुछ संविधान के मुताबिक चले और सांसद चुनने का काम भी यदि संघ लोकसेवा आयोग जैसे किसी संस्थान को सौंप दिया जाये तो मै अपना मताधिकार तक समर्पित करने को राजी हूँ। मेरा वोट खरीदने वाले देश में ढेरों है। मान लीजिये कि यदि मै अपना वोट न भी बेचूँ तो खरीदार मेरे वोट से चुने सांसद और विधायक को खरीद लेते हैं। वे तो पूरी की पूरी सरकार ही खरीद लेते हैं। आपका लोकसेवक यदि किसी आयोग द्वारा तय परीक्षा से चुना जाएगा तो कम से हाल के हाल तो नहीं बिकेगा ! उसे भ्रष्ट होने में कुछ वक्त लगेगा । वो थोड़ा-बहुत तो नैतिक होगा। वो आपने हाथ से अपने वेतन-भत्ते नहीं बढ़ा पायेगा। वो संसद में पहूंचकर केवल मेजें नहीं थपथपाएगा । केवल अपने नेता के नाम की माला नहीं जपेगा । उसे जिस काम के लिए भेजा गया है ,वो काम भी करेगा। अभी तो मै देखता हूँ कि आप केंचुआ की देखरेख में चुनते हैं ,उसका कोई खाड़ा[भरोसा ] नहीं। चुनाव के बाद वो आपको मिल ही जाये इसकी कोई गारंटी नहीं है। न राहुल बाबा इसकी गारंटी दे सकते हैं और न मोदी बाबा। संघ लोकसेवा आयोग द्वारा चुने जाने वाले लोकसेवकों को ये आजादी नहीं है। वे निलंबित किये जा सकते है। बर्खास्त किये जा सकते हैं। उनका तबादला किया जा सकता है। उनके वेतन-भत्ते रोके जा सकते हैं। उनके खिलाफ आय से ज्यादा सम्पति रखने पर कार्रवाई हो सकती है। केंचुआ की देखरेख में चुने जाने वाले लोकसेवक परम स्वतंत्र होते हैं। वे किसी को भी मार्गदर्शक मंडल में डाल सकते हैं और किसी को भी बाहर निकाल सकते हैं भले ही वे खुद मार्गदर्शक मंडल में जाने की पात्रता रखते हों। अभी हम जिन लोकसेवकों को चुनते हैं उन्हें रिटायर नहीं किया जा सकता। वे जब चाहें तब तक चुनाव लड़ सकते हैं,,राजनीति कर सकते हैं।जितना चाहे कमा सकते हैं बहरहाल मेरी कल्पना अभी हाल-फिलहाल तो साकार नहीं हो सकती। इसलिए १९ अप्रेल को जब आप पहले चरण के लिए लोकसेवक चुनने जा रहे हों तो अपनी आँखें खोलकर रखें। उन्हें चुनें जो राम के नाम पर वोट न मांग रहे हो। जो मजहब के नाम पर कटोरा लेकर आपके घर न आये हों। जिन्होंने अपनी गरीबी का रोना न रोया हो।जो झारखण्ड में सीताहरण कि लिए दोषी न हों मै आपसे किसी दल विशेष के प्रत्याशी को वोट देने के लिए नहीं कहूंगा। मेरा आग्रह तो ये है कि आप अपने प्रत्याशी का चल,चरित्र और चेहरा देखे । देखें कि वो आपको व्यापारियों की तरह सेवा करने की गारंटी न देता हो, जो बहुरूपिया न हो।