ज़रा हटके
30-Jul-2025
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म्यूनिख (ईएमएस)। ताजा अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल लगभग 32 करोड़ पेड़ केवल आकाशीय बिजली गिरने से मारे जा रहे हैं। यह आंकड़ा उन पेड़ों को छोड़कर है जो बिजली से लगी आग में जलकर नष्ट होते हैं। हाल ही में म्यूनिख की टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है। यह निष्कर्ष चौंकाने वाला है क्योंकि अब तक बिजली को केवल एक प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा जाता था, जिसके पर्यावरण पर इतने गंभीर असर की ओर ध्यान नहीं दिया गया था। इस अध्ययन में पहली बार बिजली गिरने के प्रभाव को इतने वैज्ञानिक तरीके से परखा गया है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने एक वैश्विक मॉडल तैयार किया, जिसमें उन्होंने बिजली गिरने की घटनाओं के आंकड़ों को वनस्पति मॉडल से जोड़कर यह आकलन किया कि दुनिया के किन क्षेत्रों में यह समस्या सबसे ज्यादा है, कितने पेड़ इससे नष्ट होते हैं और इसका पर्यावरणीय असर कितना गहरा है। रिसर्च के प्रमुख लेखक एंड्रियास क्राउस ने बताया कि अब हम केवल यह नहीं जान पा रहे कि हर साल कितने पेड़ बिजली से मरते हैं, बल्कि यह भी समझ पा रहे हैं कि यह घटना किन इलाकों में सबसे ज्यादा होती है और इसका जंगलों की संरचना तथा कार्बन भंडारण पर क्या प्रभाव पड़ता है। बिजली गिरने से पेड़ों के मरने का सबसे गंभीर असर यह है कि जब ये पेड़ सड़ने लगते हैं, तो बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में पहुंचती है। रिसर्च के अनुसार, हर साल इस प्रक्रिया से 0.77 से 1.09 अरब टन सीओ2 वातावरण में पहुंच रही है। यह आंकड़ा जीवित पेड़ों के जलने से निकलने वाले कार्बन के लगभग बराबर है, जो लगभग 1.26 अरब टन है। हालांकि यह जंगल की आग से निकलने वाले कुल 5.85 अरब टन सीओ2 से कम है, लेकिन यह अब स्पष्ट हो चुका है कि बिजली गिरना भी एक बड़ा कार्बन स्रोत बनता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से वैज्ञानिक मानते हैं कि आने वाले दशकों में बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां अब तक यह अपेक्षाकृत कम थी। पहले उष्णकटिबंधीय जंगल ही इसकी चपेट में आते थे, लेकिन अब समशीतोष्ण और बोरियल इलाकों के जंगल भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। क्राउस का कहना है कि वर्तमान जलवायु मॉडल्स भविष्य में बिजली गिरने की घटनाओं में इजाफा दिखा रहे हैं, जो चिंता का विषय है। इस अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि अब समय आ गया है कि वन प्रबंधन, जलवायु नीति और कार्बन नियंत्रण की रणनीतियों में बिजली गिरने से होने वाले नुकसान को भी गंभीरता से लिया जाए। यह केवल एक आकस्मिक प्राकृतिक घटना नहीं रही, बल्कि अब यह पृथ्वी के पर्यावरणीय संतुलन के लिए एक उभरता हुआ संकट बन चुकी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सुदामा/ईएमएस 30 जुलाई 2025