सिडनी (ईएमएस)। जन्म के बाद शुरुआती कुछ महीनों तक नवजात बच्चों को केवल मां का दूध दिया जाए और उनका विशेष ध्यान रखा जाए। इस समय बच्चों को बार-बार छूने या दवाएं देने से बचना चाहिए, क्योंकि उनका शरीर बेहद संवेदनशील होता है। इस तरह की सलाह अक्सर दी जाती है, लेकिन कई बार जब बच्चों को सर्दी, खांसी या अन्य संक्रमण होता है, तो परिजन बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक दवाएं देना शुरू कर देते हैं। यह दवाएं तात्कालिक रूप से राहत तो देती हैं, लेकिन एक नई रिसर्च के अनुसार, इनका प्रभाव बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ सकता है। ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि जीवन के शुरुआती हफ्तों में दी गई एंटीबायोटिक दवाएं नवजात शिशुओं में महत्वपूर्ण टीकों की प्रभावशीलता को कम कर सकती हैं। इसका कारण बच्चों की आंतों में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया ‘बिफीडोबैक्टीरियम’ की मात्रा में गिरावट होना है, जो शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया में अहम भूमिका निभाते हैं। शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के तहत 191 स्वस्थ नवजातों का 15 महीने तक निरीक्षण किया, जो सामान्य प्रसव से पैदा हुए थे। इनमें से अधिकांश बच्चों को जन्म के समय हेपेटाइटिस-बी का टीका और बाद में नियमित टीके लगाए गए। खून और मल के सैंपल जांच में यह बात सामने आई कि जिन बच्चों को जीवन के पहले सप्ताह में एंटीबायोटिक दी गई थी, उनमें पीसीवी13 टीके के प्रति एंटीबॉडी का स्तर अन्य बच्चों की तुलना में कम था। पीसीवी13 टीका बच्चों को निमोनिया, मेनिन्जाइटिस और खून के संक्रमण जैसी गंभीर बीमारियों से बचाता है। शोध में यह भी बताया गया कि जब चूहों को प्रोबायोटिक दिया गया, तो उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता दोबारा बेहतर हो गई। इसी तरह इंसानों में भी प्रोबायोटिक्स जैसे इन्फ्लोरान के सेवन से बच्चों की इम्यूनिटी को फिर से मजबूत किया जा सकता है। शोध के अनुसार, कुछ खास टीकों की प्रभावशीलता काफी हद तक आंतों में मौजूद लाभकारी बैक्टीरिया पर निर्भर करती है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि नवजात शिशुओं को एंटीबायोटिक देने से पहले सोच-समझकर निर्णय लिया जाए। सुदामा/ईएमएस 10 अप्रैल 2025