मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री जीएस अहलूवालिया ने नर्मदा पुरम की कलेक्टर सोनिया मीणा के खिलाफ चीफ सेक्रेटरी को कार्यवाही करने का जो आदेश जारी किया है वो न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने के लिए जरूरी था,इसी तारतम्य में न्यायमूर्ति ने सिवनी मालवा के एडिशनल कलेक्टर देवेंद्र कुमार सिंह और तहसीलदार राकेश खजूरिया की सभी मजिस्ट्रियल शक्तियां तत्काल वापस लेने के साथ उन्हें ट्रेनिंग पर भेजे जाने के आदेश करते हुए इस आदेश को सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज करने के निर्देश भी दिए हैं। पिछले लंबे समय ये देखा जा रहा है की हाई कोर्ट के आदेशों के बावजूद नौकरशाह इन आदेशों की नाफरमानी कर देते हैं और जब अदालत की अवमानना के मामले में उन्हें हाजिर होना पड़ता है तो वे माफी मांग कर अपने आप को सुरक्षित कर लेते हैं। स्थिति ये है कि शासन-और उसके नुमाइंदों द्वारा हाई कोर्ट के आदेशों की अवहेलना के कारण पिछले साल तक हाई कोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या चार लाख के पार हो चुकी है और इसके साथ साथ अदालत की अवमानना के मामले भी लगातार बढ़ोतरी में हैं एक समाचार पत्र की खबर के मुताबिक 2018 में 3605 2019 में 3315 ,2020 में 3118, 2021 में 3212, 2022 में 1518 अवमानना के मामले हाइकोर्ट में दर्ज किए गए है। दरअसल नौकरशाही में बढ़ती राजशाही की मनोवृत्ति इस समस्या की मुख्य वजह है कहने को तो सरकारी अफसर जनता की सेवा के लिए तैनात किए जाते हैं लेकिन आम नागरिकों के साथ उनका व्यवहार कैसा होता है इसका उदाहरण किसी भी सरकारी दफ्तर में जाकर महसूस किया जा सकता है, न्यायालय में मामलों की बढ़ती संख्या के पीछे भी यही कारण है कि सरकारी अफसर आम जनता के आवेदनों पर कोई कार्यवाही नहीं करते और उसके बाद उसे मजबूर होकर न्यायपालिका की शरण में जाना पड़ता है क्योंकि उसकी निगाह में न्याय के लिए अंतिम सीढ़ी न्यायपालिका ही होती है लेकिन दुखद तथ्य ये भी है कि न्यायपालिका द्वारा दिए गए आदेशों को भी सरकार में बैठे उच्च स्तरीय अफसर गंभीरता से नहीं लेते इसके अलावा ये भी सर्वविदित तथ्य है कि न्यायालय में अधिकतर मामले सरकार के खिलाफ दायर होते हैं यदि शासन और प्रशासन इन आवेदनों पर अपने स्तर पर ही कार्यवाही कर कर उन्हें निपटा दें तो न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ शायद कम हो सकता है लेकिन जिस तरह की मनोवृत्ति सरकारी अफसरों की हो चुकी है उसको देखते हुए यह सोचना अपने आप को झूठी सांत्वना देना होगा कि वे संवेदनशीलता दिखाते हुए एक पीडि़त को न्याय दिलाने में अपनी तरफ से पहल करेंगे इस मसले पर न्यायपालिका भी अधिकांश मामलों में नरम रुख अपनाती है अधिकारी द्वारा उपस्थित होकर माफी मांग लेना या फिर निर्देशों का तत्काल पालन करने का वचन दे कर वे कार्यवाही से बच जाते हैं जबकि आम जनता ये चाहती है कि हाई कोर्ट के आदेशों का पालन समय पर न करने वाले अधिकारियों पर हाई कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा कड़ी कार्यवाही की जाए और अगर ऐसा होता है तो अफसर शाही का यह भ्रम टूटेगा कि वे न्यायपालिका से भी ऊपर है शायद यही बात नर्मदा पुरम की कलेक्टर सोनिया मीणा के खिलाफ कुछ महीने पूर्व टिप्पणी करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायाधीश श्री विवेक अग्रवाल ने कहा था कि क्या आप अपने आप को हाई कोर्ट से भी ऊपर समझती हैं, दो दो, तीन तीन बार हाई कोर्ट के बुलावे के बावजूद आप कोर्ट में हाजिर नहीं हुई और अपनी सफाई में ये कह रही है कि जिस दिन हाई कोर्ट ने उन्हें उपस्थित होने का आदेश दिया था उसी दिन उनके इलाके में एक मंत्री जी का दौरा था, न्यायमूर्ति श्री विवेक अग्रवाल ने इस पर भी गुस्सा जाहिर करते हुए कहा था कि क्या मंत्री हाई कोर्ट से भी ऊपर हो गए हैं पूर्व में हाई कोर्ट के न्याय मूर्ति द्वारा सोनिया मीणा को फटकार लगाने के बाद भी उनके रवैए में कोई फर्क नहीं आया और पिछले दिनों न्यायमूर्ति श्री जी एस अहलूवालिया की अदालत में एक मामले में उपस्थित ना होकर कलेक्टर सोनिया मीणा ने अपने एडीएम के माध्यम से एक चिट्ठी सीधे जज के नाम पर भेज दी जिस पर न्यायमूर्ति बेहद नाराज हुए उन्होंने उसी वक्त कह दिया था कि वे इस मामले को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं और यह जरूरी है कि ऐसे मसलों पर कार्यवाही की जाए ताकि न्यायपालिका की गरिमा बनी रहे और अपने इसी आदेश के तहत आपने प्रदेश के मुख्य सचिव को नर्मदा पुरम कलेक्टर पर कार्यवाही करने के आदेश दिए हैं। शासन में बैठे जनप्रतिनिधियों को ये सोचना होगा कि जिस आम जनता ने उन्हें वोट देकर सत्ता के सिंहासन पर बैठाया है उनकी समस्याओं का निराकरण उनके अधीनस्थ आने वाले अधिकारी तत्परता से करें उन्हें इस तरह के कड़े निर्देश देने होंगे कि यदि उनके रवैए से निराश होकर किसी व्यक्ति को मजबूर होकर न्यायपालिका की शरण में जाना पड़ेगा तो वे खुद संबंधित अफसर के खिलाफ कड़ा एक्शन लेंगे। नर्मदा पुरम की कलेक्टर के खिलाफ हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने उन पर कार्यवाही करने के जो निर्देश मुख्य सचिव को दिए है उससे इस बात की आशा बंधती है कि भविष्य में कोई भी सरकारी अफसर उच्च न्यायालय की गरिमा पर आघात करने के पहले सौ बार सोचेगा और आम जनता के मामलों पर त्वरित कार्यवाही कर उन्हें न्याय प्रदान करते हुए न्यायपालिका के बोझ को कम करने में अपनी भूमिका का निर्वहन करेगा। ईएमएस / 02 अगस्त 24