पटना,(ईएमएस)। बिहार में आदिम जनजातियों के युवाओं को मतदाता सूची से जोड़ना टेढ़ी खीर माना जाता था, लेकिन अब पहली बार चुनाव आयोग को आदिम जनजातियों के 18 साल से ऊपर के हर वयस्क को मतदाता बनाने में सफलता मिली है। इसके लिए आयोग ने सालभर तक अभियान चलाया और आदिम जनजातियों के 18 साल से ऊपर के युवाओं की तलाश की। कई युवाओं से उनके रिश्तेदारों के जरिए से संपर्क किया गया। बता दें सरकारी भाषा में आदिम जनजाति को पार्टिकुलरली वल्नरेबुल ट्राइबल ग्रुप (पीवीटीजी) कहा जाता है। इन्हें विशेष रूप से कमजोर जनजातिय समूह भी कहते हैं। ये वह जनजाति है जो अभी भी समाज की मुख्यधारा की सभ्यता से कोसों दूर है। आदिम जनजाति के लोग जगंलों से ही भोजन का संग्रह कर उसे खाते हैं। आदिम जनजाति में बिहार में सौरिया, माल, कोरबा और बिरहोर समुदाय, पहाड़िया समुदाय के लोग आते हैं। चुनाव आयोग को आदिम जनजाति के व्यस्कों को मतदाता सूची से जोड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि आदिम जनजाति के युवाओं से संवाद स्थापित करने में भाषा की बाधा सामने आई। तब उनकी भाषा समझने वाले लोगों से मदद ली गई। इसकी वजह से 10 जिलों में सभी आदिम जनजाति परिवारों तक पहुंचने में सफलता मिली। इनमें बांका, भागलपुर, पूर्णिया, कटिहार, गया, नवादा, सुपौल, किशनगंज, कैमूर और मधेपुरा शामिल हैं। बिहार के 10 जिलों में सौरिया पहाड़िया, माल पहाड़िया, पहाड़िया, कोरबा और बिरहोर आदिम जनजातियों की कुल संख्या 7631 है। इसमें 18 साल से ज्यादा के कुल 3147 युवक हैं। इन सभी को मतदाता सूची में शामिल कर लिया गया है। बिरहोर समुदाय के लोग बारिश के पानी से बचने के लिए पत्तों का कुंबा बनाते हैं। समाज की मुख्यधारा के लोगों से मिलने जुलने में संकोच इनके विकास में सबसे बड़ी बाधा है। यह जानकारी चुनाव आयोग ने ही दी है। सिराज/ईएमएस 21अप्रैल25 ------------------------------