ज़रा हटके
20-May-2024
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-न्यूयॉर्क की बिंगहैमटन यूनिवर्सिटी में मकड़ी के जाले पर की रिसर्च नई दिल्ली (ईएमएस)। अक्सर आपने घर, गार्डन या जंगल में मकड़ी का जाला देखा होगा। मकड़ी इस जाले का इस्तेमाल अपने शिकार को फंसाने के लिए करती है। जैसे ही कोई छोटा जीव उनके इस जाल में फंसता है, वह उसे अपना निवाला बना लेती हैं। लेकिन अब मकड़ी के जाले का सच सामने आया है, जिसे जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे। न्यूयॉर्क की बिंगहैमटन यूनिवर्सिटी में मकड़ी के जाले पर रिसर्च की है। रिसर्च में बताया कि मकड़ी के लिए उसका ये जाला किसी जासूस से कम नहीं है। वैज्ञानिकों के मुताबिकको अपनी रिसर्च में पता लगा कि मकड़ियां अपने जाले का इस्तेमाल एक बड़े माइक्रोफोन के तौर पर करती हैं। मकड़ी के जाले का रेशम, बहुत ज्यादा संवेदनशील और लंबी दूरी के शोर का पता लगाने के लिए आवाज वाले इलाकों में कणों की गति के आधार पर काम करता है। इंसानों के कान के पर्दे और पारंपरिक माइक्रोफोन ध्वनि की दबाव तरंगों का पता लगाते हैं, लेकिन मकड़ी के जाले का इस्तेमाल बिल्कुल अलग है। मकड़ी के जाले का रेशम ध्वनि तरंगों की तरफ से धकेले जाने पर वायु कणों के वेग में होने वाले बदलाव का इशारा देते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि बहुत ज्यादा संवेदनशीलता और लंबी दूरी की आवाज पहचान के लिए मकड़ी के जाले में अद्भुत क्षमता होती है। इनका जाल आवाज के कण वेग के आधार पर सूचना देता है। ध्वनि सुनने के लिए ज्यादातर कीट अपने बारीक बाल या अपने एंटीना का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन, इनके ये अंग उस आवाज के दबाव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते। ये बारीक अंग ध्वनि क्षेत्र में हवा की गति पर प्रतिक्रिया देते हैं। प्रोफेसर रोनाल्ड माइल्स ने बताया कि उन्होंने सोचा कि किसी तरह से एक इंजीनियर्ड डिवाइस बनाई जाए, जो ध्वनि से उठे हवा के वेग पर भी प्रतिक्रिया करने में सक्षम हो। फिर अलग-अलग मानव निर्मित ऐसे फाइबर के जरिए कोशिश की, जो बहुत पतले थे। इस दौरान वह परिसर में घूम रहे थे और उन्होंने हवा में उड़ता हुआ एक मकड़ी का जाला देखा। माइल्स के मुताबिक उस डिवाइस को बनाने से पहले यह साबित करना था कि मकड़ी के जाले वास्तव में ध्वनि से उठे हवा के वेग पर प्रतिक्रिया करते हैं। इसका टेस्ट करने के लिए प्रयोगशाला की खिड़कियां खोलकर वहां बने मकड़ियों के जाले की जांच की। मकड़ियों के लिए एक हर्ट्ज से 50 किलोहर्ट्ज तक की आवाज बजाई और लेजर वाइब्रोमीटर से मकड़ी के रेशम की गति को मापा। पता चला कि रेशम का ध्वनि-प्रेरित वेग उसके आसपास की हवा में उपस्थित कणों के समान ही था और इससे उस सिस्टम का पता चला, जिसका इस्तेमाल मकड़ियां अपने शिकार का पता लगाने के लिए करती हैं। माइल्स ने आगे कहा कि मकड़ी का रेशम निश्चित तौर पर मकड़ियों द्वारा ही बनाया जाता है, इसलिए इसे हर साल बनने वाले अरबों माइक्रोफोनों में शामिल करना संभव नहीं है। हालांकि ये इस बारे में बहुत कुछ सिखाता है कि माइक्रोफोन में कौन से यांत्रिक गुण जरूरी हैं और यह पूरी तरह से हमारे नए डिजाइनों को सपोर्ट कर सकता है। सिराज/ईएमएस 20 मई 2024