लेख
17-Apr-2024
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ऐसा नहीं कि जब तक सृष्टि रहेगी, तभी तक राम की दृष्टि होगी। हमारे हमारा ग्रह पृथ्वी के बनने के कारण तक भगवान श्री राम का अस्तित्व रहेगा, सृष्टि के नष्ट होने के बाद भी भगवान इस तर्क में भूल नहीं हैं। श्री राम का अस्तित्व हमेशा रहेगा क्योंकि वो ईश्वर हैं। यह बात स्वामी विवेकानंद ने कहीं थी कि श्री राम उन देवता में से हैं जिन्होंने मर्यादा का पालन किया और उनकी दया दृश्टिकोण ही उन्हें ईश्वर के समकक्ष बनाती है। यानि ईश्वर तो सिर्फ एक है, दो चार तो नहीं हैं। सेवा के लिए पहली शर्त प्रेम है, अर्थात जिसके दिल में प्रेम हैं, वही सेवा कर सकता है। टॉल्स्टॉय ने कहा है, “प्रेम स्वर्ग का रास्ता है। बुद्ध का कथन है, प्रेम इंसानियत का एक फूल है और है और प्रेम उसका मधु।” रामकृष्ण परमहंस ने कहा है, “प्रेम संसार की ज्योति है। विक्टर ह्यूगों का कहना है, “जीवन एक फल है और प्रेम उसका मधु।” रामकृष्ण परंमहंस ने कहा है, “प्रेम अमरता का समुदंर है। कबीर का कथन है, “जिस घर में प्रेम नहीं, उसे मरघट समझ—बिना प्राण के सॉँस लेने वाली लुहार की धौंकनी। ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होए।। उपरोक्त पंक्ति के रचियता कबीरदास हैं। इस पंक्ति के माध्यम से ये कहना चाह रहें है कि बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। अलग—अलग शब्दों में सभी महापुरूषों ने प्रेम का बखान किया है। वास्तव में प्रम मानव-जाति की बुनियाद है। प्रेम ऐसा चुम्बक है, जो सबको अपनी ओर खींच लेता है। जिसके हृदय में प्रेम है, उसके लिए सब अपने हैं। भारतीय संस्कृति में तो सारी पृथ्वी को एक कटुम्ब माना गया है—‘वसुधैव कुटुम्बकम्।‘ईश्वर केवल एक है और जिन्होंने अन्तरिक्ष की व्यवस्था चला रखी हैआप उसका(भगवान) रूप देखिये हजारों साल पहले के बाद भगवान राम वैसे ही दिखेंगे जैसे पहले की तरह दिखता है जबकि मनुष्य का रूप समय के साथ बदलता है कई वर्षों के बाद यानी बचपन, जवानी और बुढ़ापाअपना दिखेगा राम कभी भी बुढ़ापा में नहीं दिखता है।, भगवान राम मानव के कल्याण के लिए अवतार लिया गया हैदेखने में उसका वास्तविक रूप मनुष्य जैसा नहीं है वो ईश्वर है औरजो सबकों प्रेम करता है, उससे बड़ा दौलतमंद कोई नहीं हो सकता। वह दूसरे के दिल में ऊँची भावना पैदा कर देता है। यदि गुस्सा होकर सूरज धूप और रोशनी न दे, धरती अन्न न दे, हवा प्राण न दे, तो सोचिए, हम लोगों की क्या हालत होगी! ईश्वर ने सारे इंसानो को एक-सा बनाया है। आदमी आदमी मे कोई अन्तर नही रक्खा। अन्तर तो स्वयं आदमी ने पैदा किया है। एक आदमी दिमाग़ से काम करता है, दूसरा शरीर से। पहले को हम बड़ा मानते है और उसे अधिक पैसा देते है, दूसरे को किसान-मजूर कहकर छोटा मानते है। और उसकी कम कीमत लगाते है। लेकिन यह न्याय नही है। जो दिमाग काम करता है, उसे भी खाने को अन्न चाहिए और अन्न बिना शरीर की मेहनत के नही मिल सकता। शरीर से काम करे वाले को दिमागी काम करने वाले का सहारा चाहिए। इस तरह दोनों एक-दूसरे के पूरक है। एक के बिना दूसरे का काम नही चल सकता। हृदय में प्रेम व राम है पर आज का समाज उन्हें एक-दूसरे का पूरक या साथी मानता कहाँ है? बुद्धि से काम करने वाला शरीर की मेहनत को छोटा और ओछा मानता है और उससे बचता है। वह मानता है कि मजूर से मेहनत लेने का उसे अधिकार है।ईश्वर सच्चिदानन्द है, असीम शक्ति का भंडार है। ईश्वर हमारे लिए एक अनन्त एवं अक्षय शक्तिस्रोत है। यदि आपका आत्मविश्वास विलुप्त हो चुका है, आप प्रभु भक्ति के द्वारा उसे पुनः प्राप्त कर सकते हैं। भावपूर्ण प्रार्थना करना एक विचित्र संबल देता है। धर्मों के नाम पर परस्पर घृणा का प्रचार करनेवाले तथा युद्ध भड़कानेवाले धर्म के तत्व एवं उद्देश्य को नहीं समझते हैं। संत किसी एक धर्म के खूंटे से नहीं बँधते हैं और सत्य का सत्कार करते हैं, वह चाहे जहाँ भी प्राप्त हो। एक सच्चा मानव मंदिर, गिरजा, गुरुद्वारा, मस्जिद को समान रुप से पवित्र मानता है तथा उसे अनेक मार्गों (धर्मों) के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। अपनी व्यक्तिगत अनुभूति के आधार पर ईश्वरतत्व को पहचानना तथा अपने स्वभाव के अनुसार उसके साथ एक व्यक्तिगत नाता स्थापित करना ईश्वर-प्राप्ति का श्रेष्ठ मार्ग है। .../ 17 अप्रैल 2024